आज मै तुमसे मिलूंगी प्यार की ऊंचाइयों पर
भावों की नापूंगी मै गहराइयां
और छू लूंगी वे सारे रंग छाये आसमां पर ।
झरने जैसी बहती मेरे हंसी की वह खिलखिलाहट
मेरे होने की अजब परछाइयाँ
बांध लूंगी मै तुम्हे फिर आज बाहों के बिना पर ।
रात से गहरे हैं मेरे बादलों से उडते गेसू
इनमें ही बसती हैं कुछ पुरवाइयां
खुशबूओं से तर हुआ है आज मेरा मन, मनेतर ।
सुबह की लाली है छायी आज मेरी भंगिमा मे
रोशनी की मन में कुछ शहनाइयाँ
आज छेडूंगी अनोखी रागिनी के, मै, मधुर स्वर ।
ये उजासों के खजाने, करेंगे संपन्न हमको
हम मिटा देंगे, जो थीं तनहाइयां
और फिर उडने लगेंगे पंछी अपने आसमाँ पर ।
26 टिप्पणियां:
प्रेम के सभी रंग, आपकी कविता के संग.
प्रेमरस मे भीगी सुन्दर प्रस्तुति।
बहुत ही गहरे और सुन्दर भावो को रचना में सजाया है आपने.....
आज मै तुमसे मिलूंगी प्यार की ऊंचाइयों पर...प्रेम का विहंगम चित्रण...
ये उजासों के खजाने, करेंगे संपन्न हमको
हम मिटा देंगे, जो थीं तनहाइयां
और फिर उडने लगेंगे पंछी अपने आसमाँ पर ।
sundar bhav bhari rachna ...
प्रेमपगी सुंदर रचना
प्रेम का यही ऊर्ध्वगामी स्वरूप भाता है...हल्कापन...
भावपूर्ण ...प्रेमपगे भाव.....
ये उजासों के खजाने, करेंगे संपन्न हमको
हम मिटा देंगे, जो थीं तनहाइयां
और फिर उडने लगेंगे पंछी अपने आसमाँ पर...
प्रेम के सभी रंग, आपकी कविता के संग...
।
आशा का पैगाम लिए ... प्रेम के रंगों में डूबी लाजवाब रचना ...
अनुपम आशा की उड़ान.
आपकी सुन्दर प्रस्तुति पढकर
मन प्रसन्न हो गया है.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईएगा,आशा जी.
सुन्दर..
भावभीनी रचना...
सादर.
सुबह की लाली है छायी आज मेरी भंगिमा मे
रोशनी की मन में कुछ शहनाइयाँ
आज छेडूंगी अनोखी रागिनी के, मै, मधुर स्वर ।
ये उजासों के खजाने, करेंगे संपन्न हमको
हम मिटा देंगे, जो थीं तनहाइयां
और फिर उडने लगेंगे पंछी अपने आसमाँ पर ।
Bahut,bahut sundar!
प्रेमिल मन प्रेम को अपने में समेट लेना चाहता है। कुछ और की उसे दरकार भी नहीं।
meethi.....chashni men doobi hui....
कविता के समान इसका शीर्षक भी मोहक और स्वप्निल है... बहुत सुंदर
सुबह की लाली है छायी आज मेरी भंगिमा मे
रोशनी की मन में कुछ शहनाइयाँ
आज छेडूंगी अनोखी रागिनी के, मै, मधुर स्वर ।
आदरणीया आशा जी अभिवादन ..सुन्दर रचना भाव प्रणय काश ऐसा ही रंग बिखरे प्रेम में तो आनंद और आये ..
गहन अभिव्यक्ति..
भ्रमर ५
बहुत सुन्दर प्रणय गीत!...मन झुम उठा!
झरने जैसी बहती मेरे हंसी की वह खिलखिलाहट
मेरे होने की अजब परछाइयाँ
बांध लूंगी मै तुम्हे फिर आज बाहों के बिना पर ।
प्यार का इतना विराट उदात्त स्वरूप वाह क्या बात है शब्द सौन्दर्य देखते ही बनता भाव नृत्य करता है .
prem ka utkarsh swaroop,anginit raag or rango se bhara hai e prem,ati sundar rachna.
सार्थक प्रस्तुति । मेरे पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
सुन्दर सार युक्त रचना. आभार.
मिलन का अदभुत रंग
प्रेमरस में पगी हुई एक-एक पंक्ति।
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..की-बोर्ड वाली औरतें।
अति उत्तम,सराहनीय प्रेमरस में भीगी प्रस्तुति,सुंदर रचना.....
NEW POST काव्यान्जलि ...: चिंगारी...
waah! prem ras se sraabor pyaari rachna likhi aap ne
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