संवाद थम जाता है माँ के साथ,
जब छूट जाता है बचपन का आँगन
चिठ्ठियों का अंतराल लंबे से लंबा होता चला जाता है
और सब सिमट जाता है एक वाक्य में,
“ कैसी हो माँ “ ?
माँ का जवाब उससे भी संक्षिप्त,
“ठीक” ।
पर उसकी आँखें बोलती हैं,
उसकी उदासी कह जाती है कितना कुछ ,
उसका दर्द सिमट आता है चेहेरे की झुर्रियों में
जब होता है अहसास उसको अपने फालतू हो जाने का ।
32 टिप्पणियां:
आदरणीय आशा जी
नमस्कार !
बहुत सारी बाते करती भाव प्रधान कविता
बहुत ही भावुक रचना.........हृदय के मर्म को दर्शाती हुई........
Kuchh hi panktiyo me bahut kuchh samjha gayi aapki ye kavita... samvaadheenta dukhdaayi h.. maa k lie bhi aur hamare lie bhi ... magar maun todne me jaane kya baadhak bana hua h... :(
ओह ..
मां का दर्द आपने खूब पढा ..
अच्छी अभिव्यक्ति !!
"ठीक" कहकर ही मां ने सबकुछ कर दिया. मां से बड़ा कोई क्या होगा.
उसकी उदासी कह जाती है कितना कुछ ,
उसका दर्द सिमट आता है चेहेरे की झुर्रियों में
जब होता है अहसास उसको अपने फालतू हो जाने का ।
सुन्दर रचना पढ़वाने के लिए आभार!
सुन्दर रचना आपकी, नए नए आयाम |
देत बधाई प्रेम से, हो प्रस्तुति-अविराम ||
aapke shabd aankhon me tairne lage
माँ के साथ हम मानसिक तौर पर इतने जुड़े हुए होते है कि चंद शब्दों का लेन-देन ही काफी हो जाता है!...दिल को छू लेने वाली रचना!...धन्यवाद आशाजी!
माँ के जज्बातों को इस कविता में आपने बखूबी समझा है... सुंदर प्रस्तुति.
.
पुरवईया : आपन देश के बयार
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
बहुत ही अच्छी प्रस्तुति ।
ओह !
सत्य !
हम तभी निराश होते हैं जब स्वयं को फ़ालतू समझने लगते हैं... इसलिये ये एहसास कभी किसी को नहीं कराना चाहिए... सराहना, प्रशंसा और झूठी जिद से यदि किसी को अपने किये का और अपनी मौजूदगी का ज़रा भी महत्व महसूस होने लग जाये तो उसे अपना जीवन सार्थक लगता है. ... ऐसे प्रयास बड़ों को ही नहीं छोटों को भी करने चाहिए.... अपनापन जताने के लिये मिथ्या तकरार भी होती रहनी चाहिए....
आदरणीया आशा जी, आपने अपनी 'फालतू' पोस्ट से हमारे कीमती समय को भावुक कर दिया.
समय ठहरा है,
दर्द बड़ा गहरा है।
आपकी गहन अभिव्यक्ति बिना ज्यादा
कहे भी बहुत कुछ कह देती है.
मार्मिक भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार.
मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
मेरी नई पोस्ट पर आपका इंतजार है.
खुपच सुंदर ताई, मर्मस्पर्शी रचना !
नि:शब्द कर गये ये ज़ज्बात ......
नि:शब्द!
आशीष
--
मैंगो शेक!!!
एक उस असाहयता की और आपने इंगित किया है जो सबका अभीष्ट है मगर दुःख है कुछ किया भी नहीं जा सकता -नियति का यह क्रूर विद्रूप हममे से बहुतों को झेलना है !
मर्मस्पर्शी रचना !नि:शब्द.......
दिल से लिखी हुई और दिल तक पहुँचती हुई, भावुक कर देने वाली अनुपम कविता।
आधुनिक समय में यह नीयति बन चुकी है बहुत से परिवार की। मेरे कई मित्र है जिनके तीन-तीन पुत्र हैं मगर एक भी साथ नहीं रहते। कभी त्यौहार में आ गये तो ठीक वरना इंतजार....लम्बा इतंजार...।
अब हमे इसे स्वीकारना और आगे की रणनीति बनानी होगी।
माँ के फालतू होने का एहसास मन को छू गया...कभी वो ही थी जिसके बिना हम अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते थे...
हर शब्द जैसे खुद अपने दर्द को कह रहा हो....
उसकी उदासी कह जाती है कितना कुछ ,
उसका दर्द सिमट आता है चेहेरे की झुर्रियों में
जब होता है अहसास उसको अपने फालतू हो जाने का
Bahut Badhiya....MAn ko Chhooti panktiyan
wah bahut hi gahre bhav kamal
aapne rula diya
saader
rachana
'जब होता है अहसास उसको अपने फालतू हो जाने का'
..................हृदयस्पर्शी रचना
मन को छूती भावपूर्ण रचना |बधाई |
आप मेटे ब्लॉग पर आईं बहुत अच्छा लगा |इसी प्रकार स्नेह बनाए रखियेगा |
आशा
वाह.......वाह.....वह........
शीर्षक का बखूबी उपयोग किया आपने .....
बहुत अच्छी रचना .....
मैं लिए जा रही हूँ ...
यहाँ से एक पत्रिका निकलती है आगमन
उसे प्रेषित करुँगी ....
एक उम्र में फालतू हो जाने का एहसास अभी से सिरहन दौड़ा देता है ... बहुत संवेदनशील लिखा है अपने ..
आदरणीय आशा जी सबसे पहले बहुमूल्य टिपण्णी के लिए शुक्रिया. मैंने भी यही सुना था की कोयल अपने अंडे भी कौवे के अण्डों के साथ रख देती है...लेकिन एक दिन उसे ऐसा करते देखा...फिर पढ़ा...तब लगा कोयल ऐसा भी कर सकती है! इसलिए इस महानीच ने ऐसा लिखा. आपकी बेबाक टिप्पणी मन को बेहद भायी ..a
अब मतलब की बात-
माँ पर लिखी आपकी पंक्तियाँ सटीक हैं...एक सच! प्रभावशाली अभिव्यक्ति.
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