हवा में नमी है थोडी और हलकी सी गरमाहट
शिशिर विदाई ले रहा, और वसंत की है आहट ।
कहीं खिल रहे हैं पलाश और फूल उठे हैं कहीं सेमल,
नये नये फूलों की खुशबू भीनी भीनी और कोमल ।
कोयल की कूक कभी कभी अब गूंजती है अमराई में,
रंग छलकने ही वाले हैं राधा की अंगनाई में ।
मन रंगीला तन रंगीला कैसी ये तरुणाई है
इसके चलते वृध्दों नें भी जोश की बीन बजाई है ।
धरती की धानी चुनरिया सज गई पीले बूटों से
सरसों के लहराते खेत ये, सोना बिखरा हो जैसे ।
हवा बसंती चली बजाती, रुनझुन कानो में पायल,
कौन है ऐसा जो न हुआ हो इस मधुवंशी का कायल ।
यह मौसम थोडे दिन का है, इसको हम भरपूर जिये
फिर न गरमियों से तंग होंगे इन यादों में जो खोयें ।
26 टिप्पणियां:
आगत मौसम का विशिष्ट स्वागत..
शिशिर जाय सिहराय के, आया कन्त बसन्त ।
मस्ती में आकूत सब, सेवक स्वामी सन्त ।
सेवक स्वामी सन्त, हुई मादक अमराई ।
बाढ़ी चाह अनंत, जड़ो-चेतन बौराई ।
फगुनाहट हट घोर, शोर चौतरफा फैला।
देते बांह मरोर, बना बुढवा भी छैला ।।
दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक
http://dineshkidillagi.blogspot.in
वाकई ये दिन तो बहुत ही अच्छे हैं. और आपकी कविता भी.
सुन्दर रचना..
खुशगवार मौसम वाली खुशगवार कविता।
मौसम के स्वागत का निराला अंदाज है आपका ।शानदार ।
यह मौसम थोडे दिन का है, इसको हम भरपूर जिये
फिर न गरमियों से तंग होंगे इन यादों में जो खोयें ।
वाह ..
mousam par likhi nazuk si kavita....bahut achchi lagi.
कोयल की कूक कभी कभी अब गूंजती है अमराई में,
रंग छलकने ही वाले हैं राधा की अंगनाई में ।
subhag drishya
बहुत सुंदर शाब्दिक श्रृंगार लिए रचना .....
bahut sundar
कोयल की कूक कभी कभी अब गूंजती है अमराई में,
रंग छलकने ही वाले हैं राधा की अंगनाई में ...
फागुन आने की दस्तक दे रही है आपकी लाजवाब रचना ... आनंद आ गया ...
हवा बसंती चली बजाती, रुनझुन कानो में पायल,
कौन है ऐसा जो न हुआ हो इस मधुवंशी का कायल ।
सब इस वंशी के कायल है ...
आज की रचना बहुत सुंदर लगी !
फाल्गुन के आगत का सुन्दर चित्रण...होली की अग्रिम शुभकामनाएं...
धरती की धानी चुनरिया सज गई पीले बूटों से
सरसों के लहराते खेत ये, सोना बिखरा हो जैसे. बहुत बेहतरीन प्रस्तुति,इस सुंदर रचना के लिए बधाई,...
NEW POST ...काव्यान्जलि ...होली में...
बड़ा प्यारा लगा यह वसंत स्वागत गीत....
आभार आपका !
सुन्दर कविता .
सुन्दर सुन्दर चह चहाती सी रचना.
प्रसन्न हो गया है मन पढकर.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार जी.
बेहद खूबसूरत रचना है... कई दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आया.. पहले जैसा ही वातावरण मिला यहां... पढकर मजा आया...
मौसम को सच प्रकृति से भला बेहतर कौन जी सकता है. .... सुंदर प्रस्तुति.
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क्या सिलेंडर भी एक्सपायर होते है ?
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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥
आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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सुंदर रचना के लिए भी आभार !
@मन रंगीला तन रंगीला कैसी ये तरुणाई है
इसके चलते वृध्दों नें भी जोश की बीन बजाई है ।
बढ़िया अभिव्यक्ति ....
रंगोत्सव पर आपको शुभकामनायें !
मन रंगीला तन रंगीला कैसी ये तरुणाई है
इसके चलते वृध्दों नें भी जोश की बीन बजाई है ।
धरती की धानी चुनरिया सज गई पीले बूटों से
सरसों के लहराते खेत ये, सोना बिखरा हो जैसे ।
हवा बसंती चली बजाती, रुनझुन कानो में पायल,
कौन है ऐसा जो न हुआ हो इस मधुवंशी का कायल ।
यह मौसम थोडे दिन का है, इसको हम भरपूर जिये
फिर न गरमियों से तंग होंगे इन यादों में जो खोयें ।
bahut hi pyari kavita hai aapki ,mahila divas ke saath holi parv ki bhi badhai le /
प्रकृति के सुन्दर दृष्य जीवन में सुख-सौंदर्य और माधुर्य भरते रहें !
शिशिर विदाई ले रहा, और वसंत की है आहट ...
बहुत सुंदर .
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