रात की महफिल में छलके जाम कितने
किसने गिने हैं किसने देखे ख्वाब कितने ।
किसने सुनाई नज्म यार-ए बेरुखी की
और मुहब्बत को नवाज़ा किसने किसने ।
अपनी बारी का किये हम इन्तजार,
पर शम्मा को आगे बढाया, हाय, किसने ।
कितनी आहें, कितने उफ, तौबायें कितनी
कह न पाये कुछ, हुए गुमनाम इतने ।
वो रकीब, वो बन गया महफिल का सूरज
वो ही रहा कहता गज़ल, वाह, वाह, कितने ।
हम उठे मेहफिल से जब मायूस हो कर
पूछा किया वह आसमाँ में चांद कितने ।
दूर हैं बस, टिम टिमा कर आह भरते
वरना सूरज से बडे, हैं सितारे कितने ।
22 टिप्पणियां:
दूर हैं बस, टिम टिमा कर आह भरते
वरना सूरज से बडे, हैं सितारे कितने
वाह वाह..
किसने सुनाई नज्म यार ए-बेरुखी की
और मुहब्बत को नवाजा किसने किसने
वाह! हर पंक्ति सुंदर बनी है ...
दूर हैं बस, टिम टिमा कर आह भरते
वरना सूरज से बडे, हैं सितारे कितने -- गहरा भाव छिपा है रचना में
वो रकीब, वो बन गया महफिल का सूरज
वो ही रहा कहता गज़ल, वाह, वाह, कितने ।
सुन्दर रचना, ... ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगी
सुन्दर .
अभिव्यक्ति का खुबसूरत अन्दाज... वाह.
टोपी पहनाने की कला...
गर भला किसी का कर ना सको तो...
बहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति| धन्यवाद|
aadarniy mam
sabase pahle to aapse xhama chahti hun bahut vilamb se aapke blog par aane ki .
aswathata ke chalte net par baraabar nahi aa paa rahi hun.
balki mujhe bahut khed hai ki main chah kar bhi sabhi ke blog par jakar unki posto ko padh kar comments nahi de pa rahi hun.jab thoda theek anubhav karti hun tab do -char comments hi daal pati hun .
atah aap sabhi se dil se xhma chahti hun.
aapki gazal ki har panktiyan sachchai se rubaru karaati hain .aksar logo ke saath aisa hi hota hai.
हम उठे मेहफिल से जब मायूस हो कर
पूछा किया वह आसमाँ में चांद कितने ।
दूर हैं बस, टिम टिमा कर आह भरते
वरना सूरज से बडे, हैं सितारे कितने ।
yah panktiyan to yatharth ko hi ingit karti hain.
kitni hi sahjta ke saath aapne inhe apne gahan shabdo mee piroya hai .
bahut bahut badhai v hardik naman ---
tippni dene me deri ho jaaye to fir se aapse xhma chahti hun
sadar dhanyvaad
poonam
सूर्य निकट है, तभी है प्यारा।
वाह..वाह...वाह...
एक से बढ़कर एक नायाब शेर काढ़े हैं आपने...
खूब आनंद आया पढ़कर...आभार.
वो ही रहा कहता गज़ल, वाह, वाह, कितने ।
धत्त कहिए ऐसे गज़लकार को, जो करते फ़ितने :)
दूर हैं बस, टिम टिमा कर आह भरते
वरना सूरज से बडे, हैं सितारे कितने ..kalpana aur science ka sundar samagam...
किसने सुनाई नज्म यार ए-बेरुखी की
और मुहब्बत को नवाजा किसने किसने
khubsurat waah
दूर हैं बस, टिम टिमा कर आह भरते
वरना सूरज से बडे, हैं सितारे कितने
yeh sher ne tho dil hi jeet liya,behad bhavuk gazal sunder
jo ravi no dekhe woh kavi dekeh
nice poem
अपनी बारी का किये हम इन्तजार,
पर शम्मा को आगे बढाया, हाय, किसने ।
कितनी आहें, कितने उफ, तौबायें कितनी
कह न पाये कुछ, हुए गुमनाम इतने ।
वाह क्या बात है लाजवाब गज़ल ......
वाह वाह .... बेहद सुन्दर ..क्या बात क्या बात ... एक अजीब सा दिल हिला गयी... बहुत ही सुन्दर तरीके का आपका शिकायती अंदाज ...और अंत में सोने पर सुहागा ..
दूर हैं बस, टिम टिमा कर आह भरते
वरना सूरज से बडे, हैं सितारे कितने
दूर हैं बस, टिम टिमा कर आह भरते
वरना सूरज से बडे, हैं सितारे कितने ।
वाह वाह....!!
सुंदर रचना पढ़वाने के लिए आभार.
बहुत खूबसूरत शिकायत |
कितनी आहें, कितने उफ, तौबायें कितनी
कह न पाये कुछ, हुए गुमनाम इतने ।
वो रकीब, वो बन गया महफिल का सूरज
वो ही रहा कहता गज़ल, वाह, वाह, कितने ।
nice post...
बड़ी प्यारी लगी यह कविता।
bahut achchi lagi aapki kavita.
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