शुक्रवार, 7 दिसंबर 2007

जिंदगी की शाम

जिंदगी की शाम हो गई
जिंदगी ही जाम हो गई
न आगे बढे ना पीछे मुडे
कोशिशें नाकाम हो गई । जिंदगी की......

हाथ छूटे, साथ छूटे
रिश्ते सारे निकले झूटे
काँटे बन गये सारे बूटे
बीच रस्ते में खडे हम
भीड में सुनसान हो गई । जिंदगी की......

चुप लगाये हम बेचारे
अब तो आगे ही हमारे
नाकामियों के किस्से सारे
लोग गिनवाने लगे हैं
जान ही हलकान हो गई । जिंदगी की

रोशनी कम, आंख है नम
सांस भी आती है थम थम
क्या खुशी है और क्या गम
किसको फुरसत है कि देखे
रात क्यूँ सरे शाम हो गई । जिंदगी की......

देह अपनी थकी हारी
रूह बे गैरत बिचारी
पूछती है बारी बारी
फूलों वाली थी ये क्यारी
खिली रहती थी हमेशा
कैसे अब वीरान हो गई । जिंदगी की......

आजका विचार
सफलता वही होती है जिसमें इन्सान अपनी मर्जीसे अपनी जिंदगी जीता है ।

स्वास्थ्य जानकारी

बिच्छू का जहर अब केन्सर के इलाज में । इसमें एक विशेष किस्म का प्रोटीन पाया जाता है जो केवल केन्सरस कोशिकाओं से ही बंधता है और उन्हे नष्ट करता है ।।शोध में इसका प्रयोग अब ब्रेन ट्यूमर्स पर किया जा रहा है और सफलता प्राप्त हुई है
(ये महज़ जानकारी है, इलाज नही )।

13 टिप्‍पणियां:

मीनाक्षी ने कहा…

रूह को बे गैरत न कहिए... उसे भी पुराने कपड़े बदल कर नए लिबास में आने का अधिकार है...
आज का विचार बहुत अच्छा है...

आलोक ने कहा…

आज का विचार - काफ़ी पसंद आया।

Keerti Vaidya ने कहा…

APKI RACHNA ...KUCH SEEKHA GAYI..

THANXS FOR SHARING IT

Unknown ने कहा…

देह अपनी थकी हारी
रूह बे गैरत बिचारी
पूछती है बारी बारी
फूलों वाली थी ये क्यारी
खिली रहती थी हमेशा
कैसे अब वीरान हो गई ।
सुन्दर........

अमिताभ मीत ने कहा…

बे गैरत रूह !!
अच्छा है. लेकिन रूह की तो ये फ़ितरत है. निभाने की ज़रूरत, या कभी कभी मजबूरी, तो देह की ही है.
बहुत खूबसूरत रचना.

Sanjeet Tripathi ने कहा…

सुंदर!!

आज का विचार वाकई अच्छा है।

रंजू भाटिया ने कहा…

देह अपनी थकी हारी
रूह बे गैरत बिचारी
पूछती है बारी बारी
फूलों वाली थी ये क्यारी
खिली रहती थी हमेशा
कैसे अब वीरान हो गई

सही में ज़िंदगी कि शाम हो गई :) बहुत सुंदर गीत है यह इसको गुनगुनाने का दिल हुआ पढ़ते ही
और उस के बाद जब आज का विचार पढ़ा तो बहुत ही अच्छा लगा !!

Sajeev ने कहा…

आशा जी आज ये निराशा के स्वर क्यों

प्रशांत ने कहा…

अपने जब बिछड जाते है, तो ऐसे विचार मन को सताते रहते है| आपके अजीज़ दोस्त अब इस दुनिया में नही रहे, इस बात का असर तो होगा ही| समय के साथ सब ठीक हो जायेगा| आप के दुख में मैं शामिल हूँ|

Asha Joglekar ने कहा…

आप सबका बहुत धन्यवाद । संजीव जी आखिर इन्सान ही तो हैं हम सब ।

महेश कुमार वर्मा : Mahesh Kumar Verma ने कहा…

जिंदगी की शाम हो गई बहुत अच्छा लिखे हैं।
बहुत- बहुत धन्यवाद।

sachin patil ने कहा…

रोशनी कम, आंख है नम
सांस भी आती है थम थम

व्वा व्वा जबरदस्त है..
और आगे आप कहती है..

क्या खुशी है और क्या गम
किसको फुरसत है कि देखे
रात क्यूँ सरे शाम हो गई । जिंदगी की......

व्वा! क्या लाईने है I मूझे ये बहोत अच्छी लगी जो उपर फ़िर दोहराई हैI

आजका विचार
सफलता वही होती है जिसमें इन्सान अपनी मर्जीसे अपनी जिंदगी जीता है ।
आजका विचार
किसी वस्तु या व्यक्ती का अभाव ही दु:ख है ।

मेरे विचार : आपके उपरों विचारो पर मेरी टिप्पनी
अच्छे विचार ही मानवता का प्रतिक है जो उसका असलियत जीवन है परंतू वो मोहमायासे यह भुल चुका हैI
आपली हिदिं भाषा खूप चांगली आहे.माझ्या मते दिल्लीकडे हिदिं भाषा खूप चांगली बोलली जाते.आपली हिदिं खूप स्वच्छ आहे.

प्रा.सचिन पाटील

Batangad ने कहा…

आशाजी
भाव अच्छे हैं लेकिन, शाम की खूबसूरती ही अच्छी होती है। शाम में निराशा भर जाए तो, कुछ ठीक नहीं।