सोमवार, 21 मार्च 2011
चलते ही जाना ४-हेदवी, वेळणेश्वर, हरिहरेश्वर
हेदवी, ये जोगळेकर लोगों का यानि हम लोगों का गांव है यहां ज्यादा तर लोगों का आखरी नाम जोगळेकर है । यहां पर दशभुजा गणपती का एक सुंदर मंदिर भी है । हमारी बस खूब ऊँचे नीचे रास्तों से जा रही थी शायद विजय ने कोई शॉर्ट कट ढूँढा था । वनस्पती की यहां भी भरमार थी । सच में कोकण प्रदेश की यह हरियाली बहुत सुख और आनंद दे रही थी । तो कोई दो घंटे बाद हम हेदवी के मंदिर पहुँचे । सीढियां चढ कर ऊपर गये मंदिर में प्रवेश कर गणपति की सुंदर मूर्ती के दर्शन किये । यह दशभुज लक्ष्मी-गणेश कहलाते हैं । गणपति के दसों भुजाओं में विभिन्न प्रकार के अस्त्र शस्त्र हैं । बाहर काफी बडा प्रांगण है, दीप स्तंभ भी हैं । प्रदक्षिणा की और बाहर थोडी देर बैठे । (विडियो देखें)
भूख लगी थी तो पता किया नाश्ता कहां मिलेगा । वहां दो किशोर वय के ल़डके बैठे थे उनसे पूछा तो वे बोले आप को हरि-हरेश्वर जाना है ना तो आप वेळणेश्वर होते हुए जाइये और वहां दर्शन कर के नाश्ता कीजिये, नंबर वन पोहे मिलेंगे । उनकी बातों में इतना रस था कि हम फौरन ही चल पडे वेळणेश्वर के लिये । हेदवी में नाश्ता नही किया पर खोये के मोदक और आमरस का गोला खरीदा । नीचे उतर कर बस में बैठे और चल पडे वेळणेश्वर के लिये । (विडियो देखें)
लगभग एक घंटे में हम वेळणेश्वर पहुंच गये यह स्थान गुहागर से कोई २६ कि.मी. है पर हम तो हेदवी से आये थे । वेळणेश्वर एक बहुत पुरातन महादेवजी का मंदिर है । मंदिर बहुत बडा और सुंदर है । यहां हर वर्ष शिवरात्री पर बडा उत्सव होता है । वैसे भी भक्तों की भीड तो हमेशा ही होती है । हम मंदिर में गये तो पूजा हो रही थी सुंदर सुंदर भजन गाये जा रहे थे । एक भक्तिमय वातावरण की सृष्टी हो रही थी । वेळणेश्वर का समुद्र किनारा भी बहुत सुंदर है । दर्शन तो हो गये अब हमें तो पहले पेट पूजा करनी थी साड़ेग्यारह बज चुके थे और नाश्ते का भी अता पता नही था । तो हम मंदिर के पास ही एक रेस्तरॉं में गये वहां तो खाना भी तैयार था सबने खाना खाया, पर मुझे और विजुताई को एक नंबर के पोहे खाने थे तो हमने तो वही ऑर्डर किये । पोहे वाकई बहुत अच्छे थे । सोलकढी पी और श्रीखंड भी खाया । फिर गये बीच पर । नारियल और सुपारी के पेडों से सुशोभित ये किनारा शांति से आराम करने के लिये एकदम उपयुक्त है । तो वहीं थोडी देर बैठे । आज ही हमें हरिहरेश्वर पहुंचना था । हरिहरेश्वर में हमारा पडाव था दो दिन । हमारा एम टी डी सी में बुकिंग था । हरिहरेश्वर को जाते हुए बहुत ही सुंदर एक घाटी लगी एकदम बादलों से भरी हुई । प्याली में सफेद रंग के ‘बुढ्ढी के बाल’ भरे हों जैसे । वहां हमने बहुत से फोटो भी खींचे ।
