आज मारना है रावण को, पर आज ही क्यूं
यहां तो रावण अब भरे पडे हैं
रोज ही मनाओगे दशहरा तब शायद
हो बुराई का अंत
तब ही मन करेगा अयोध्या लौटने को
मेरे आने तक भरत ने तो निष्कलंक रखी थी अयोध्या
तुम क्यों तुले हो इसे मलिन करने को
यहां के लोग तो नही चाहते ये सब
जिस कुर्सी के मोह में लिप्त हो, वही छोड दी थी
भरत ने, पाकर भी नही अपनाई थी
कुछ भी नही सीखे हो, सीख पाओगे भी नही
सिर्फ आग मत लगाओ
राख ठंडी हो गई है कुरेद कर हवा न दो
अपने आप खिल पडेंगे सद्भाव के फूल
जरा स्नेह का जल तो डालो ।
36 टिप्पणियां:
अपने आप खिल पडेंगे सद्भाव के फूल
जरा स्नेह का जल तो डालो ।
-बहुत सही...
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...राख ठंडी हो गई है कुरेद कर हवा न दो अपने आप खिल पडेंगे सद्भाव के फूल जरा स्नेह का जल तो डालो ...
काश लोग समझ पाते की इंसानियत , सद्भाव और भाईचारा क्या है ।
बेहद सुन्दर और सामयिक प्रस्तुति ।
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कविता के माध्यम से बहुत सार्थक संदेश दिया है आपने...यह संदेश जन-जन तक पहुंचे...बधाई।
सुन्दर सन्देश। लोग समझें तब ना। शुभकामनायें।
सही कहा आपने!...रावण एक नही है....करोडॉ रावण आतंक जमाए हुए है!...इनका खात्मा करना भी जरुरी है!...उत्तम रचना!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
दुर्गाष्टमी और विजय दशमी की शुभकामनाएं.
स्नेह के जल से कई रावण राम हो जायेंगे।
बढ़िया सन्देश
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
दुर्गाष्टमी और विजय दशमी की शुभकामनाएं.
wakaee.'ghar-ghar men rawan baitha hai, itne ram kahan se laayen?
दशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!
राख ठंडी हो गई है कुरेद कर हवा न दो
अपने आप खिल पडेंगे सद्भाव के फूल
सद्भाव का सुन्दर सन्देश ..
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..सिर्फ आग मत लगाओ
राख ठंडी हो गई है कुरेद कर हवा न दो
अपने आप खिल पडेंगे सद्भाव के फूल
जरा स्नेह का जल तो डालो ...
मंत्रमुग्ध करती हैं ये पंक्तियाँ ।
आभार।
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सही कहा, ज़रा स्नेह का जल डाल कर तो देखिए, सद्भाव के फूल खिलेंगे ही। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
बेटी .......प्यारी सी धुन
अपने आप खिल पडेंगे सदभाव के फूल
जरा स्नेह का जल तो डालो ।
अकाट्य सत्य, पर लोग अनजान हैं कि यह अमृत तुल्य स्नेह का जल मिलता कहाँ हैं..........
अति सुन्दर विचारों से भरी यह कविता निश्चय ही प्रशंसा के योग्य है......
हार्दिक बधाई.....
चन्द्र मोहन गुप्त
आज मारना है रावण को, पर आज ही क्यूंयहां तो रावण अब भरे पडे हैं रोज ही मनाओगे दशहरा तब शायदहो बुराई का अंत
बहुत सुन्दर .....
maulik aur sarthak abhivkti!
bahut sunder rachna..........
संदर्भ के सम्यक प्रयोग से प्रभावी अभिव्यक्ति.
कितना सही कहा आपने....
अब तो रोज क्या हर पल एक रावन को मारें तो भी इनकी संख्या जल्दी ही समाप्त होने वाली नहीं.
रावन अब रक्तबीज की भांति प्रतिपल पनपे जा रहे हैं..
अपने आप खिल पडेंगे सद्भाव के फूल
जरा स्नेह का जल तो डालो ।
बहुत सुन्दर .....!!
क्या मैडम, इतना मुश्किल वाला रास्ता बताती हैं आप?
यही बढ़िया है न, साल भर खुद रावण बने रहेंगे और एक दिन माथे पर तिलक लगाकर जोर से रामचंद्र की जय बोलेंगे और रावण का पुतला जलायेंगे, हो गई डयूटी पूरी। काये कू खाली पीली स्नेह का जल डालें और सद्भाव के फ़ूल खिलायें। नहीं होने का ये सब।
ji han asha ji , sneh ke jal ki hi kami hai. wo kami puri ho jaye to bat hi kuch aur hogi.
आपने एक बहुप्रयुक्त एवं पारम्परिक कथ्य को छुआ है...उसमें नयापन लाने का प्रयास साफ़ दिखायी दे रहा है। फिर भी चाहूँगा कि इसी कविता को एक बार फिर लिखें...मेरा आशय है कि इस विषय को थोड़ा और विस्तार दिया जा सकता है, समकाल से जोड़कर।
सामयिक ।
सही कहा ... इंसान अपने अंदर के रावण को नही जलाता कभी ....
आज मारना है रावण को, पर आज ही क्यूं
यहां तो रावण अब भरे पडे हैं
bahut hee sahi likha hai aapne...dil ko chhoo lene walee rachna badhayi
काश, रावण के पुतले के साथ बुराई का भी अंत हो जाता।
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सुनामी: प्रलय का दूसरा नाम।
चमत्कार दिखाऍं, एक लाख का इनाम पाऍं।
जी
पर अब ये सम्भव नहीं
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अपने आप खिल पडेंगे सद्भाव के फूल जरा स्नेह का जल तो डालो bahut sunder,har insaan aise soche aur kare tho har mann ka ravan mar jaye.
AAPKO SAH PARIVAAR DIWALI KI BAHUT SHUBKAMNAYE.
दीवाली की शुभकामनाएं स्वीकार करें
..सिर्फ आग मत लगाओ
राख ठंडी हो गई है कुरेद कर हवा न दो
अपने आप खिल पडेंगे सद्भाव के फूल
जरा स्नेह का जल तो डालो ...
bahut hee sahi kaha hai aapne..kash aise hee sabhee log sochne lage
सुंदर रचना, सुंदर प्रस्तुति...धन्यवाद! ...दिपावली की शुभ-कामनाएं!
बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
bahoot hi sahi bat kahi aap longo ne. ....har ravan ka aant hona jaroori hai.
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