रविवार, 11 दिसंबर 2011
बीज और वृक्ष
मेरी जडें फैली हैं दूर दूर तक,
और मेरी टहनियां व्याप रहीं हैं सारा आकाश
कब सोचा था मैने मेरा छोटा सा अस्तित्व इतना बनेगा विशाल
बीज से उठ कर लहरायेगी डाल डाल ।
छू लेंगी आसमान मेरी टहनियाँ
इन पर बैठ कर पंछी सुनायेंगे कहानियाँ
बनायेंगे छोटे छोटे घरौंदे
तिनका तिनका डोरा डोरा गूंथ के ।
नीचे बैठेंगे थके हारे पथिक
और मेरी टहनियां झुक जायेंगी अधिक
लडकियां डालेंगी झूले, युवतियाँ कजरी गायेंगी
और मेरी पत्तियाँ मुस्कुरायेंगी ।
बच्चे खेलेंगे मेरी छांव में
चढेंगे मेरे कंधों पर एक एक पाँव रख कर
और मैं खांचे बना कर उन्हें सम्हालूंगा ।
टहनियों में झुलाउंगा ।
कितना सुख है इस सब में
कितना तृप्त हूँ मै जीवन में
सूख जाऊँगा तब भी लकडियाँ दे दूंगा
किसी के चूल्हे, किसी के अलाव, किसी की चिता के लिये ।
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23 टिप्पणियां:
एक और शानदार
और
प्रभावी प्रस्तुति ||
बधाई ||
वाह...बहुत बढि़या।
बेहतरीन भाव ... बहुत सुंदर रचना प्रभावशाली प्रस्तुति....
कितना सुख है इस सब में
कितना तृप्त हूँ मै जीवन में
सूख जाऊँगा तब भी लकडियाँ दे दूंगा
किसी के चूल्हे, किसी के अलाव, किसी की चिता के लिये ।
Wah! Kya baat hai!Bahut khoob!
हर वृक्ष का यही दुःस्वप्न होता है, हमारी संवेदनशीलता ही क्षीण हो जाये तो
bahut sundar bhaav samete hue hain in panktiyon me insaan ko bhi vraksh se sabak lena chahiye.humara jeevan prakarti ke bina sambhav nahi.
जीवन को सार्थक बनाने को प्रेरित करती एक सुन्दर,सरल मगर अद्वितीय कविता !
आभार !
कितना सुख है इस सब में
कितना तृप्त हूँ मै जीवन में
सूख जाऊँगा तब भी लकडियाँ दे दूंगा
किसी के चूल्हे, किसी के अलाव, किसी की चिता के लिये ... dene se badhker koi sukh nahi...
एक छोटी सी उर्जाभरी सृजनशीलता क्या कुछ नहीं कर सकती
महादानी हैं ये और हम सब?
बहुत प्रभाव शाली सुंदर पोस्ट ....बेहतरीन
मेरी नई रचना .......
नेताओं की पूजा क्यों, क्या ये पूजा लायक है
देश बेच रहे सरे आम, ये ऐसे खल नायक है,
इनके करनी की भरनी, जनता को सहना होगा
इनके खोदे हर गड्ढे को,जनता को भरना होगा,
आपका इंतजार है ...
ये देते रहते हैं और हम लेते ..... फिर भी जी नहीं भरता हमारा :(
मरते दम तक देने की चाह ..
ताई सुंदर रचना आहे !
बहूत सुन्दर
कितना सुख है इस सब में
कितना तृप्त हूँ मै जीवन में
सूख जाऊँगा तब भी लकडियाँ दे दूंगा
....गहरे भाव समेटे हुये पंक्तियाँ...शानदार पोस्ट
बहुत सुंदर सारगर्भित रचना, अच्छी लगी .....
वाह। परोपकार की भावना अनंत को अपने में समेट लेती है!
yahi tho vruksha ki mahanta hai,bahut sunder,kash har insaan ka mann aisa hota.
वे जीवन के अभिन्न भाग हैं ...वे जीवित भी हैं बस हम उन्हें सुअने का प्रयत्न नहीं करते !
शुभकामनायें आपको !
अमेरिका में रहते हुए भी आपकी कविताओं में गांव की मिट्टी की महक कायम है।...अभिनंदन आपका।
प्रशंसनीय रचना।
शानदार प्रस्तुति.
कितना सुख है इस सब में
कितना तृप्त हूँ मै जीवन में
सूख जाऊँगा तब भी लकडियाँ दे दूंगा
किसी के चूल्हे, किसी के अलाव, किसी की चिता के लिये
प्रभावशाली रचना
आशा जी, आपकी यह प्रस्तुति अनुपम और प्रेरक है.बीज से वृक्ष बनना ही जीवन का लक्ष्य होना चाहिये,जो सदा परोपकार के लिए अपना जीवन
समर्पित करने में ही आनंद और शान्ति का अनुभव करे.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.'हनुमान लीला भाग-२' पर आपका स्वागत है.
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