कैसा ये आया है वसंत
सर्दी में ठिठुरा ठिठुरा सा
धुंद की गीली चादर ओढे
कोई बूढा झुका हुआ सा
कहाँ खो गई धूप गुनगुनी
कहाँ छुप गई हवा बसंती
सिकुड गई नन्ही सी कलियाँ
बिन सूरज़ के कैसे खिलती
पंछी हुए बावले फिरते
तितली की हिम्मत ना होती
कैसे ढूंढे बाग बगीचे
ना कोई संगी ना कोई साथी
कोयल भी है चुप्पी साधे
भौरों नें छोडा गुंजारव
सर्दी ने सबको जकडा है
आसमंत सब नीरव नीरव
कैसा ये आया वसंत
जब गुम हो गये रंग सजीले
शाल दुशाले चादर ओढे
दुबक गये वासंती चोले
8 टिप्पणियां:
बढ़िया कविता। सचमुच वसंत की आहट तक महसूस नहीं हो रही है। इधर भी बीते कई बरसों की सबसे ठंडी फरवरी है यह।
सुन्दर रचना बधाई
विक्रम
आप भारत में हैं क्या? यहां के वसन्त की यही दशा है।
khup chan kavita aahe,kharch ya varshi vasant rutu,asach aahe,thand,berang.pan rutu badaltat mhane,gunguni dhoop pan yeilaxh ki,hona.mag phulpakharu pan shodhel,baga.
http://mehhekk.wordpress.com/
आप कहीं भी हों
दिल आपका भारत में है
यही कहती है कविता.
आई सर्दी वसंत गया हट
सर्दी जाये तो वसंत जाये डट.
कोयल भी है चुप्पी साधे
भौरों नें छोडा गुंजारव
सर्दी ने सबको जकडा है
आसमंत सब नीरव नीरव
अभी तो ठंड से बुरा हाल है :) इस लिए वसंत का बेसब्री से इंतज़ार है ..अच्छी लगी आपकी कविता :)
बढ़िया कविता!!
सुंदर रचना.
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