सोमवार, 30 अगस्त 2010
हाँ हमने बेच खाई ..
तिरसठ साल
हाँ हमने बेच खाई
उन पुरखों कमाई
वतन के वास्ते जिन्होने
जान भी गवाँई ।
इनके जो ये करम हैं
ईमान ना धरम है
अधिकारी हों या नेता
किस को कहाँ शरम हैं
पैसे का खेल सारा
चोर-चोर मौसेरे भाई
दिखता ही है हुई है
इनकी मोटी कमाई । हाँ हमने...
राष्ट्रकुल खेलों का
मिला है एक मौका
कुछ नाम अपना करते
लेकिन हुआ है धोखा
जनता की सारी दौलत
किस किसने है उडाई
इज्जते वतन भी
है धूल में मिलाई । हाँ हमने...
संसद में बैठे बैठे
जूतम-पैज़ार करते
संविधान अपने की
ये धज्जियाँ उडाते
आतंकियों से इनकी
है साँठ-गाँठ भाई
जनता मरे या जिये
इनको मिले मलाई । हाँ हमने...
राशन नही है मिलता
बच्चा न स्कूल जाता
सरकारी गोदामों में
देखो अनाज सड़ता
अब आसमान छूने
चल पडी है महंगाई
तिरसठ सालों का अपना
यही है हिसाब भाई । हाँ हमने...
कुछ अच्छे लोग भी है
जो रहते काम करते
दुनिया जहाँ में ऊँचा
भारत का नाम करते
हुई उनके भी राहों में
है काँटों की बुवाई
घायल हुए हैं फिर भी
लडते रहे सिपाही । हाँ हमने...
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29 टिप्पणियां:
ये जो बेच खाएं कम है,
उम्दा पोस्ट के लिए आभार
खोली नम्बर 36......!
बहुत उम्दा!
हाँ हमने बेच खाई
उन पुरखों कमाई
वतन के वास्ते जिन्होने
जान भी गवाँई ।
Sach Ashaji...bada dukh hota hai...
बहुत सुंदर भाव युक्त कविता
विचारोत्तेजक लिखा आपने..सशक्त प्रस्तुति के लिए बधाई.
___________________
'शब्द सृजन की ओर' में 'साहित्य की अनुपम दीप शिखा : अमृता प्रीतम" (आज जन्म-तिथि पर)
damdaar rachana prastut ki hai aapne!
बेहद सुन्दर रचना. तारीफ के लिए शब्द नहीं हैं. आभार.
विचारोत्तेजक रचना।
हाँ, शर्मिन्दा हैं हम।
Ek ek shabad sach kaha hai......
bhn aasha ji bhut khub achchaa nhin likha blke bhut bhut achchaa likhaa he bdhaayi ho bhn ji shaayd blog pr femili fotu aapkaa ya meraa hi hoga . akhtar khan akela kota rajsthan
हाँ हमने बेच खाई
उन पुरखों कमाई
वतन के वास्ते जिन्होने
जान भी गवाँई ।
..... yah bahut badi bidambana hai hamari desh kee...
...Kash yah baat kursi se chipke logon ke jara bhi samjh mein aa pati!
....aaj ke haalaton ke bayan karti rachna ke liye aabhar
शब्दश: सहमत....
बेहतरीन!
आशा जी, बहुत गंभीर चिंतन प्रस्तुत किया है आपने...
हालात कितने बदतर हो चले हैं, लेकिन किसी को जैसे कोई परवाह नहीं रह गई है...
बहरहाल, इस तरह का चिंतन जागरूकता लाने के लिए आवश्यक है.
waah waah !!
bahut hi sundar..
बहुत अच्छी रचना है मैडम आपकी,
शर्म वगैरह सब बेच खाई है हमने।
बहुत सुंदर,
कृपया अपने बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों से हमारा मार्गदर्शन करें:-
अकेला या अकेली
bahut achchi likhi .
ज़बरदस्त रचना... आभार
अभी लड़ाई बहुत बाकी है।
आपको एवं आपके परिवार को श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत बढ़िया ! उम्दा प्रस्तुती!
आगे क्या क्या करते हैं- देखना है.
हाँ हमने बेच खाई
उन पुरखों कमाई
वतन के वास्ते जिन्होने
जान भी गवाँई ।
!..सार्थक रचना!
..जन्माष्टमी की बहुत बहुत बधाई!...ढेरों शुभ-कामनाएं!
जब पहरेदार सोते रहेंगे तो बाजार में बिकती ही रहेगी हमारी अस्मत
कुछ अच्छे लोग भी है
जो रहते काम करते
दुनिया जहाँ में ऊँचा
भारत का नाम करते
हुई उनके भी राहों में
है काँटों की बुवाई
घायल हुए हैं फिर भी
लडते रहे सिपाही । हाँ हमने...
Bahut badhiya !
.
har shabd sahi hai,ek tikha vaar apne hi upar,sunder rachana.
asha ji pratrikriye baddal dhanyawad,hona sadhya blogwar faar kami yena hot aahe,aaple yatra vivaran pan khup surekh aahet.tumhi pan kalaji ghya,apli athvan aste mala mehami,sadar mehek.
हाँ हमने बेच खाई
उन पुरखों कमाई
सशक्त प्रस्तुति के लिए बधाई.
वास्तविकता से परिपूर्ण रचना...आईना दिखा दिया हो जैसे.
बहुत ही सुंदर रचना... कविता की एक-एक पंक्तियां दिल को छूने वाली हैं। इस कविता के माध्यम से आपने व्यवस्था पर करारा चोट किया है।
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