मैने भी तो चाहा था बॅग ले के स्कूल जाना
अम्मा ने कह दिया था मुन्ने को है सुलाना
मेरी भी तो ललक थी हो मेरी भी सहेली
खेलूं मैं उसके संग संग बूझूँ कोई पहेली
पर रोटी सेंकने की बारी थी अब तो मेरी
उसके भी पहले था मुझे, इस चूल्हे को जलाना
मेरी भी तो चाहत थी पढूँ मै भी, उनके जैसी
पहनूं वो स्कूल की ड्रेस, कविता सुनाऊँ वैसी
इन कापी किताबों में फेकें क्यूं बापू पैसा
लडकी को तो वैसे भी ससुराल को है जाना
मैं भी तो चाहती हूँ मैं भी बनू कलक्टर
या फिर बनू मै टीचर या कोई लेडी डॉक्टर
झाडू है घर में देना, पानी है भर के लाना
सपनों को तो मेरे फिर मन में ही है रह जाना
आज का विचार
मातृभाषा का अनादर माँ के अनादर समान है
जो मातृभाषा का अनादर करे वह देश-भक्त नही हो सकता ।
स्वास्थ्य सुझाव
पालक, खरबूजा, पपीता, गाजर, कद्दू और शकर कंद को
अपने भोजन में अवश्य शामिल कीजीये । ये आपको
केंसर जैसे बीमारियों से बचाके रखेंगी ।
18 टिप्पणियां:
bahut acchi rachana ,
badhai aap ko
कोमल मन की अभिव्यक्ति। फिर यह कोमलता सूख जाती है उन लड़कियों में। जल्दी ही।
वाह! अति तरल!
bahut sundar abhaar
बहुत सुंदर.
भाव भीनी रचना .. आज का विचार और स्वास्थ्य सुझाव भी हमेशा की तरह उत्तम ...
सुंदर । आपकी संवेदनाओं को नमन्
मैं भी तो चाहती हूँ मैं भी बनू कलक्टर
या फिर बनू मै टीचर या कोई लेडी डॉक्टर
झाडू है घर में देना, पानी है भर के लाना
सपनों को तो मेरे फिर मन में ही है रह जाना
अब इन सपनों को पूरा होना ही चाहिए
बहुत ही सुंदर रचना है दिल को छु लेने वाली !!
yah kavita bahut hi pasand aayi...ye mere vichaaron se mel khate huye rangon me hai.lekin vishay aour yah samsya bahut gambhir hai...
बहुत ही संवेदनशील प्रस्तुति.काश सभी ने आप जैसी दृष्टि पाई होती.
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एक अच्छी सोच ! काश ये सोच उन बच्चों मे समाहित हो जाती . लेकिन लेखक एक सोच तक ही सीमित रह सकता हैं . वो कहते हैं न ... कि सफाई मे रहने वाले लोग क्या जाने कि गंदगी क्या हैं .
एक सुन्दर रचना .......
is bachhi ki aankhe apki kavita ka saar kah gayi hai.
क्या बात है।
बहुत बड़िया कविता है इसे नारी ब्लोग पर डालिए न
क्या रक्त शर्करा होने पर
खरबूजे का सेवन किया जा सकता है
अगर हां तो कितनी मात्रा में
मीठा या फीका.
कभी कभार खरबूजा खाने में कोई हर्ज नही पर उससे आपकी शुगर तो थोडी बढेगी।
धन्यवाद
फीका हो खरबूजा तब भी
गोली खा रहे हैं जब भी.
और हम जो गोली खा रहे हैं
वो भी तो कुछ करेगी धरेगी
या यूं ही शरीर में घुस कर गलेगी
अविनाश वाचस्पति
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