शुक्रवार, 26 नवंबर 2010

प्याज



आम आदमी के लिये ये देश
एक प्याज है ।
परत दर परत एक स्कैम आदर्श सोसायटी
उसे हटाओ तो एक और स्कैम सी डब्लू जी
उसके नीचे एक और स्कैम 2 जी
उसके भी नीचे एक और एल आय सी
परतें छीलते जाओ स्कैम पाते जाओ
शेष कुछ ना बचेगा
बचने के लिये कुछ छोडेंगे तब ना ।

37 टिप्‍पणियां:

PN Subramanian ने कहा…

सुन्दर व्यंगात्मक रचना.

Aruna Kapoor ने कहा…

प्याज रुलाता तो है ही...लेकिन आज कल महंगाई के आंसू रुला रहा है!....बहुत बढिया अंदाज!

Suman ने कहा…

sathya hai..........

Dorothy ने कहा…

अपने आस पास के परिवेश में मौजूद विसंगतियों और कटु सच्चाईयों से रू-ब-रू कराती, भावपूर्ण और सटीक अभिव्यक्ति, जो किसी को भी सोचने के लिए विवश कर दे. आभार.
सादर,
डोरोथी.

kshama ने कहा…

Parat parat dar parat pyaaz chheelte jayen...aur ant me nirwaan kee sthiti!!!Shesh kuchh nahee!

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

और जब इन सबसे प्याज का दाम बढ़ जाता है तो सरकारें गिर जाती हैं।

शरद कोकास ने कहा…

गरीब के लिये प्याज़ की एक गाँठ से बडी क्या चीज़ हो सकती है

mridula pradhan ने कहा…

bahut achchi lagi.

मनोज कुमार ने कहा…

बहुत सुंदर ढंग से आपने व्यंग्य किया है।

Gyan Dutt Pandey ने कहा…

ओह! प्याज आप पर मानहानि का दावा न कर दे! :)

भारतीय नागरिक - Indian Citizen ने कहा…

अब तो प्याज से भी आंसू नहीं निकलते.. ऐसा बना दिया है इन नेताओं ने..

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

बेहतरीन प्रस्तुति ...प्याज येहा भी रुला रहा है. अच्छा व्यंग है स्कैम पर. वैसे भी प्याज हकीकत में भी रुला रही है ४०/- के रेट से

Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टून ने कहा…

एकदम सटीक. सही बात है. देश आज इसी तरह के धंधों का पुलिंदा हो चला है...

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

प्याज़ को प्रतीक बनाकर कितना सुन्दर व्यंग्य किया है इन भ्रष्टाचार के आरोपी नेताओं पर.

Abhishek Ojha ने कहा…

परतें हटाते हुए आँख में आंसू तो आ ना रहे किसी के भी :)

Satish Saxena ने कहा…

सामयिक और संक्षिप्त , मगर सब कुछ कह दिया ! हार्दिक शुभकामनायें !

ZEAL ने कहा…

आशा जी,
बेहद सटीक अवलोकन । समाज के ठेकेदार , देश को पर्त दर पर्त छील रहे हैं।
आभार !

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

अच्छा व्यंग्य।...पर्त दर पर्त छीलने वालों को भी अंत में कुछ नहीं मिलेगा।

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत सुंदर ढंग से आपने व्यंग्य किया है

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

परतें छीलते जाओ स्कैम पाते जाओशेष कुछ ना बचेगा बचने के लिये कुछ छोडेंगे तब ना ।
bahut sahi bahut steek.... achha laga yeh vyang...

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ये नेताओं का प्याज है .... अभी तो कितनी परतें बाकी हैं ...

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

आम आदमी के लिये ये देश एक प्याज है ।परत दर परत एक स्कैम आदर्श सोसायटीउसे हटाओ तो एक और स्कैम सी डब्लू जीउसके नीचे एक और स्कैम 2 जीउसके भी नीचे एक और एल आय सी परतें छीलते जाओ स्कैम पाते जाओशेष कुछ ना बचेगा बचने के लिये कुछ छोडेंगे तब ना .......

कौन सा देश आशा जी आपका या हमारा ......?

प्याज का बिम्ब भी खूब लिया .....

सूफ़ी आशीष/ ਸੂਫ਼ੀ ਆਸ਼ੀਸ਼ ने कहा…

आशा माँ,
नमस्ते!
चोट कर रही हैं आप तो. आंसू भी जानता के आने हैं!
छीलते रहो...
आशीष
---
नौकरी इज़ नौकरी!

