जाने कैसे आये ये दिन
सूने सूने मेरी गली से
वर्षा की सफेद बदली से
मेरी आंखों के पुतली से
नि:स्तब्ध और भाव विहीन। जाने कैसे....
गरमी के तपते मरुथल से
झरना जैसे बिन कल कल के
नैना जैसे बिन काजल के
लेखनी मेरी, से रस हीन । जाने कैसे....
लंबी तपती दोपहरी से
किसी बिरहन की विभावरी से
खाली खाली गाँव गली से
तरु शाखाएँ पर्ण विहीन । जाने कैसे....
ना इच्छा ना कोई आशा
ना ही मन में कोई निराशा
शब्द न सूझें, कैसी भाषा ?
जल ही नही तब कैसे मीन । जाने कैसे....
आज का विचार
बोलने से पहले हम सोचें कि क्या, कब, और कहाँ
बोल रहे हैं ।
स्वास्थ्य सुझाव
केल्शियम और विटामिन सी के रोज सेवन से
रक्त में शकर्रा की मात्रा कम रखने में मदद मिलती है ।
16 टिप्पणियां:
Patjhad ke baad hi to basant aata hai.
aaj ke vichaar smarniya hain.
उम्दा रचना एवं बेहतरीन स्वास्थय सुझाव. आभार.
hi udasi ka bara aaj,nehemi hasnarya shabdan madhe,khup bhavpurna kavita,kadhi kadhi man je bolon jate,pratek shabdat mandale aahe,rakh rakh tya unhat baslyachi janiv,sawan sari yenyachi vaat.khup sundar kavita.
आज का विचार साध लें तो जिंदगी सुधर जाए।
इच्छा ना कोई आशा
ना ही मन में कोई निराशा
शब्द न सूझें, कैसी भाषा ?
जल ही नही तब कैसे मीन । जाने कैसे....
आप को निराशा सूट नही करती.......
aapne bahut dino baad likha..lekin likha to bahut hi achha likha..
ना इच्छा ना कोई आशा
ना ही मन में कोई निराशा
शब्द न सूझें, कैसी भाषा ?
जल ही नही तब कैसे मीन । जाने कैसे....
सुन्दर
अति सुन्दर भाव-विभोर रचना । बधाई स्वीकारें
बहुत खूब आशा जी ..पर नाम है जब आशा तो निराशा क्यों :)जीवन है यूं ही चलता है .कविता मन के भावों को कहती हुई अच्छी लगी और सुझाव उस से भी जायदा अच्छा :)
कैल्सियम और विटामिन सी कहां तलाशें
कविता से ज्यादा
तो आपकी नसीहतें
ज्यादा लुभाने लगी हैं
chemist की दुकान में मिल जायेंगी दोनो गोलियाँ । और नसीहतें नही भाई सुझाव और बडे बडे लोगों के अच्छे विचार नसीहत लगे तो माप कर दीजीये मेरा ऐसा कतई इरादा नही है ।
माफ
जाने कैसे आये ये दिन
सूने सूने मेरी गली से
जिदंगी मे आशा रखना ये अपना जिदांपन दर्शाता है।
मायुस,खफ़ा जिदंगी वो जिते है...जिनकी जिदंगीमे उन्होने सिर्फ़ कफ़न के सिवा कुछ सोचाही नही...था...
आपकी कविता का आशय बहोत depth गहराई तह
पहुचाता है..जिदंगीकी वास्तवता क्या है ये आदमी कभी सोचता नही ...
जब जिदां है तो मरने की सोच क्यु रखना?
हा ...जिदगी तो एक पेड की तरह है..जो कभी मुरझाजाती है मगर बारीश की बुदं पेडको फ़िर से तरोताजा...नवजीवन देती है...
बस्स...जिवन की सोच कैसे होनी चाहीये ...आशाजी आपके इस गहन कवितासे पता
चलता है ...
पढने वाले की सोच से बाहर ये सोच है...हा, तो आपकी कविता तो वाकही बहोत तारीफ़ेकाबील ,अछी है..
प्रा.सचिन पाटील
बहुत सुंदर विचार अभिव्यक्ति आभार
एक अच्छी और उमदा रचना सामने आ गई!....आशा करती हूं आशा ताई, कि आगे भी ऐसा ही हमें लाभ होता रहेगा!
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