हरिहरेश्वर पहुंचते पहुंचते शाम हो गई थी । हम गये एम टी डी सी । हमारी कॉटेजेज बहुत ही सुंदर थीं, साफ सुथरी । तो सामान रख कर हम परिसर देख आये । हम यहां दो रात रहने वाले थे और २८ को चल कर दिवे-आगर होते हुए ठाणे वापिस जाना था । हमने प्लान बनाया कि हम कल सुबह उठ कर हरिहरेश्वर मंदिर जाकर दर्शन करेंगे फिर समुद्र किनारे जायेंगे । प्लान के अनुसार ही हम लोग तैयार होकर निकल पडे । हम जब एक दूसरे के लिये वेट कर रहे थे तो एक छोटू अपने पापा के साथ ऊपर से देख रहा था, पापा की गोदी में से ही खूब बातें चल रही थीं । नीचे भी आना था । उसे बाय कर के बस में बैठे ।
हम सब पहले मंदिर गये यहां दो मंदिर हैं एक हरिहरेश्वर जी का और एक काल-भैरव का । कालभैरव मंदिर में दर्शन कर के ही हरिहरेश्वर के मंदिर में जाना होता है । यह मंदिर काफी प्राचीन है शायद शिवाजी के काल का इसका जीर्णोध्दार प्रथम बाजीराव पेशवा ने किया । समंदर के साथ जो पहाड है उसका नाम है हरिहर एक और नाम भी है पुष्पाद्री । इसे दक्षिण की काशी कहा जाता है । इस मंदिर में ब्रम्हा विष्णु महेश के साथ साथ देवी पार्वती की भी प्रतिमा है । काल भैरव के अलावा यहां योगेश्वरी मंदिर भी है । मंदिर के प्रांगण से ही समुद्र दर्शन किये जा सकते हैं । मंदिर के रास्ते में ही एक अच्छा सा रेस्तरॉं देख कर हमने हेवी नाश्ता कर लिया । फिर हम गये बीच पर, मंदिर से दूर था यह बीच इसीलिये शायद हमारे अतिरिक्त यहां कोई भी नही था । हम लोग थोडी देर तक तो बीच पर घूमते रहे फिर सुहास ने सबको पानी मे भिगो दिया और अंततः हम सब महिलाओ ने तो स्नान ही कर लिया । बहुत मज़ा आया । हमारे प्रकाश भाउजी को बडी शरम आ रही थी शायद, वे वहां से काफी दूर टहलने लगे । सुरेश ने तो हमारे मौजमस्ती की शूटिंग कर ली । समंदर से बाहर निकले तो दूर एक बगुलों का झुंड था उनकी तस्वीरें खींचने के लालच से मै दूर तक चली गई उससे दो फायदे हुए तस्वीरें तो खींची ही साथ ही साथ कपडे भी सूख गये । समंदर के आसपास केवडे के जंगल थे । वहां से बाहर आये तो सीधे अपने ठिकाने पर । कपडों में बदन पर रेत ही रेत चिपकी थी तो नहाना तो जरूरी था । कोई आधा किलो रेत निकली होगी ।(विडियो देखें)bath
फिर थोडी देर आराम करने के बाद सब को चाय की तलब लग गई, तो हम गये एम टी डी सी रेस्तराँ । वहां के मेनेजर से खूब बातें की । वे बताते रहे कि कैसे उन्होने ये रेस्तराँ के आस पास के बगीचे को लगाया और उसका रखरखाव अब भी कर रहे हैं । बहुत अच्छा लग रहा था वहां बैठ कर । तभी वहां पर एक मुर्गी अपने खूब सारे चूजों सहित आ गई तो सबका ध्यान उधर ही चला गया, काफी देर तक हम उन्हीं की एक्टिविटी देखते रहे । मुर्गी आगे आगे चूजे पीछे पीछे ।(विडियो देखें)
फिर डिनर किया और थोडी देर टीवी देखा गप्पें लगाई और सो गये । हमें कल निकलना था दिवे-आगर के लिये । वहां पर सोने के गणपति जी का मंदिर है वही सबको देखना था । वहीं बापट जी के खानावळ में यहां खाना खाने का तय किया । सुबह हमें सात बजे तैयार रहना था तो रात को ही सामान बांध के तैयार थे हम ।
