शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2008

मुनिया

छुन छुन बजती पैंजनिया
चलने को तत्पर मुनिया
एक एक कर पाँव उठाती
पाँव तले उसके दुनिया

डग मग डग मग भरती है डग,
डोल रही जैसे नैया
आँखें इधर उधर दौडाती
फैलाती जाती बहियाँ

ऱेशम से अलक उडते हैं
मुझे बुलाती है मैया
और जब मै बाहें फैलाऊँ
झट से डाले गल बहियाँ

छुन छुन बजती पैंजनिया

आज का विचार
केवल पशु ही अपने लिये जीता है
मनुष्य वही है जो औरों के लिये जीता ही नही
मरता भी है ।

स्वास्थ्य सुझाव
घुटने के दर्द के लिये सरसों के तेल से
रोज पाँच बार क्लॉक वाइज और पाँच
बार एन्टि-क्लॉक वाइज मालिश करें काफी आराम
मिलेगा ।

12 टिप्‍पणियां:

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

अरे वाह! "ठुमुकि चलत रामचन्द्र बजत पैजनियां" जैसा आनन्द है!

ghughutibasuti ने कहा…

बहुत सुन्दर !
घुघूती बासूती

mehek ने कहा…

bahut sundar,khup chan chan,payat painjan ghalun chalate majhi rani.

Udan Tashtari ने कहा…

छुन छुन बजती पैंजनिया..अरे वाह!! छुन छुन हमें भी सुनाई दी..बहुत बढिया/

दीपिका जोशी 'संध्या' ने कहा…

कविता पढ़ते समय छुन छुन बजाती पैंजनियाँ बजाती मुनिया की झलक दिखाई दे गई। बहुत खूब...

दीपिका जोशी 'संध्या'

Keerti Vaidya ने कहा…

bhut sunder rachna hai

प्रशांत ने कहा…

bahut hii sundar

अविनाश वाचस्पति ने कहा…

सुन्दर यों ही सुन्दर नहीं होता
ऐसी कविताओं में है भिगोता
लगाओ गोता मिलेगा आनन्द
कविता और चित्र का संगम
कभी भी कहीं भी बेमज़ा नही होता

रंजू भाटिया ने कहा…

ऱेशम से अलक उडते हैं
मुझे बुलाती है मैया
और जब मै बाहें फैलाऊँ
झट से डाले गल बहियाँ

वाह बहुत सुंदर रचना

छुन छुन बजती पैंजनिया

एक बार पढ़ के फ़िर गा के पढी .बहुत ही प्यारी रचना है !!

singh ने कहा…

एक एक कर .....वाह बचपन का बहुत खूबसूरत चित्रण किया हॆ आपने इस कविता मे
विक्रम

Asha Joglekar ने कहा…

आप सबका अनेक धन्यवाद.

Anita kumar ने कहा…

हम इंतजार कर रहे है कि कब मेरे घर भी बजे ऐसी ही पैजनियां, आप भाग्यशाली हैं