स्वर्णिम प्रभात में धीरे धीरे घुलता अंधकार
पक्षियों का कलरव, गमले में खिलता गुलाब
नल में पानी की आवाज
गैस पे पत्ती के
इंतजार मे खौलता पानी,
कप में चम्मच की टुनटुन
दरवाजे की घंटी का संगीत
दूधवाला, अखबार
हाथ में चाय का कप
बाहर छज्जे पर एक
कुर्सी
उस पर मेरा बैठना
और....
सुबह सार्थक हो जाती है ।
चित्र गूगल से साभार ।
चित्र गूगल से साभार ।
14 टिप्पणियां:
आपकी यह उत्कृष्ट प्रस्तुति कल गुरुवार (01-08-2013) को "ब्लॉग प्रसारण- 72" पर लिंक की गयी है,कृपया पधारे.वहाँ आपका स्वागत है.
सुबह सार्थक हो जाती है-
छज्जे पर कोयल गाती है-
हाथों में अखबार चाय है,
कुदरत मन को बहलाती है-
बढ़िया-
आदरेया शुभकामनायें-
कितना कुछ मिलकर सार्थक बनाता है नए दिन की शुरुआत को ....
सुबह की सार्थकता सकुन देकर गई। ऐसा ही जीवन सबके हिस्से हो और आपके जीवन की भी सार्थकता बनी रहें।
बहुत ही सुंदर चित्रण किया, पूरा दृष्य आंखों के सामने आ गया, बहुत शुभकामनाएं.
रामराम.
नित नवदिवस की शुभकामनायें।
शुभकामनायें आपको !
नित नये दिन की शुभकामनाएं !
RECENT POST: तेरी याद आ गई ...
सुबह का मनमोहक दृश्य
सुन्दर प्रस्तुति
सुबह और भी सुन्दर हो जाती है जब हाथ में कलम हो और मन लिखने को कह रहा हो !
प्रतिदिन सुप्रभात ही रहे ऐसी शुभ कामनाएं !
bahut pyari rachna
meri tippani gayab hai !
लगता है आप अपने देश में हैं ..
मंगलकामनाएं !
सुंदर, संक्षिप्त, सारगर्भित रचना...
सुंदर चित्रण किया
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