तुम क्यूं चले आते हो…..
तुम क्यूं चले आते हो दबे पांव
मेरे खयालों में ?
अचानक ही अनमनी सी हो जाती हूँ मैं ।
किसी चीज का रहता नही होश,
जागती आँखों से सपने में खो जाती हूँ मै ।
किसी के पूछने पर कि क्या हुआ
एक झूटी सी हँसी हंसती हूँ मै ।
किताब में दबे मुरझाये सूखे फूलों को
हौले से सहलाती हूँ मै ।
किसी पुरानी चिठ्ठी को
आँसुओं से भिगोती हूँ मै ।
यादों के दर्पण पर जमी धूल पर
हलके से आँचल फेरती हूँ मै ।
मेरे वर्तमान को भूल ही जाती हूँ,
खाती हूँ झिडकियाँ ।
आँचल को खींचते माँ माँ कहते छोटे बच्चे को
यकायक सीने में भींच लेती हूँ मै ।
तुम क्यूं दबे पाँव चले आते हो मेरे खयालो में ?
45 टिप्पणियां:
Saral lekin wastavik bhavon se bhari rachna hai. Pathak swayam bhi unhi yadon me kho jata hai.
बढिया प्रस्तुति .. रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !
आँचल को खींचते माँ माँ कहते छोटे बच्चे को
यकायक सीने में भींच लेती हूँ मै ।
तुम क्यूं दबे पाँव चले आते हो मेरे खयालो में ? Na jane kitne hee anmane dilon ke ehsaas bayan kar diye aapne...seedhee,saral bhashame!
बहुत सुन्दर प्रस्तुति........ रक्षाबंधन पर हार्दिक शुभकामनाये और बधाई....
umda rachna..
बहुत बढिया प्रस्तुति .. आपको रक्षाबंधन की बधाई और शुभकामनाएं !!
गहरी अभिव्यक्ति यादों की ओर खींचते हुए
बहुत सुंदर रचना है।
आपको श्रावणी पर्व की हार्दिक बधाई
लांस नायक वेदराम!
यादों के दर्पण पर जमी धूल पर
हलके से आँचल फेरती हूँ मै ।
मेरे वर्तमान को भूल ही जाती हूँ,
खाती हूँ झिडकियाँ ।
आँचल को खींचते माँ माँ कहते छोटे बच्चे को
यकायक सीने में भींच लेती हूँ मै...
बहुत अच्छी रचना...
रक्षाबंधन पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं.
बहुत सुन्दर रचना...
रक्षाबंधन पर पर हार्दिक बधाई और शुभकामनाये.....
बहुत उम्दा रचना...
रक्षा बंधन की हार्दिक शुभकामनाएँ.
बड़ी ही सुन्दर रचना।
kisi ki aad ko is andaaz men yaadgaar prstutikrn ki yeh pehli rchnaa he iske liyen bdhaayi. akhtar khan akela kota rajsthan
क्षणों की याद सदियों तक -क्या भीनी भीनी अनुभूतियों की अभिव्यक्ति है ! वाह !!
संवेदना की प्रस्तुति ही इसकी प्रमुख विशेषता है।
बेहतरीन ख्यालात।
बेहद भावपूर्ण।
आभार स्वीकारें।
भावपूर्ण प्रस्तुति ।
भाई-बहन के मजबूत रिश्तों का पर्व रक्षाबंधन सब भाई-बहनों के रिश्तों मे मजबूती लाये
यादों के दर्पण पर जमी धूल पर
हलके से आँचल फेरती हूँ मै ।
-सुन्दर
आँचल को खींचते माँ माँ कहते छोटे बच्चे को
यकायक सीने में भींच लेती हूँ मै ।
बहुत अच्छी लगी आपकी रचना...
WAAH WAAH WAAH ....TAYI .. KYA KHOOB LIKHA HAI , KYA KAHUN .. MAN KO CHOO GAYA ... BADHAYI
VIJAY
आपसे निवेदन है की आप मेरी नयी कविता " मोरे सजनवा" जरुर पढ़े और अपनी अमूल्य राय देवे...
http://poemsofvijay.blogspot.com/2010/08/blog-post_21.html
sundar rachna
क्या बात है आशा जी. बहुत सुन्दर.
bahut badhiya ..
निशब्द हूँ..............
निशब्द हूँ-----
अच्छी कविता,
शुभकामनाएं !
रक्षाबंधन की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!
बहुत सुन्दर और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो प्रशंग्सनीय है! उम्दा प्रस्तुती!
....दिल को छू लेने वाले भाव है इस कविता में!...सुंदर अनुभूति!
तुम क्यूं चले आते हो दबे पांव
मेरे खयालों में ?
Its Universal TRUTH.
rachnaa...
bahut achhee hai
kavyamaee hai,,,
chitt ko aakarshit karti hai . .
abhivaadan svikaarein
आँचल को खींचते माँ माँ कहते छोटे बच्चे को
यकायक सीने में भींच लेती हूँ मै ।
तुम क्यूं दबे पाँव चले आते हो...
बहुत ही सुन्दर रचना ,बधाई
ek bahut hi umda prastuti.
asan shabdon mein, man ki vyagrata ko dikhane ka adbhut prayatna sarahniya hai.
'तुम क्यूं दबे पाँव चले आते हो मेरे खयालो में?' पढ़कर सुनाई पड़ता है, 'यूं ही आते-जाते रहा करो'
तुम क्यूं चले आते हो…..
तुम क्यूं चले आते हो दबे पांव
मेरे खयालों में ?
ओये होए .....!
आशा जी क्या बात है .....
दुआ है ये हसीं ख्याल यूँ ही आते रहे ......!!
यादों के दर्पण पर जमी धूल पर
हलके से आँचल फेरती हूँ मै ।
मेरे वर्तमान को भूल ही जाती हूँ,
खाती हूँ झिडकियाँ ।
सुन्दर भाव ..स्मृतियों में ऐसा ही होता है ..
अत्यंत सुन्दर और भावपूर्ण.शुभकामनायें.
मर्मस्पर्शी रचना...
भावुक कर देने वाली सुन्दर प्रस्तुति ।
बहुत ही सुन्दर कविता.........
आपका लिंक मिला तथा आप से आप के ब्लाग पर मिलकर काफी खुशी हुई। आभार
वाह बहुत सुंदर भाव. सुरूचिपूर्ण रचना.
इस पोस्ट पर आप सब का इतना ढेर सारा स्नेह पाकर मै धन्य हुई । कृपा बनाये रखिये ।
यादों के दर्पण पर जमी धूल पर
हलके से आँचल फेरती हूँ मै ।
मेरे वर्तमान को भूल ही जाती हूँ,...
ये सच है की हक़ीकत बार बार खैंच लेती है अपनी और ... पर सपने देखना भी बुरा नही ... कुछ पल को दिल में खुशी का एहसास होना गुनाह तो नही ..... अपने बहुत ही कोमल भावनाओं को हक़ीकत से जोड़ दिया है ... लाजवाब ...
यादों के दर्पण पर जमी धूल पर
हलके से आँचल फेरती हूँ मै ।
मेरे वर्तमान को भूल ही जाती हूँ,
खाती हूँ झिडकियाँ ।
आँचल को खींचते माँ माँ कहते छोटे बच्चे को
यकायक सीने में भींच लेती हूँ मै...
waah aasha ji is baar to bahut sundar likha hai .
yaadon aur yatharth mein mann ki kashmakash bahut sunder tarike se bayan huyi hai,waah.
बहुत पसंद आई यह रचना ..देर से पढ़ी यह
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