मंगलवार, 7 फ़रवरी 2012
पुनः केरल- इस बार सुहास की जबानी
इस साल सुहास को केरल जाना था । हम चूंकि हाल ही में केरल हो आये थे हम नही गये । हम गये मालगुंड, कोकण में, पर वह अब कुछ दिन बाद । इस बार सुहास नें उनकी केरल यात्रा का वर्णन स्वयं ही लिखा है । तो पढिये केरल यात्रा सुहास की जबानी ।
मै, प्रकाश, जयश्री, विजय और मेरी चचेरी बहन विजया केरल गये सचिन ट्रेवल्स के साथ । मैने अमरीका में बैठ कर हमारे ग्रूप के लिये काफी सारे टूर आयोजित किये थे इसीसे ट्रेवल एजेन्सी के साथ
टूर करने के पहले मौके पर काफी उत्सुकता थी । केरल के बारे में इतना पढा और सुना था तो मैने प्रकाश से कहा कि केरल चलोगे तो मै भारत आउंगी और उसने आनन फानन में यह टूर आयोजित कर भी ली । मेरे बडे भाई सुरेश और भाभी आशा जिनका ये ब्लॉग है गत वर्ष ही केरल घूम आये थे तो वे गये कोकण आशा के भाई के पास और हम गये केरल । हमारा यह टूर जनवरी 8 से 17 तक था ।
त्रिवेंद्रम और कन्याकुमारी और कोवालम बीच -
मुंबई से हमारी सुबह की उडान थी जिस ने हमें त्रिवेंद्रम पहुंचाया । वहां हवाई अड्डे पर सचिन के प्रतिनिधी हमारे स्वागत के लिये उपस्थित थे । वे हमें एक शानदार वातानुकूलित बस से एक बढिया होटल में खाना खिलाने ले गये । फिर हमें सीधा कन्या कुमारी (तामिल नाडू), ले जाया गया । वहां समंदर के किनारे स्थित एक खूबसूरत होटल माधिनि में हमे कमरे दिये गये । उत्तर भारत में तो ये सर्दी के दिन है पर वहां केरल में लोग गर्मी से परेशान दिख रहे थे । हमारे कमरे से ही हिंद महासागर का अद्वितीय दर्शन हो रहा था । एक और स्वामी विवेकानंद जी का स्मारक (रॉक मेमोरियल ) और दूसरी तरफ एक सफेद झक पोर्तुगीज़ चर्च । (फोटो 1,2,3 )
शाम को कमरे से सूर्यास्त का लुभावना दृष्य देख कर मन प्रसन्न हो गया (फोटो 4)
रात को नींद खूब अच्छी आई दूसरे दिन यानि 9 तारीख को सुबह चाय नाश्ता (भरपेट) कर के चल पडे विवेकानन्द स्मारक की तरफ । सचिन के सौजन्य से, एक फेरी (बोट) में बैठ कर वहां पहुंचे । बडा ही सुंदर है ये स्मारक । समुद्र के जल सिंचन से शुध्द हुई से पावन शिला पर स्वामीजी ने 1892 में ध्यान लगाया था जब उन्हें अपना जीवन ध्येय मिला । स्मारक एक भव्य मूर्ती है जो शिला को शिल्प में परिवर्तित करती है । आसपास का परिसर भी स्वच्छ और आकर्षक है । समंदर का हरा नीला जल शिला से आठखेलियां करता बडा मनोहारी लगता है । यहां हम स्पष्ट रूप से अरब सागर, बंगाल का उपसागर और हिंद महा सागर का मिलन देख पाये । इस सागर त्रिवेणी को देख बेहद सुख मिला । कन्याकुमारी के इस तट से 15000 किलोमीटर तक सिर्फ पानी ही पानी है । (फोटो 5,6)
वहां से लौट कर हम कन्याकुमारी मंदिर पहुंचे । कहते हैं शिवजी की राह तकती देवी पार्वती वरमाला लेकर आज भी वहीं खडी है । उनके नाक का अत्यंत चमकीला हीरा आनेवाले जहाजों की दिशाभूल करता था, इसीसे मंदिर के चारों और अब दीवार खडी कर दी गई है ।
(फोटो 6)
