राह खत्म है फिर भी चल रहा हूँ मै
कागज़ नही पर शब्द ही छलका रहा हूँ मै।
आँखों के आँसू सूख गये बडे दिन हुए,
दिल में कहीं नमी की, खोज में रहा हूँ मैं.
कैसे कोई किसी से इतनी बेरुखी करे,
सवाल का जवाब नही पा रहा हूँ मै।
मैने तो अपनी ओर से कोशिश भी की बहुत,
उस बंद दर को कहाँ खुलवा सका हूँ मै।
एक धुंधली सी उम्मीद कि शायद खुलेगी राह,
इसी आस को दिल में बसाये जा रहा हूँ मै.चित्र गूगल से साभार।
13 टिप्पणियां:
इस रचना में भाव स्पष्ट हैं लेकिन इसमें गज़ल के शिल्प के दृष्टिकोण से कई कमियाँ हैं! इसलिये इसे गज़ल न मानते हुए भी पसन्द आई!
एक धुंधली सी उम्मीद कि शायद खुलेगी राह,
इसी आस को दिल में बसाये जा रहा हूँ मै...
ये आस बहुत जरूरी है .. मन में कहीं कोई दीप जरूर जलता हुआ रहना चाहिए ... जीवन के लिए ...
आशा ही जीवन है । राह अवश्य खुलेगी ।
खुबसूरत अभिवयक्ति.....
बिहारी जी गज़ल का ज्ञान तो मुझे है नही पर आप ठीक कहते हैं । इसको कविता (या नज्म) ही कहना चाहिये
मुझे गजल का कोई ज्ञान नहीं लेकिन रचना सटीक लगी !
उम्मीद है, तो सब कुछ है.
देखिये :-)
अच्छी कविता वह जो निकले कहीं से और शोभित हो कहीं और
सुन्दर पंक्तियाँ
आशा और विश्वास लिए
बहुत सुंदर प्रस्तुति
मैने तो अपनी और से कोशिश भी की बहुत,
उस बंद दर को कहाँ खुलवा सका हूँ मै।
"और "के स्थान पर ओर करलें।
बहुत सशक्त अभिव्यक्ति व्यंग्य विडंबन संसिक्त अर्थ पूर्ण ,मारक।
धन्यवाद वीरेंद्र जी, गलती सुधार ली है।
सुन्दर पंक्तियाँ
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