Dr Varsha Singh ने कहा…

बहुत सुंदर रचना.हार्दिक शुभकामनायें !

ज्ञानचंद मर्मज्ञ ने कहा…

आशा जी,
प्याज़ की परतों से स्कैम की अभिव्यक्ति को कितनी खूबसूरती से आपने निभाया है उसका जवाब नहीं ! कविता सच्चाई को प्रक्षेपित करती हुई नए बिम्ब के अलंकरण से निखरी हुई है !
छोटी,सुन्दर, और मारक रचना के लिए आप बधाई की पात्र हैं !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ

ममता त्रिपाठी ने कहा…

आदरणीय आशा जी! व्यवस्था पर किया गया प्रस्तुत व्यंग्य अच्छा लगा। बहुत सटीक लिखा है आपने।
बस आपकी एक बात मुझे खटक रही है......
आपने लिखा है कि कविता मुझ जैसे आलसियों के लिये ही है......ये बात ठीक नहीं है। कविता किसी साधारण हृदय, साधारण मानस का स्फुरण नहीं होती। आप लिखती हैं, रचती है, सृजन की क्षमता, शक्ति आपमें निहित है, तो इस बात को आप अवश्य जानती होंगी, अनुभव करती होंगी। काव्य-लेखन एवम् काव्यपाठन के लिये आवश्यक है कि रचनाकार के हृदय में रसात्मकता,भावनात्मकता हो तथा पाठक, श्रोता, भावक, सहृदय के हृदय में उसको समझने की, ग्रहण करने की, उस रसमयता के चर्वणा की क्षमता हो। काव्य का वास्तविक आनन्द तभी आता है, या यो कहें कि काव्य की पूर्णता तभी होती है, जब उसका पाठक उसमें निहित रस का आनन्द ले सके।
इसलिये कविता आलसियों का कार्य नहीं अपितु एक प्रबुद्ध एवं रचनात्मक मस्तिष्क की सृष्टि है।
आप अपने इस लेखन द्वारा अनगिनत व्यक्तियों उपकृत करती हैं।

Amit K Sagar ने कहा…

इक दम सही कहा है. ये सब देख-सुन कर कभी तो ऐसा लगता है इनके खिलाफ इक़ युद्ध की ज़रूरत है फिर लगता है कि क़ानून और संविधान भी है!
--
पंख, आबिदा और खुदा के लिए

रंजना ने कहा…

सही कहा...एकदम सही...

सचमुच एक पर दूसरा परत चढ़ा हुआ यह प्याज भी है जो स्वाद तो क्या देगा,रुलाने पर ही आमदा है..

mehek ने कहा…

bilkul sahi jagah sahi shabdon mein vaar kiya hai,gazab aur mast.asha ji.
hum thik hai,asha ji ,aur aap ko bhi sunder swasthya ki kamna karte hai.jeevan kuch vaysta chaal raha hai so blog par aana bahut ho gaya hai,magar koshish jarur karenge ke phir kuch likhu.
aaplyala xmas chya shubhechya aani navin yenarya varshachya suddha.sadar mehek.

Satish Saxena ने कहा…

बढ़िया व्यंग्य ...शुभकामनायें आपको !

Satish Saxena ने कहा…

बहुत दिन से कुछ लिख क्यों नहीं रहीं ...?

Aruna Kapoor ने कहा…

प्याज तो आसमान का तारा बन गया है आशा जी!.....अपनी भारत-भूमि पर खडे हो कर आसमां की तरफ देखिए...

Pratik Maheshwari ने कहा…

वाह सुन्दर कटाक्ष!!
आजकल तो बिना काटे ही प्याज रुला रहा है :)

"एक लम्हां" पढने ज़रूर आएं ब्लॉग पर..

आभार

mukta mandla ने कहा…

मजा आ गया ।
जितनी तारीफ़ की जाय कम है ।
सिलसिला जारी रखें ।
आपको पुनः बधाई ।
साधुवाद । साधुवाद ।

rajesh singh kshatri ने कहा…

Bahut Khubsurat Abhivyakti.

Dorothy ने कहा…

क्रिसमस की शांति उल्लास और मेलप्रेम के
आशीषमय उजास से
आलोकित हो जीवन की हर दिशा
क्रिसमस के आनंद से सुवासित हो
जीवन का हर पथ.

आपको सपरिवार क्रिसमस की ढेरों शुभ कामनाएं

सादर
डोरोथी

RADHIKA ने कहा…

वाह वाह आशा जी प्याज़ के बहाने सारी असलियत बतादी देश की ,गुड