इसके बाद हम गये महात्मा गांधीजी के स्मारक जहां उनकी अस्थियों का सागर में विसर्जन हुवा था । यह एक अत्यंत शांत और साफ सुथरी जगह थी हम लोगोंने कुछ देर ध्यान लगाया फिर नारियल पानी पी कर देह को भी ठंडक पहुंचाई (सौजन्य सचिन ट्रेवल्स )। वापसी पर हम एक प्राचीन शिवमंदिर (सुचीन्द्रन मंदिर) देखने गये । वहां पर ड्रेस कोड था पुरुषों के लिये लुंगी और स्त्रियों के लिये साडी । वहीं प्रांगण में कुछ स्तंभ से बने हुए थे जिनको पीटने पर उनमे से विभिन्न वाद्यों की आवाजें जैसे तबला, मृदंग, पखावज वगैरा निकलती हैं ।
उस रात डिनर के समय सभी का स्वागत और आपसी परिचय हुआ । हमें एक बैकपैक भी मिला जिसमें काफी सारी खाने की चीजें थीं जो हमारा रास्ते की भूख का इन्तजाम था । हर रात हमें अगले दिन के कार्यक्रम की जानकारी मिलती थी और कब तैयार रहना है यह बताया जाता था ।
तो 10 तारीख को सुबह सुबह नाश्ते के बाद हमने त्रिवेंद्रम की और प्रयाण किया । रास्ते के दोनो तरफ
नारियल के पेड और केले के बागीचे, कहीं पथरीले पहाड (फोटो 7,8)
तो कहीं सुंदर झरने और कल कल बहती नदियां, मन प्रसन्न था । बस का प्रवास अगर लंबा होता तो सचिन के प्रतिनिधी चुटकुले सुनाकर खेल खिलवाकर उसे खुशनुमा बनाकर चुटकियों में गुजरवा देते । कोई तीन घंटे का सफर करके हम पहुंचे पद्मनाभ मंदिर । यहां भी ड्रेस कोड वही था पुरुषोंके लिये सिर्फ लुंगी और स्त्रियों के लिये साडी । कतार में लगकर दर्शन किये । मंदिर के गर्मेंभगृह में अंधेरा था, सिर्फ और तेल के दियों का ही प्रकाश था । बाहर आकर एक रेस्तरां में लंच खाया फिर हॉटेल में चेक इन किया । दोपहर में वैली लेक गये वहां एक बहुत सुंदर पार्क था । जानवरों के आकार में कटी झाडियां और फूलों के खूबसूरत पौधे और पानी का ताल बडा ही मनमोहक था (फोटो 9,10 )।
पार्क में ही चाय का प्रबन्ध हो गया और हम चल पडे कोवालम बीच । बहुत ही रमणीय सागर तट है यह । कुछ विदेशी वहां सूर्यस्नान ले रहे थे, कुछ समुद्र स्नान का आनंद उठा रहे थे । सचिन ट्रेवल्स की तरफ से नारियल पानी और मूंगदाल के गरमा गरम बडे खिलाये गये । नारियल के पेडों के नीचे बैठ कर हम काफी देर तक बतियाते रहे और लहरें गिनते रहे (फोटो 11 12)।
शाम को प्रकाश भैया को चाय की बडी तलब लगती थी तो मै और वो कोई ना कोई गुमटी या टपरी देख कर चाय जरूर पीते थे । रात का खाना रोज की तरह ही शानदार था ।
सुहास (वंदना )
( क्रमशः )
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7 टिप्पणियां:
Man prasann kar diya aapne!
बहुत सुन्दर लगी यह प्रस्तुति.
मनोहारी चित्रों से मन प्रसन्न हो गया है.
प्रस्तुति के लिए आभार.
आशा जी, मैं आपका अपने ब्लॉग पर
भी इन्तजार करता हूँ.आपकी उपस्थिति
और सुवचन से मुझे बहुत प्रसन्नता मिलती है.
बहुत सुंदर चित्रों से सजी पोस्ट ,
पढ़कर स्वयं का घूमना याद आ गया।
सुंदर चित्रों के साथ बढ़िया प्रवास वर्णनं
मन प्रसन्न हुआ आभार ताई !
बहुत ही मनोरम चित्र है....
केरल... प्लान बन कर कैंसल हो गया था हमारा !
बढ़िया.
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