यहां से दिवे-आगर कोई ४ घंटे का रास्ता था । दिवे आगर जाते हुए हमने अंताक्षरी खेली । पहले गणपति मंदिर पहुँचे । इन गणपति जी की भी एक कथा है। ये गणपति का १.२५ फीट लंबा सोने का मुखौटा श्रीमति द्रौपदी धर्मा पाटील को उनकी वाडी (बगीचे) में काम करवाते हुए मिला । गणपतिजी एक तांबे के एक बडे से बक्से में पाये गये इसके साथ ही मिला गणपति जी के आभूषणों का डिब्बा । महिला ने इसे स्वयं रखने की जगह समाज को दान करने का ही निश्चय किया ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग दर्शन का लाभ उठा सकें । वही यह मंदिर है । मंदिर में पूजा हो रही थी वह देखी दर्शन किये थोडी देर बैठे और चल पडे । बापट जी का भोजनालय ढूँढना था ।
रास्ते में बहुत सुंदर एक वाडी थी वहां जमीन पर सुपारीयां गिरी हुई थी सुंदर नारंगी रंग की कच्ची सुपारी । एक लडकी को मांगा तो उसने दो फल दे दिये । बापट जी का भोजनालय तो मिला नही पर एक अन्य मिल गया वहां पर पोहे खाये क्यूं कि खाना डेढ़ बजे से पहले नही । और खायी आंबोळी । आंबोली चावल के आटे को फरमेन्ट करके बनाये चीले होते हैं जो काफी स्वादिष्ट थे । (विडियो देखें)
यहां का बगीचा बहुत सुन्दर था तरह तरह के फूलों वाले पौधे थे । हमारा पेट भर गया तो गये समुद्र देखने । रास्ते में फिर केवडे के वन मिले एक दो भुट्टे (फूल) पीले हो गये थे और भीनी भीनी खुशबु फैल रही थी । । समुद्र देख कर फिर वापिस अपने बस पर । बस को अब वापसी का रास्ता पकडना था मै और सुरेश पनवेल में मेरे भांजे के यहां रुकने वाले थे बाकी लोगों को ठाणे जाना था । पनवेल में रवि और बहू ने बडी खातिरदारी की, नई बंबई के मॉल में भी घुमाया । हम दो दिन बाद ठाणे पहुँच तो लतिका अपने घर चली गई थी विजूताई भी एक दिन बाद चली गईं । हम चारों सुहास विजय मै और सुरेश ३१ को इंदौर होते हुए दिल्ली पहुँचे । इंदौर में विजय के भतीजे अनिल और शैला से मिले । महाकालेश्वर के दर्शन करने उज्जैन गये । ट्रिप में खूब मज़ा आया जो सब के साथ होने से दुगना हो गया । सबसे बिछुडते हुए बुरा तो लगा, पर साथ कुछ ही दिनों का हो तो उसकी मिठास कुछ और ही होती है ।
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14 टिप्पणियां:
bahut achcha laga sab kuch jo aapne likha....delhi men kahan rahtin hain...hum bhi yahin hain.
bhahut hi badiya drstaant
बढिया सफ़र रहा,इतने दिनों साथ घुमने के बाद तो बिछुड़ना भावों से भरा होता है।
अच्छी यात्रा कराई आपने
आभार
सुन्दर व विस्तृत यात्रा वृत्तान्त।
बेहतरीन आलेख। शुभकामनाएं..........
varnan itna sundar shabdo mein aapne likha hai ki bas!..padhate hi jaaye!....
सब कुछ एक साथ, घूमना-फिरना, खाना-पीना.
सब कुछ एक साथ, घूमना-फिरना, खाना-पीना.
सुन्दर व विस्तृत यात्रा वृत्तान्त। धन्यवाद|
यात्रा
और संस्मरण
याद रहेंगे .... हमेशा ही .
आपकी सुरम्य यात्रा के वर्णन ने हमें आनन्दित कर दिया .
आदरणीय आशा जोगलेकर जी..
नमस्कार
......सुन्दर व विस्तृत यात्रा वृत्तान्त।
रंगों का त्यौहार बहुत मुबारक हो आपको और आपके परिवार को|
कई दिनों व्यस्त होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..
जाट देवता की राम राम,
आप का यात्रा लेख मेरे भी काम का है
आप का बहुत-बहुत धन्यवाद।
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