इक आदमी को ढूंढते हैं
ये आदमी खोया कहां है
ढूंढा उसे हर रास्ते पर
हर गांव में और हर नगर
दौड दौड ठहर ठहर
आया कहीं न नज़र मगर
सोचते ही रहे हम फिर
आदमी खोया कहां है ।
ढूंढा उसे फिर झोपडों में
चिरकुटों में चीथडों में
फ्लेटों में अट्टालिका में
बंगलों मे, बाडियों में
था ही नही, मिलता कहां
वो आदमी खोया कहां है ।
हाटों में और बाज़ारों में
मॉलों में और होटलों में
ढाबों में और रेस्तरॉं में
गिलासों में बोतलों में
मिला नही फिर मिलता कैसे
वो आदमी खोया जहां है ।
मुफलिसों में, अमीरों मे,
जाहिलों, विद्वज्जनों मे
दुर्जनों में, सज्जनों मे
देश के सारे जनों में
ढूंढते फिरते रहे पर
आदमी पाया कहां है ।
सुनामी में, तूफानों में,
बाढ में भी अकालों में
जिंदगी में और कालों में
उत्सवों मे, हादसों में,
काम कर के थक गया जो
नाम से कतरा गया जो
वो आदमी सोया यहां है
आदमी खोया कहां है ।
ये आदमी खोया कहां है
ढूंढा उसे हर रास्ते पर
हर गांव में और हर नगर
दौड दौड ठहर ठहर
आया कहीं न नज़र मगर
सोचते ही रहे हम फिर
आदमी खोया कहां है ।
ढूंढा उसे फिर झोपडों में
चिरकुटों में चीथडों में
फ्लेटों में अट्टालिका में
बंगलों मे, बाडियों में
था ही नही, मिलता कहां
वो आदमी खोया कहां है ।
हाटों में और बाज़ारों में
मॉलों में और होटलों में
ढाबों में और रेस्तरॉं में
गिलासों में बोतलों में
मिला नही फिर मिलता कैसे
वो आदमी खोया जहां है ।
मुफलिसों में, अमीरों मे,
जाहिलों, विद्वज्जनों मे
दुर्जनों में, सज्जनों मे
देश के सारे जनों में
ढूंढते फिरते रहे पर
आदमी पाया कहां है ।
सुनामी में, तूफानों में,
बाढ में भी अकालों में
जिंदगी में और कालों में
उत्सवों मे, हादसों में,
काम कर के थक गया जो
नाम से कतरा गया जो
वो आदमी सोया यहां है
आदमी खोया कहां है ।
14 टिप्पणियां:
बहुत उम्दा अभिव्यक्ति,,,
Recent post : होली की हुडदंग कमेंट्स के संग
पता नहीं कहाँ खो गया आम आदमी।
बहुत ही सुन्दर और बेहतरीन अभिव्यक्ति.
हरवलेला माणूस शोधण्यातली उद्विग्नता कवितेतून छान प्रकट केलीत.कुठं कुठं शोधलत तुम्ही त्याला... पण तरीही तो न सापडल्याची खन्त अंतर्मुख करून गेली.
Dhananjay Jog, Bengaluru
शुभकामनायें-
सुन्दर प्रस्तुति -
एक अच्छी खोया पाया कविता
आजकल के हालातों को देखते हुए लगता है सच कहती है आप..
इक आदमी को ढूंढते हैं
ये आदमी खोया कहां है
ताई, कदाचित या प्रश्नाच उत्तर माझ्या रचनेत मिळेल तुम्हाला या तर खरे ब्लॉग वरती :)
विचारणीय है ..... गहरी अभिव्यक्ति
सच है हर कोई मिल गया पर आदमी जो असल में आदमी ही हो कहीं नहीं मिलता आज ...
गहरी अभिव्यक्ति ...
हम तो ढूढ़ रहे हैं कि आदमी कहाँ खो गया है।
हम भी आपके साथ है उसे ढुंढने में
आदमी खोया कहाँ है?
हम भी आपके साथ है उसे ढुंढने में
आदमी खोया कहाँ है?
बहुत ही सुंदर और सामयिक रचना. इंसानियत मर सी जो गयी है.
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