चलते चलते मोड पर
कैसे बदल गये रस्ते
तुम चले गये उधर
ठगे से हम रहे इधर ।
कहां तो पिरोये थे
बकुल पुष्प हार
कहा था खुशबू इनकी
रहेगी साल हजार
वे भी कहीं पडे होंगे
बकुल वृक्ष के नीचे
या कूडे के ढेर में
सोये हों अखियां मीचें ।
मेरी किताबों में दबे
वे खत तुम्हारे लिख्खे
वे प्रेम रस में पगे
अक्षर सारे पक्के ।
कैसे मै भूलूं उनको
कैसे मिटाऊँ दिल से
पलक की कलम से
उतारे जो गये दिल पे ।
ये क्या हुआ सोचूं
सोचूं ये क्यूं हुआ
वो प्यारा सा सपना
क्यूं हुआ धुआं धुआं ।
कभी राह में अब
जो मिल गये हम से
नज़र बचा कर जाना
न तकना, कसम से ।
सह न पाऊँगी तुम्हारी
वह बनावट की हंसी
गले की अटकी फांस
हाय ह्रदय में फंसी ।
21 टिप्पणियां:
कहां तो पिरोये थे
बकुल पुष्प हार
कहा था खुशबू इनकी
रहेगी साल हजार
bhaw bahut pyare lage......
बहुत कुछ छूट जाता है पीछे ... बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति
बहुत बढ़िया।
कभी राह में अब
जो मिल गए हमसे
नजर बचा कर जाना
न तकना, कसमसे !
सुंदर ........
आशाओं के महल बनने के पहले झरने लगें तो पीड़ा होती है।
कभी राह में अब
जो मिल गये हम से
नज़र बचा कर जाना
न तकना, कसम से ।
... chalte chalte ab umra hui , ajnabi hi rahen to behtar hai
कैसे मै भूलूं उनको
कैसे मिटाऊँ दिल से
पलक की कलम से
उतारे जो गये दिल पे ।
bahut badhiya kavita !!
sundar bhavabhivyakti !!!
यह किसकी याद हो आयी आज ? :)
मगर यहाँ तो कोई और मंजर है -
वे कभी मिल जाएँ तो क्या कीजिये
रात भर सूरत को देखा कीजिये
कैसे मै भूलूं उनको
कैसे मिटाऊँ दिल से
पलक की कलम से
उतारे जो गये दिल पे
सटीक शब्दों और सजीव भावों का सुंदर समन्वय।
जीवन में जो गुजार जाता है अगर सच्चा न हो तो विषाद आ जाता है ... अच्छा लिखा है इस लेखे जोखे को ...
समय बदलता है और अब लगता है कि बहुत जल्दी बदलने लगा है समय!
पुष्प हार जल्दी ही मलिन हो जाते हैं अब तो!
pahli baar aapko padh rahi hoon.bahut achchi prastuti hai chalte chalte mod par.aapki shrankhla se jud rahi hoon.milte rahenge.
खूबसूरत रचना...
सह न पाऊँगी तुम्हारी
वह बनावट की हंसी
गले की अटकी फांस
हाय ह्रदय में फंसी ।
आप बहुत ही सुन्दर और भावपूर्ण लिखतीं हैं. आपको पढकर कर मन मग्न हो जाता है.
मेरे ब्लॉग पर आपने 'नाम जप' पर जो अपने
अमूल्य विचार और अनुभव प्रकट किये,उसके
लिए बहुत आभारी हूँ मैं. अच्छे काम में शुरू शुरू में विघ्न आ सकते हैं,पर निरंतर प्रयास से
सफलता की ओर अग्रसर होते है हम.आपकी 'आशा' बहुत ही अच्छी लगी,आशा जी.
सुंदर शब्दों पिरोई अच्छी रचना,बढ़िया पोस्ट
मेरे पोस्ट पर स्वागत है ....
श्रृंगार रस में सराबोर यह सुंदर कविता मन मोह गयी।
अच्छा लिखा है .
एक अच्छी चीज पढ़ने को मिली,
आभार आपका।
सुंदर सार्थक रचना अच्छी लगी,बधाई
मेरे नये पोस्ट में स्वागत है,...
बहुत ही सुन्दर प्यारी अभिव्यक्ति ..प्रेम के भी कितने रंग ......
भ्रमर ५
कहां तो पिरोये थे
बकुल पुष्प हार
कहा था खुशबू इनकी
रहेगी साल हजार
वे भी कहीं पडे होंगे
बकुल वृक्ष के नीचे
या कूडे के ढेर में
सोये हों अखियां मीचें ।
bahut hi bhavpurn rachana,jaise kuch apna hokar bhi apna nahi.
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