ये कैसा समाज ?
क्या हम दरिंदों का और कायरों का समाज बना रहे हैं
हम में से कुछ तो दानव हो ही गये हैं इसमें कोई संदेह नही पर
बचे हुए क्यूं कायरता को अपना रहे हैं ।
क्या हम तब तक मुंह फेरते रहेंगे जब तक हमारी बहू बेटी पर ये ना बीते ।
सोचिये तब कौन आयेगा हमारी मदद करने । देख ही रहे हैं कि हमारे बच्चे भी अब सुरक्षित नही हैं । जो हमारे तथाकथित
सहायक हैं, रक्षण कर्ता हैं । वही भक्षकों के सहायक बन रहे हैं या फिर खुद ही भक्षक ।
जो नेता मंत्री हैं वही हमारा शोषण कर रहे है । समय आ गया है विद्रोह का, विरोध का, लडाई का, अपनी
बात दो टूक कहने का वरना यह समाज इन्सानों का नही दरिंदों और कायरों का बन जायेगा
।
देखते हैं कि हम क्या कर सकते हैं ऐसे में ।
-बसों में, मेट्रो में, रेल्वे में छे़ड छाड देखते ही लडकी के
साथ सब मिल कर विरोधी स्वर बुलंद करें ।
अगला मारपीट पर उतर आये तो उसे समुचित उत्तर दें ।
-रोता बच्चा किसी किशोर या वयस्क के साथ देखें तो समुचित
पूछताछ करें, कुछ
गडबड लगे तो पुलिस में रिपोर्ट करें ।
चुनाव के समय वोट मांगने आये नेताओं से सवाल करें कि क्या उनका नाम किसी
भ्रष्ट आचरण के केस से जुडा है । जनता व खास कर स्त्रियों की
सुरक्षा के लिये वे क्या कदम उठा रहे हैं ।
-क्या उनके राज में महिला सुधार गृहों का व्यवस्थापन साफ सुथरा
है, या वहां उनका शोषण हो रहा है । क्या उनकी पार्टी भ्रष्ट नेताओं को टिकट दे रही
है ।
-बाल सुधार गृहों में बच्चों के शिक्षा तथा विकास के लिये क्या
प्रयत्न किये जा रहे हैं । क्या वहां के अधिकारियों के आचरण पर नजर रखी जा रही है,
क्या उनको समय समय पर बदला जाता है ।
- अपने घरों में काम करने वाले स्त्री पुरुषों को समझायें कि
कंबल, साडी या १०० रु. के नोट के बदले वोट ना दें ।
-पुलिस के मदद ना करने पर अखबार के एडिटर को पत्र लिखें उसकी
प्रति गृहमंत्रालय को भेजें । यदि आप ब्लॉगर हैं, अपने ब्ल़ॉग पर भी इस बारे में
लिखें ।
मीडीया को जिम्मेवार भी हम बना सकते हैं, उनसे पूछ सकते हैं कि
क्यूं वह किसी भी केस में सिर्फ कुछ दिन ढोल पीट कर चुप हो जाते हैं। क्यूं उसको
आखिर तक नही ले जाते । उनमें, उनकी कलम में, ताकत हैं कि वे सरकारों को सही कदम
उठाने को मजबूर करें । फिर क्यूं वे उसका सही इस्तेमाल नही करते ।
क्या हुआ निर्भया के केस का, उसके बाद भी लगातार इतने बलात्कार
क्यूं हो रहे हैं ।
पुलिस अपनी जिम्मेवारी क्यूं नही निभाती ।
अपने गली मुहल्ले कॉलोनी में जागरूकता समूह बनाये
य़दि हम सब मिल कर प्रयत्न करें तो संभव है यह भी करना ।
13 टिप्पणियां:
जागरुकता की बड़ी आवश्यकता है.
निश्चय ही हमने बहुत धब्बे लगाये है, पर धोने भी हमें हैं।
सच है ... युद्ध स्तर पर कार्य करना होगा ... हर बात पे जागरूक होना होगा ... प्रश्न करना होगा ... उत्तर जानता होगा ... तभी कुछ बदलाव संभव है ...
हर बात पर हम जनता को जागरूकता लानी होगी,तभी सुधार होना संभव है !!! Recent post: तुम्हारा चेहरा ,
बिल्कुल हर जिम्मेदार नागरिक का ये कर्तव्य बनता है और जागरुकता से हम स्वंय को ही सुरक्षित कर रहे हैं बस इतना समझना है।
आपका यह आह्वान बिलकुल उचित है .
बहुत अच्छे बिंदु आप ने सामने रखे हैं.
मुख्य बात है कि हर व्यक्ति के भीतर जागरूकता आनी चाहिए.क्योंकि समाज का हर व्यक्ति जब तक एक दूसरे के प्रति संवेदनशील और जिम्मेदार नहीं होगा तब तक परिवर्तन आना कठिन है.
सटीक बात कहती पोस्ट..... हर ओर असुरक्षा का साया है
सूक्ष्म परीक्षण के बाद बताए गई उपयोगी बातें। लोगों में जागरूकता के साथ साहस भी पैदा होना जरूरी है तभी इन बातों पर अमल होगा। जहां तक अपनी बात है आसानी से आजमाया जा सकता है पर किसी दूसरे को पूछना और रोकना हो तो साहस पूर्ण। और यह साहस धीरे-धीरे लोगो में आ रहा है।
जागरुकता की बड़ी आवश्यकता है.
बहुत सही बात कहती पोस्ट ..बेहतरीन
बहुत अच्छे सुझाव दिए हैं आपने.
अपने गली मुहल्ले कॉलोनी में जागरूकता समूह बनाये ....यह जरुरी है ....!!
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