ये रास्तों पे खून है और चुप खडे हैं हम
संवेदनाएँ शायद सभी खो चुके हैं हम ।
जब कोई गिरता है यहाँ टकरा के कार से
अन देखा उसको करके आगे चले हैं हम ।
वो छेड रहे गुंडे कई, मासूम बहन को
मेरी बहन तो है नही, समझा रहे हैं हम ।
जंजीर उसकी छीन कर गया भाग वो कोई
अपनी ही जान बच जाये ये सोचते हैं हम
मौत तो आनी है सब को औ आनी है एक बार
फिर क्यूं नही इस जिंदगी को जी रहे हैं हम ।
आज का विचार
भय का अभाव धैर्य नही है। धैर्य है इस भय को मात देकर अपनी मंजिल पाने की पूरी कोशिश करना ।
स्वास्थ्य सुझाव
मूंग को अपने खानपान का आवश्यक हिस्सा बनाइये इसमें रक्त की गुणवत्ता बढाने
की क्षमता होती है ।
12 टिप्पणियां:
अभी यहां रात के दो बजे वाले हे जाते जाते देखा तो आप की पोस्ट नजर आई,
आप ने बिलकुल सही लिखा है....
वो छेड रहे गुंडे कई हैं मासूम बहन को
मेरी बहन तो है नही, समझा रहे हैं हम ।
लेकिन यह गलत समझ रहे है, कल हमारी बहिन भी तो हो सकती है फ़िर कोन आयेगा??
बहुत ही सुन्दर कविता के रुप मे आप ने शिक्षा की बात कह दी.
धन्यवाद
bahut sahi kaha aapne !
abhinandan!
बेहतरीन!! वाह!! जमाये रहिये!
बेहतरीन भावबोध
सामयिक चिंता से परिपूर्ण सार्थक रचना के लिये बधाई स्वीकारें
वो छेड रहे गुंडे कई हैं मासूम बहन को
मेरी बहन तो है नही, समझा रहे हैं हम ।
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सच में हम सब में छिपा भय हमें शुतुरमुर्ग बनाता है।
सच लिखा है आपने ..आज कल कोई किसी की मदद नही करना चाहता है
आशा जी आपने सच ही लिखा है । आज कोई इंसान मदद तक नहीं करना चाहता । इंसानियत नहीं रही इंसान में । बहुत अच्छा लगा आप यह लेखन (कविता) । बधाई
सच बात है पीर पराई ही लगती है जब तक ख़ुद पर ना आ बने
जब कोई गिरता है यहाँ टकरा के कार से
अन देखा उसको करके आगे चले हैं हम ।
वो छेड रहे गुंडे कई हैं मासूम बहन को
मेरी बहन तो है नही, समझा रहे हैं हम ।
जंजीर उसकी छीन कर गया भाग वो कोई
बहुत बढ़िया.
bahut sahi kaha aashaji,ab ko apni apni padi hai,apni jaan pyari,dusron ka ka,kahi hum bhi shail hai is mein,pata nahi,
"ZINDAGI" sach mein bilkul aisi hi ho gayi hai... kavita dil ko chhoo jaati hai
ये रास्तों पे खून है और चुप खडे हैं हम
संवेदनाएँ शायद सभी खो चुके हैं हम ।
Beautiful poem!
rgds
Rewa
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