हम ने अपने
होटल वापिस आ कर खाना खाया और सो गये क्यूं कि ६ बजे निकलने के लिये साढे चार बजे
तो उठना ही होगा । दिन भर का सफर था तो नहाना तो जरूरी ही था दोनों को ।
हम सोये तो पर यका यका एक तीखे अलार्म की आवाज़ ने हमें जगा दिया। घडी देखी तो दो
बजे थे। अब यह क्या हुआ, लग तो रहा था कि फायर अलार्म है। अलार्म बजता ही रहा
कोई २५ मिनिट तक, हम लॉबी में जा कर देख
भी आये सभी लोग टहल रहे थे पर थोडी देर बाद की अनाउन्समेन्ट से पता चला कि किसी
फॉल्ट की वजह से अलार्म ट्रिगर हो गया है और वे उसे सही करने की कोशिश कर रहे हैं
कोई आग वाग नही लगी है पर नींद तो उडा ही दी थी। सुबह तो उसी समय निकलन था
क्यूंकि जाने के लिये ६ घंटे और आने के लिये ६ घंटे लगने वाले थे । हम जा
रहे थे दक्षिणी केनियन्स देखने। मकरंद ने बताया था कि वहीं जाना क्यूं कि वहां I-Max
पर एक मूवी दिखाई जाती है जिसमें
ग्रेंड-केनियन्स के बारे में उनका पूरा इतिहास भूगोल सब बताया जाता है।
तो उठे साढेचार बजे और नहा धो कर तैयार हो कर
पांच मिनिट पहले ही नीचे पहुंच गये। चूंकि इतने जल्दी सफर शुरु हुआ था तो हम दो
घंटे के सफर के बाद रुके, बेस्टो में, और
कॉफी और नाश्ता किया। हम अब एरिझोना में
सफर कर रहे थे। यहीं कोलारेडो नदी पर जग प्रसिध्द हूवर बांध बना है। जाते हुए तो
हम सिर्फ इसका बडा सा रिझरवॉयर ही देख पाये पर हमारे गाइड ने आश्वस्त किया कि
वापसी पर हम जरूर हूवर बांध के दर्शन कर पायेंगे। हमारा सफर लंबा था पर हमारे
ड्राइवर और गाइड ने बिलकुल बोरियत नही महसूस होने दी। उसने बीच बीच में हिंदी गाने
भी चलाये जिनका स्टॉक उसके पास सीमित ही था। यहां हमने फिर से वे जोशुआ नामके पेड
देखे जो कि हाथ उठा कर अभिवादन करते से प्रतीत होते हैं।
ग्रेन्ड
केनियन्स अपने
विराट आकार और अनोखे अदभुत रंगों के कारण जो दुनिया के सात आश्चर्यों में से एक माना जाता है, एरिझोना राज्य में स्थित है । यह
कोई १८ मील चौडी और २७७ मील लंबी और एक मील गहरी हैं। यह
उत्तरी और दक्षिणी दो भागों में बंटी हुई है। उत्तरी भाग में स्काय वॉक की सुविधा भी है और दक्षिणी केनियन्स में आयमेक्स मूवी की। वैसे तो हम केनियन्स पहले भी देख चुके थे हवाइ में
पर इनकी बात ही कुछ और है और ये अपने नाम की तरह ही ग्रेंड हैं। एकदम भव्य दिव्य।
ये केनियन्स कोलारेडो नदी के कारण बनी हैं। कई वर्षों तक (करीब 170 लाख) पानी इन
पहाडों पर से वेग से गुजरने के कारण बनी हैं। हूवर बांध के कारण यह नदी
केनियन्स के इलाके में एकदम पतली हो गई है।
कोई साढे बारह
बजे हम पहुंचे ग्रेन्ड केनियन्स के विजिटर सेन्टर में वहां पहले लाइन में लग कर
जल्दी जल्दी खाना खाया और फिर देखी वह मूवी जो नेशनल जिओग्राफिक की बनाई हुई है।
बहुत ही कमाल की मूवी है जो कि प्रागैतिहासिक काल से शुरु होती है जब यहां के मूल
निवासी प्यूब्लो जाति के लोग यहाँ स्वच्छन्दता से विचरते थे और यहां के प्राणियों
के साथ ताल मेल बिठाये हुए थे । हालांकि शिकार ही उनका भोजन जुटाने का मुख्य जरिया
था। इन लोगों की भाषा में केनियन्स का नाम था ऑन्गटुपका । ये लोग यहीं गुफाओं में
रहते थे। उसके बाद का वृतांत बताता है कि कैसे फिर और प्रवासी यहां आये और किन किन
कठिनाइयों का सामना उन्हे करना पडा । इस मूवी को देख कर पैसा वसूल हो गया। इसकी झलक आपको
यू ट्यूब पर मिल जायेगी। ( विडियो)
वहां से निकल
कर हमने सेंटर में बने हुए नक्शे को देखा जिनमें इन केनियन्स के विभिन्न आकारों के
कारण उन्हें दिये गये अलग अलग नामों की जानकारी थी। इनमें से एक विष्णु टेम्पल
नामका भी था । फिर हम गये केनियन्स देखने। सेंटर से हम
