कल रात घर पे आकर
लेटा जो बिस्तर पर
दबे पांव कमरे में
दाखिल हुई थीं तुम माँ ।
मेरी आँखों से
चश्मा हटा कर
किताब रख मेज पर
ओढना ओढा कर
बालों में हाथ फेर
निहारती रही थीं तुम माँ।
उस स्पर्श ने ना जाने
कितने नये पुराने
जगा दिये अफसाने
जो तेरे मेरे साझे
सदा रहे हैं माँ ।
रात कहानी सुनाना,
फिर लोरी गाना,
पीठ थपथपा कर मेरी
सदा उछाह बढाना
तेरे कारण ही आगे
बढता रहा हूँ माँ ।
चोट जो लगी मुझ को
मरहम उस पे लगाना
मेरे दर्द में आँसू
मेरे साथ बहाना
सदा मेरी खुशियों में
हौले से मुस्कुराना
तुम्हारे सिवा कौन
करता रहा था माँ ।
मातृदिवस तो आज मना रहे हैं सभी
तुमने तो हर दिन पुत्र दिवस ही मनाया
हैं ना माँ ?
ब्र्लॉगर बंधु भगिनियों को सादर नमस्कार ।
कुछ दिनों तक सफर में हूँ कोशिश करूंगी कि ब्लॉग पढती रहूँ ।
पर आप मेरी मजबूरी समझ ही लेंगे और टिप्पणी में देर हुई तो क्षमा भी कर देंगे ।
22 टिप्पणियां:
bahut hi maarmik aur hridysparshi
abhiyakti.
sundar dil ko chhuti hui prastuti
ke liye aabhar,Asha ji.
abhi US tour par tha.devnagri men tippani karne men asmarth hun.
मैं माँ का अनमोल खिलौना ।
नन्हा मुन्हा प्यारा छौना ।
लोरी गाती दूध पिलाती
सूखे में सरकाती जाती -
भीगा माँ का रहे बिछौना ।
मैं माँ का अनमोल खिलौना ।।
Bahut bhavuk kar diya aapne!
माँ ने नित ही पुत्र दिवस मनाया है..भावों को समझने का सही दृष्टिकोण..
सही कहा है माँ ने ....
हार्दिक शुभकामनायें आपको !
तुमने तो हर दिन पुत्र दिवस ही मनाया
हैं ना माँ ?
.... maa ka yahi pyaar to maa ka saundary hai
आपकी इस उत्कृष्ठ प्रविष्टि की चर्चा कल मंगल वार १५ /५/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चा मंच पर की जायेगी |
आपके मार्मिक भावों पर रविकर जी की टिप्पणी ने सोने पर सुहागे का काम किया.
"मैं माँ का अनमोल खिलौना..." पंक्तियों से बहुत सुगन्धित हो गई है आपकी पोस्ट.
आपने विस्तार से वात्सल्य को बिखेरा और रविकर ने उस वात्सल्य को समेटकर प्रसाद बना दिया.
हम तो आकर 'प्रसाद' लिये जा रहे हैं. :)
बहुत अच्छी रचना ताई,
बधाई आपको !
बहुत ही सुंदर भाव...सुन्दर प्रस्तुति...हार्दिक बधाई...
very touching and appealing creation
बहुत ही सुन्दर भाव...
बेहतरीन प्रस्तुति....
wakai dil ko choone wali shasakt rachna..bahut hee sajeev chitran..sab kuch aankho ke saame tair saa gaya..aisa laga jaise mere dil kee baat aapke kalam dwara kagaj per utar gayee...sadar badhayee ke sath
माँ का तो हर दिन बच्चों के लिए ही होता है ...
समय की धूप छाँव कों शब्दों में लिखा है आपने ...
तुझे सब है पता...है ना माँ...
उसने खुद को खोकर मुझमें एक नया आकर लिया है...
धरती, अम्बर, आग, हवा, जल जैसी ही सच्चाई अम्मा...
आलोक श्रीवास्तव की ग़ज़ल अम्मा से...
माँ का आनन्द है बच्चा .चाहे जितना बड़ा हो जाये वह कभी बड़ा नहीं लगता उसे.माँ के लिये तो सारा जहान है बच्चा !
बहुत सुन्दर रचना तमाम भावनाओं को समेटे हुए..
पुत्र दिवस पर कविता पढ़ी बहुत अच्छी लगी \|
आशा
बहुत ही अनुपम भावों का संगम ... उत्कृष्ट लेखन के लिए आभार ।
बहुत ही भावपूर्ण और मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
दिल को छु लेनेवाली रचना ...आभार !
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