दूसरे दिन सुबह चार बजे उठ गये ८ बजे की फ्लाइट जो पकडनी थी । और फ्लाइट वॉशिंगटन डी सी से लेनी थी । पोर्टलेंड में ३-४ दिन अजित (बडी दीदी का बेटा ) के यहाँ रुकना था । सफर में ८ घंटे लगने वाले थे । हालाँकि वेस्ट कोस्ट तीन घंटे पीछे होने की वजह ले पोर्टलेन्ड समय के अनुसार तो हम साढे ग्यारह बजे ही पहुंचने वाले थे । इतने सब लोगों के लिये खाने पीने की खूब सारी चीजें ऱख लीं और तो और पूरी आलू भी बनाकर ले लिये । ताकि शिकागो एयर-पोर्ट पर जहाँ से पोर्टलेंड की फ्लाइट लेनी थी, खाने पीने के पैसे बच जायें । यकीन मानिये उस आलू-पूरी में वह मजा आया कि कोई भी पिझ्जा विझ्जा उसके सामने पानी भरता नजर आता । तो पोर्टलेंड समय के अनुसार साडेग्यारह बजे हमारी उडान पहुँच गई ।
अजित हमें लेने आया था । अजित की पत्नी सांड्रा अमेरिकन है परंतु उसके घर जाते ही एक सरप्राइझ हमारा इंतजार कर रहा था । सांड्रा ने हमारे लंच के लिये विशुध्द भारतीय खाना तैयार किया था दाल सब्जी और रोटी । कुसुम दीदी की एक दोस्त चित्रा भी पोर्टलेंड में ही रहतीं हैं उन्होने चटनी रायते की व्यवस्था कर दी थी । हम तो इस बहू के कायल हो गये ।
विदेशी होकर भी देशी सासों, ससुरों के लिये इतनी मेहनत ।
खाने के बाद अजित हमें एक सुंदर सा जलप्रपात (फॉल) दिखाने ले गया । नाम आप चित्र में देख सकते हैं । बहुत ही सुंदर फॉल और खूबसूरत दृश्य । मै, मेरे पती सुरेश और देवर प्रकाश ऊपर तक जाकर बिलकुल नजदीक से फॉल देख कर आये । (चित्र शो) इसके बाद अजित हमें उसका लॉ कॉलेज दिखाने ले गया । सबसे पहले अमेरिकन ट्रेव्हलर्स लुईस और क्लार्क के नाम पर है यह कॉलेज और बहुत ही खूबसूरत परिसर । बहीं से देखा बर्फ से ढका माउन्ट सेंट हेलन ।(चित्र शो)
दूसरे दिन नाश्ते के बाद हम सब अजित के साथ रोज़-गार्डन गये । कुसुम दीदी घर पर ही रुक गईं बहू की मदद के लिये । और क्या कमाल का रोज़-गार्डन था वह । जिधर तक नजर जाये गुलाब ही गुलाब । छोटे गुलाब बडे गुलाब पीले गुलाब, सिंदूरी गुलाब, जामुनी गुलाब, शेडेड गुलाब, गुलाबी और सफेद तो थे ही उसके अलावा मेरून के विविध शेडस् लाल के विविध शेडस् एक लाल गुलाब तो इतना गहरा कि उसे नाम देना पडा ब्लेक रोज़ । करीब २-३ घंटे उस गुलाबी बागीचे में घूमते रहे । जिधर देखती हूँ उधर तुम ही तुम हो वाला हाल था । यहाँ हर साल गुलाबों की प्रतियोगिता होती है और सर्वोत्तम गुलाब को इनाम भी मिलता है और वह इस बागीचे का हिस्सा बन जाता है । ऐसे कई प्राइझ विनिंग गुलाब (चित्र शो)
इस बागीचे में देखने को मिलते हैं । हम सब ने खूब तसवीरें खींची और खिंचवाईं । ( स्लाइड शो देखें और साथ साथ दुर्गा स्तुति का आनंद लीजीये) ।
अगले दिन हमें स्टर्जन एक्वेरियम और सामन लेडर देखने जाना था । तो हम सुबह सुबह तैयार होकर चल पडे । तो पहले गये स्टर्जन पार्क यह एक एक्वेरियम है जहाँ बडी बडी स्टर्जन मछलियाँ हमने देखी । उनकी हेचरीज भी देखीं । फिशरीज़ की पढाई करने के बावजूद कभी ऐसी बडी मछलियाँ प्रत्यक्ष देखने का मौका नही लगा था । बहुत मजा आया । वहीं पर कुछ काली और मोरपंखी रंग की बतखें भी देखी ।(चित्र शो)
