एक लहर उठी
धीरे धीरे
वह फैल गई
धीरे धीरे
उसमें फिर और
कई धारें
जुडती ही गईं
धीरे धीरे ।
पूरब से लेकर
पश्चिम तक
उत्तर से लेकर
दक्षिण तक
एक हवा बही
कुछ तेज चली
बनती ही गई
वो बवंडर सी
जो बात चली
धीरे धीरे ।
फिर जोर बढा
फिर शोर बढा
जन जन का
आक्रोश बढा
एक राई थी
बनती ही गई
वह पर्वत सी
धीरे धीरे ।
उस की हलचल से
सिंहासन और
सारे प्रभुता के आसन
बस डोल उठे
भयभीत हुए
सारे कायर
धीरे धीरे ।
इस लहर को
प्रलय बनाना है
ऐसा मंथन
करवाना है
विष का तो
पान किया अबतक
अब अमृत भी
चखवाना है
फिर इस भ्रष्ट
व्यवस्था को
करना है खतम
धीरे धीरे ।
27 टिप्पणियां:
नेक नीयत के साथ प्रारम्भ किये गये इस कार्य में हम सब साथ हैं.
सुन्दर प्रेरक प्रस्तुति.
सब कुदरत की महिमा है.
लहर का बनना और लहर से तूफान का.
लहर प्रलय का रूप भी धारण कर सकती है.
आभार.
मेरे ब्लॉग पर आप आयीं,बहुत अच्छा लगा.
एक बार फिर से आईयेगा.
ये लहर अब हाहाकार कर रही है।
Kya khoob likha hai!
गहन भावों के साथ सशक्त रचना ।
prabhawshali.......
यह लहर एक बदलाव की लहर साबित हो यही आशा है..... सुंदर रचना
शुक्रवार --चर्चा मंच :
चर्चा में खर्चा नहीं, घूमो चर्चा - मंच ||
रचना प्यारी आपकी, परखें प्यारे पञ्च ||
beautiful poem
श्रेष्ठ रचनाओं में से एक ||
बधाई ||
अब बदलाव की लहर कमाल दिखा कर रहेगी।
इस लहर को
प्रलय बनाना है
ऐसा मंथन
करवाना है
विष का तो
पान किया अबतक
अब अमृत भी
चखवाना है..
Very motivating creation...
.
लहर का संवाद प्रवाह बन बहता रहेगा।
आदरणीया आशा जोगळेकर जी
एवं
आदरणीय श्री सुरेश जोगळेकर जी
सादर प्रणाम !
सामयिक घटनाक्रम पर आपने अच्छी लेखनी चलाई है -
एक लहर उठी
धीरे धीरे …
…उस की हलचल से
सिंहासन और
सारे प्रभुता के आसन
बस डोल उठे
भयभीत हुए
सारे कायर
धीरे धीरे
कायरों के गद्दी से नीचे उतरने के दिन आ गए हैं :)
इस भ्रष्ट
व्यवस्था को
करना है खतम
धीरे धीरे
बहुत आवश्यक है …
आभार !
मेरी ताज़ा पोस्ट पर आपका भी इंतज़ार है ,
काग़जी था शेर कल , अब भेड़िया ख़ूंख़्वार है
मेरी ग़लती का नतीज़ा ; ये मेरी सरकार है
वोट से मेरे ही पुश्तें इसकी पलती हैं मगर
मुझपे ही गुर्राए … हद दर्ज़े का ये गद्दार है
मेरी ख़िदमत के लिए मैंने बनाया ख़ुद इसे
घर का जबरन् बन गया मालिक ; ये चौकीदार है
पूरी रचना के लिए मेरे ब्लॉग पर पधारें … आपकी प्रतीक्षा रहेगी :)
विलंब से ही सही…
♥ स्वतंत्रतादिवस सहित श्रीकृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं !♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सशक्त रचना.
यह क्रांति की लहर है
इस लहर को प्रलय बनाने में
हम भी साथ है !
बहुत सुंदर प्रस्तुती !
बहुत सुन्दर...बहुत बढ़िया रचना!
सशक्त रचना.
सुन्दर सामयिक अभिव्यक्ति
भ्रष्ट व्यवस्था को ख़त्म करना है...तो एक झटके में...हमारे नेता तो कह ही रहे हैं कि आज़ाद होने में २०० साल लगे...तो क्या आप समझते हैं भ्रष्टाचार तुरंत ख़तम हो जायेगा...जब तक 'हम हैं अन्ना' स्लोगन चरितार्थ नहीं हो जायेगा...करप्शन ख़त्म नहीं होगा...अन्ना बनिए और आप के जीवन से भ्रष्टाचार आज ही ख़त्म हो जायेगा...
एक लहर उठी
धीरे धीरे
वह फैल गई
धीरे धीरे
उसमें फिर और
कई धारें
जुडती ही गईं
धीरे धीरे ।
waah behtreen najm, aur ab shyed ye dhar nadiya bhi ban jaye ...............aabhar.....
बहुत सुन्दर और प्रेरक अभिव्यक्ति...
आप सब का रचना को सराहने का बहुत आभार । बाण भट्ट जी चाहते तो हम भी हैं कि भ्रष्टाचार तुरंत खत्म हो पर हम अपने स्तर पर इतना तो कर ही सकते हैं कि हम इसका हिस्सा नही बनेंगे चाहे हमारा काम अटक ही क्यूं ना जाये । आप से सहमत हूँ, पर जितनी जल्दी हमें है क्या हम इतनी जल्दी की सरकार की तरफ से अपेक्षा कर सकते हैं ?
अब इस लहर को निरंतर बहाना है ..बहुत सुन्दर रचना और सार्थक आह्वान
सर्वं अन्नामयम जगत !
ek nayi leher tho uthi hai,asha hai ek din safalta jarur mile.
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