जब जब जहां में जिंदगी के काफिले चलते रहे
दास्ताने इश्क के भी सिलसिले चलते रहे ।
मुस्कुरा कर हमको देखा उसने तो बस इक नजर,
दिल में उमंगों के खुशी के बुलबुले चलते रहे ।
हमने थामा हाथ उनका, खामोशी थी दरमियां
धीरे से जो हां कहा तो, मनचले जलते रहे ।
दोस्तों की महफिलों का बैठा मै सरताज बन,
उनके मेरे नाम संग संग यूं मिले मिलते रहे ।
आदमी-ए-आम का भी इश्क से है वास्ता
चाहे रोटी को तलाशे, चल पडे, चलते रहे ।
इश्क करना है तो यारों, कर लें इस धरती से हम
इसके अपने इश्क बाद-ए-मौत भी पलते रहे ।
अपनी ताकत को न हम पहचाने तो किस का कसूर,
हुक्मरानों के बनाये फासले चलते रहे ।
आदमी हैं, और कुछ बनने की कोशिश क्यूं करें,
आदमीयत ही निभायें, सिलसिले चलते रहें ।
32 टिप्पणियां:
आदमी हैं, और कुछ बनने की कोशिश क्यूं करें,
आदमीयत ही निभायें, सिलसिले चलते रहें ।
हर शेर कमाल का है ... बेहतरीन प्रस्तुति ...
hamesha ki tarah phir se aapki ek sunder kavita mili.
आदमी हैं, और कुछ बनने की कोशिश क्यूं करें,
आदमीयत ही निभायें, सिलसिले चलते रहें ।
वाह...वाह...वाह
आशा जी, आपकी अब तक की रचनाओं में हमे ये ग़ज़ल सबसे बेहतर लगी है... बधाई.
भावपूर्ण प्रभावशाली बहुत ही सुन्दर रचना....वाह !!!!
हर नज़्म बेहद गहरे भाव लिए हुए ...मन को छू गयी .
बेहतरीन रचना. शीर्षक में बड़ी ई की मात्रा लग गयी.
आपने ठीक पकडा सुब्रमनियन जी पर गलती तो हो गई अब ।
इश्क करना है तो यारों, कर लें इस धरती से हम
इसके अपने इश्क बाद-ए-मौत भी पलते रहे ।
बहुत सही ..काश हम ऐसा कर पाते..हर एक शेर में कमाल का ख्याल है ..शुक्रिया
सुंदर गज़ल।
हर शेर लाज़वाब।
मक्ते के इस शेर में जिंदगी का फलसफा है.
आदमी हैं, और कुछ बनने की कोशिश क्यूं करें,
आदमीयत ही निभायें, सिलसिले चलते रहें ।
..बधाई।
एक अनुरोध..
..हर शेर के बाद इंटर बटन दबा दें। दो शेरों के बीच खाली जगह तो होनी चाहिए न..!
आदमी हैं, और कुछ बनने की कोशिश क्यूं करें,
आदमीयत ही निभायें, सिलसिले चलते रहें ।
बस इतना समझ लें तो फिर कहने ही क्या..... ?
बेहतरीन पंक्तियाँ ......
आदमियत को ही महत्व देंगे हम अन्ततः।
मुस्कुरा कर हमको देखा उसने तो बस इक नजर,
दिल में उमंगों के खुशी के बुलबुले चलते रहे
दिल को छू नहीं बल्कि दिल में उतर गयी ग़ज़ल ...बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
जब जब जहां में जिंदगी के काफिले चलते रहे
दास्ताने इश्क के भी सिलसिले चलते रहे ।
द बेस्ट लाइंस।
हमने थामा हाथ उनका, खामोशी थी दरमियां
धीरे से जो हां कहा तो, मनचले जलते रहे ।
वाह ...बहुत खूब....!!
बढ़िया है
वाह सुंदर रचना है आपकी ये
खूब लिखा अपने आशा जी !
आदमीयत ही निभायें, सिलसिले चलते रहें ।
यकीनन आदमियत ही सिलसिले को कायम रख पायेगा.
सुन्दर रचना
आदमी हैं, और कुछ बनने की कोशिश क्यूं करें,
आदमीयत ही निभायें, सिलसिले चलते रहें.
दिल को गहराई से छूने वाली खूबसूरत और संवेदनशील प्रस्तुति. आभार.
सादर,
डोरोथी.
सुन्दर ग़ज़ल -- अंतिम पंक्तियाँ बहुत प्रेरक लगीं।
बहुत सुन्दर ...
बधाई ...
वाह क्या सुन्दर रचना लिखी है. उम्दा. वाह! वाह! वाह! शुक्रिया.
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कुछ ग़मों के दीये
aapne bahut acche shabdo se ishq ko sazaaya hai ..bahut sundar rachna
badhayi
vijay
kavitao ke man se ...
pls visit my blog - poemsofvijay.blogspot.com
इश्क करना है तो यारों, कर लें इस धरती से हम इसके अपने इश्क बाद-ए-मौत भी पलते रहे ..
वाह .. बहुत ही खूबसूरत ... लाजवाब सन्देश चिता है इस रचना में ... दिल को choo gayee रचना ....
आदमी हैं, और कुछ बनने की कोशिश क्यूं करें,
आदमीयत ही निभायें, सिलसिले चलते रहें ।
इंसानियत के शुभ सन्देश को
मुखरित करती हुई
लाजवाब रचना .... वाह !!
अभिवादन स्वीकारें .
bahut sunder rachna .antim do line to bahut sunder hai.......
इश्क करना है तो यारों, कर लें इस धरती से हम
इसके अपने इश्क बाद-ए-मौत भी पलते रहे ।
waah kya gazab kahi,sunder.
Hey, I am checking this blog using the phone and this appears to be kind of odd. Thought you'd wish to know. This is a great write-up nevertheless, did not mess that up.
- David
bahut hi sundar bhavon ko shbdon me piro diya apne.
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