फिर गये पॉवर हाउस जहाँ पर हमें सामन सीढी (Salmon Ladder) देखने जाना था । यह प़ॉवर हाउस कोलंबिया नदी पर स्थित है और इसका पात्र इतना चौडा है कि समुद्र ही लगता है । सामन एक समुद्री मछली होती है जो सिर्फ प्रजनन के लिये मीठे पानी में सही कहें तो एस्चूरी (जहां नदी समुद्र से मिलती है) में आती हैं और यह समुद्र से नदी तक का सफर बहुत मुश्किल होता है क्यूं कि प्रवाह के विरुध्द तैर कर आना पडता है (नदी का पानी तो तेजी से समुद्र से मिलता रहता है) इनकी सुविधा के लिये बांधों में इस तरह की सीढीयाँ बनाई जातीं हैं ताकि इन मछलियों का प्रवास थोडा बहुत सुखकर हो और प्रजनन में बाधा न पडे । इसमें भी इन्सान का निजी स्वार्थ तो होता ही है । (चित्र शो)
ये सीढियाँ इस तरह बनाई जातीं हैं कि मछली नदी की तरफ आगे को चली जाये और पानी भी इस तरह छोडा जाता है कि उसमें वेग तो हो पर इतना भी नही कि मछलियाँ थक कर वहीं दम तोड दें । चालीस साल पहले पढी हुई बातों को सामने घटते देखा तो बडा मजा आया । ये मछलियां प्रजनन के बाद थक कर दम तोड देती हैं पर उनके बच्चे थोडी ताकत आते ही वापस समुद्र में चले जाते हैं ।(चित्र शो)
घर आये तो लंच तैयार था । खाना खाया गप्पें मारीं ओर थोडा लेटे । फिर अजित और सांड्रा का पियानो सुना । दोनो बहुत अच्छा पियानो बजाते हैं । अजित ने तो इंजीनियरिंग और लॉ के साथ साथ म्यूजिक मेजर भी किया है । (चित्र शो)
अगले दिन अजित हमें जंगल में ट्रेल-वॉक के लिये ले गया । जिंदगी में पहली बार ट्रेल पर गये। वैसे तो छोटी सी ट्रेल थी कोई २० मिनट की वॉक पर जंगल काफी घना था । एक पगडंडी पर चल रहे थे हम । तरह तरह के पेड पौधे ऊँचे ऊँचे भी इतने कि मानो आसमान छू रहे हों और छोटे झाडीनुमा भी और बीच के से पेड भी जैसे हमारे यहाँ आमतौर पर दिखते हैं । (चित्र शो)
खूब इच्छा थी जानने की कौनसा पेड कौनसा है , पर मेपल, ओक, पाइन और सायकस और क्रिसमस ट्री के अलावा ज्यादा किसी को कुछ मालूम नही था । धूप बहुत छन छन के आरही थी । इसीसे सब बहुत सुखद लग रहा था । पक्षी थे पर बडे पशु नही दिखे गनीमत । मोटी मोटी गिलहरियाँ जो सब जगह दिख जातीं हैं अवश्य दिखीं । रात का खाना हमारा चित्रा और कुमार (कुसुम दीदी के मित्र) के घर था । दूसरे दिन सुबह ११ बजे की हमारी ट्रेन थी सीएटल के लिये । साँन्ड्रा ने हमारे टिकिट पहले से ही निकाल रखे थे ।
(क्रमश:)
11 टिप्पणियां:
सुबह सुबह अपनी भी सैर हो गई जी .:) बहुत रोचक लगा इसको पढ़ना
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आज टिप्पणी अवकाश है !
जंगल ट्रेल का आनन्द आपने लिया। हमारी तो वह हसरत ही है अभी!
दिलचस्प है.....
काफी रोचक लगा, मैंने जैसा कहा कि सही वीडियो के कारण और भी अच्छा लेकिन फिर कहूंगा कि अंतिम वाला वीडियो बहुत बड़ा था खुल ही नहीं पाया पूरा।
सुन्दर विवरण हैं।
पोर्ट लैंड दो तीन बार जाना हुआ है लेकिन ट्रेल पर कभी नहीं गया...बहुत रोचक जानकारी दी है आपने...और शिकागो में आलू पुरी खाने का मजा जिसने खाया है वो ही जान पाता है...
नीरज
अच्छा चल रहा है यात्रा वृतांत-जारी रहिये.
बहुत अच्छा वृतांत... आगे भी जारी रखें.
Beautiful Pic.s with very good description ...Asha ji ,I'm sure you enjoyed the trip.
the Roses were marvellous !!
Regards,
L
nice trip you visited
added video placed us at your venue
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