छुन छुन बजती पैंजनिया
चलने को तत्पर मुनिया
एक एक कर पाँव उठाती
पाँव तले उसके दुनिया
डग मग डग मग भरती है डग,
डोल रही जैसे नैया
आँखें इधर उधर दौडाती
फैलाती जाती बहियाँ
ऱेशम से अलक उडते हैं
मुझे बुलाती है मैया
और जब मै बाहें फैलाऊँ
झट से डाले गल बहियाँ
छुन छुन बजती पैंजनिया
आज का विचार
केवल पशु ही अपने लिये जीता है
मनुष्य वही है जो औरों के लिये जीता ही नही
मरता भी है ।
स्वास्थ्य सुझाव
घुटने के दर्द के लिये सरसों के तेल से
रोज पाँच बार क्लॉक वाइज और पाँच
बार एन्टि-क्लॉक वाइज मालिश करें काफी आराम
मिलेगा ।
12 टिप्पणियां:
अरे वाह! "ठुमुकि चलत रामचन्द्र बजत पैजनियां" जैसा आनन्द है!
बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती
bahut sundar,khup chan chan,payat painjan ghalun chalate majhi rani.
छुन छुन बजती पैंजनिया..अरे वाह!! छुन छुन हमें भी सुनाई दी..बहुत बढिया/
कविता पढ़ते समय छुन छुन बजाती पैंजनियाँ बजाती मुनिया की झलक दिखाई दे गई। बहुत खूब...
दीपिका जोशी 'संध्या'
bhut sunder rachna hai
bahut hii sundar
सुन्दर यों ही सुन्दर नहीं होता
ऐसी कविताओं में है भिगोता
लगाओ गोता मिलेगा आनन्द
कविता और चित्र का संगम
कभी भी कहीं भी बेमज़ा नही होता
ऱेशम से अलक उडते हैं
मुझे बुलाती है मैया
और जब मै बाहें फैलाऊँ
झट से डाले गल बहियाँ
वाह बहुत सुंदर रचना
छुन छुन बजती पैंजनिया
एक बार पढ़ के फ़िर गा के पढी .बहुत ही प्यारी रचना है !!
एक एक कर .....वाह बचपन का बहुत खूबसूरत चित्रण किया हॆ आपने इस कविता मे
विक्रम
आप सबका अनेक धन्यवाद.
हम इंतजार कर रहे है कि कब मेरे घर भी बजे ऐसी ही पैजनियां, आप भाग्यशाली हैं
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