पैदल ही चल कर गये क्यूं कि केनियन्स पार्क कोई पांच मिनिट के चलने पर ही आ गया।
हम थोडा चल कर गये और देखा एक विराट, भव्य, दिव्य प्राकृतिक अजूबा। ये रंगीन
पहाडियाँ (पहाड कहना ही उचित होगा) और ये घाटी जो उतनी ही ऊबड खाबड और पथरीली और
बीच में पतली सी धारा कोलेराडो नदी की जो कहीं कहीं से ही नजर आती क्यूं कि सब दूर
से तले तक नजर पहुंचती ही नही थी। यह नदी पतली हूवर बांध की वजह से है। वरना जो
मूवी हमने देखी उसमें जो कोलारेडो नदी है कितनी तूफानी और प्रचुर पानी वाली। अबी
भी कहीं कहीं पानी तो है ही क्यूं कि रिवर वॉटर रेफ्टिंग और बोटिंग के इश्तेहार तो होते ही हैं। इन
पहाडियों के कितने रंग लाल, नारंगी, हरे (पेडों की वजह से), भूरे मटमैले और सफेद
झक। केनियन्स देखने के लिये एक गैलरी-नुमा चलने का रास्ता बना हुआ है जहां से बीच
बीच में सीढियां हैं जिनसे नीचे की ओर जाकर और तले तक देख सकते हैं और फोटो विडियो
ले सकते हैं। (विडियो)
चारों तरफ बनी
ये केनियन्स देखीं जो पानी से कटने के कारण बनी हैं। हमने कोई डेढ घंटा ही इन
केनियन्स को देखने में गुजारा । विभिन्न रंगों, आकार प्रकार की यह कटी पहाडियां और
घाटी लोगों की नजरों में अलग चित्रों के सृजन करती हैं इसी से इनके विभिन्न नाम
है। हमने सफेद पहाडियों में एक पहाडी देखी जो भुवनेश्वर के बिंदुसागर मंदिर की तरह
दिखती है। (विडियो केनियन्स)
हमें कोई डेढ घंटे बाद वापिस जाना था। तो
अनिच्छा से ही हम वापिस चल पडे। हम दोनो ही रह गये थे हमारे ग्रूप से तो और कोई
हमारे साथ नही था आते हुए रास्ता जितना सरल लगा था वापसी मे वही हमें बस तक नही
पहुंचा सका या हम नही पहुंच पाये इधर बस छूटने का समय हो रहा था। यह तो अच्छा हुआ
कि हमारी गाइड सूझन का फोन नंबर हमने ले रखा था। फिर हम घूम घाम कर वापिस विजिटर
सेंटर पहुंचे और उसको वहां से पोन किया कि हमें बस नही मिली तो हमें सेंटर से ले लो।
सूझन नें कहा वहीं रुको मै आती हूँ। और इस तरह हम उसके साथ बस तक पहुंचे। वहां जाने पर पता चला कि
हमारे तरह काफी लोग रास्ता भटक गये थे और बस हमारी आधे घंटे देर से ही चल पाई। वापसी पर हमने हूवर
डैम का विडियो किया। एक जगह पहाडी पर एक बिल्ली जैसी आकृति बनी हुई थी। फिर हम
रुके रूट 66 पर जो अमरीका कि पहली नेशनल हायवे है। इसको विल रॉजर्स हाइ-वे या मदर रोड भी कहते हैं।
यह शिकागो, इलिऩॉय से सान्ता मॉनिका केलिफोरनिया तक जाती है और बीच में मिसूरी,
कन्सास, ओक्लाहोमा, टेक्सास, न्यू मेक्सिको और एरिझोना से गुजरती है। हमने इसका एरिझोना वाला छोटा सा हिस्सा देखा और वहां एक जगह एक दुकान में रुके जो इसके
शुरुआत से है। इसकी पूरी कहानी पर हमने बस
में एक फिल्म भी देखी। उस दूकान में जब लोग खरीदारी कर रहे थे तो काफी समय गुजारा
और एक मुंबई के पंजाबी कपल ओर उत्तर हि्दुस्तान के मराठी कपल से मिले जब कि हम सारा वक्त उलटा ही सोच रहे थे। बडा मज़ा
आया। हमनेे आर्थ्राइटिस के बारे में एक दूसरे के अनुभव भी बांटें (विडियो रूट 66)।
शाम को करीब सात बजे हम वापिस लास वेगास पहुंचे
और जल्दी से खा पी कर रात को फिऱ आस पास के होटल की रोशनाई देखने घूमे। इस बार
हमारे अपने होटल का भी विडियो किया।
कलस सुबह
हमारी वापसी थी।
सुबह जल्दी
उठना था । क्यूं कि लंबा रास्ता तय करना था। सब को वापिस अपने अपने गंतव्य पर जाना
था कुछ लोग जो भारत से सीधे आये थे उनको आगे भी घूमना था न्यूयॉर्क बोस्टन वगैरा। बहुत
से लोगों को लॉस एन्जिलिस जाना था। बचे हुए लोगों मे से अधिक तर सैन फ्रान्सिस्को
के थे और हमें जाना था कूपरटिनो।
(क्रमशः)
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