गुरुवार, 7 अप्रैल 2011

दुनिया झुकती है


ये कौनसा सूरज निकला है
ये किरण कहां से फूटी है
जो सालों में नही हुई
हो रही वो बात अनूठी है ।

“झुकाने वाला चाहिये”
आज फिर सच होते देखा
सैलाब ये जनता का हमने
फिर आज उमडते देखा ।

आंदोलन किसको कहते हैं
जनता की ताकत क्या होती
ये आज पता लग जायेगा
मगरूर सी इस सरकार को भी ।

जड से है हिला दिया इसको
ये डर के मारे ही चुप है
चलते चुनाव में क्या होगा
यही तो इसकी धुक धुक है ।

इसकी ही क्यूं उन सारों की
है अब खडी हुई खटिया
राजनीति के नाम पे ही
जनता को जिनने सदा दुहा ।

अण्णा तुम बापू बन आये
और बन आये तुम जयप्रकाश
मिटाने भ्रष्टाचार का तम
और फैलाने सच का प्रकाश ।

अब देश का बदलेगा स्वभाव
इसका चरित्र भी बदलेगा
जब हम सब साथ खडे होंगे
और युवा देश उठ गरजेगा ।

17 टिप्‍पणियां:

Rahul Singh ने कहा…

स्‍वागतेय ताजी वैचारिक बयार. (भाइयों को ऐतराज न हो कि आंधी, तूफान, सुनामी क्‍यों नहीं कहा जा रहा है.)

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

नयी बयार है, वातावरण में सोंधापन महकेगा।

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

ये कौनसा सूरज निकला है
ये किरण कहां से फूटी है
जो सालों में नही हुई
हो रही वो बात अनूठी है ।

आपने सही लिखा है ! न जाने कब से हम सब इसी सूरज का इंतज़ार कर रहें थे !
आज हम सभी को एक जुट होकर भ्रष्टाचार को जड़ से उखाड़ फ़ेकना है !
इस बार चुके तो .......
गहन भाव समेटे सामयिक कविता के लिए आभार !

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

बिल्‍कुल सच ब्‍यां करती काव्‍यमय पंक्तियां

अन्‍ना हजारे का समर्थन : भ्रष्‍टाचार का विरोध है और मेरी ऊंगली

Aruna Kapoor ने कहा…

भ्रष्टाचार के विरोध में और अण्णा हजारे के समर्थन में लिखी गई एक प्रेरक रचना!...बहुत सुंदर अभिव्यक्ति है आशाजी!...धन्यवाद!

Sawai Singh Rajpurohit ने कहा…

बहुत ही सटीक

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

उम्मीदें तो बहुत हैं..

प्रतुल वशिष्ठ ने कहा…

मैंने आपकी कविता को गीत रूप में गाकर देखा
बेहद पसंद आया. फिर पत्नी से बातचीत शुरू हो गयी सरकार की कारिस्तानियों की.
उनके मन में तो काफी समय से नफरत भरी हुई थी नेता-नगरी के प्रति.
आज उन्हें अन्ना अच्छे लगने लगे हैं. आज़ तक उन्हें समाचार पसंद नहीं थे. लेकिन अब वे बार-बार अन्ना की खबर देख लेती हैं.
आपकी कविता एक आहुति है इस आन्दोलन में.

mridula pradhan ने कहा…

aapki kavita bahut achchi lagi.....sundar bhawon ko lekar....
likhi hui.

Suman ने कहा…

vaah tai khupach chan,anna hajare barobar amhi pan sagle aahot. sunder rachna.....

Sushil Bakliwal ने कहा…

इसकी ही क्यूं उन सारों की
है अब खडी हुई खटिया
राजनीति के नाम पे ही
जनता को जिनने सदा दुहा

परिवर्तन की आहट तो सुनाई दे रही है ।

Patali-The-Village ने कहा…

गहन भाव समेटे सामयिक कविता के लिए आभार|

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

वाह ! आपने तो बड़ी अच्छी कविता लिख दी!

Unknown ने कहा…

vastvikta se judi hue rachnaye ...apko alag pahchan deti hai !!

Swagat hai...samay ho to mere blog par bhi padhare!!

Jai Ho manglamy HO

ज्योति सिंह ने कहा…

अण्णा तुम बापू बन आये
और बन आये तुम जयप्रकाश
मिटाने भ्रष्टाचार का तम
और फैलाने सच का प्रकाश ।bahut sundar rachna likhi hai aapne ,man khush ho gaya .jeet ki badhai sweekare .

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

अब देश का बदलेगा स्वभाव
इसका चरित्र भी बदलेगा
जब हम सब साथ खडे होंगे
और युवा देश उठ गरजेगा ।

देश का चरित्र अब बदलनी ही चाहिए।
अन्ना हमारे साथ हैं, हम सब अन्ना के साथ हैं।

mehhekk ने कहा…

जनता की ताकत क्या होती
ये आज पता लग जायेगा
मगरूर सी इस सरकार को भी ।
ek dam sahi baat,janata ki taqat bahut badi hoti hai,bas usko sahi raah dekhanewala insaan chahiye.