क्यूं करोगे संतोष आधी रोटी से,
छीन लो अगर तुमको दो चाहिये ।
तीन की या चार की भी हो सकती है जरूरत,
तुम्हारी उम्र और काम के हिसाब से,
नही कर लेना है सबर अब ।
अपनी जरूरत तो पूरी करना ही है,
ज्यादा की भी चाह रखनी है ।
देखना है नये सपने ।
सपने ऊँचाइयों के,
शिखरों के,
नीले आसमान के,
सितारों से आगे के ।
हक है ये तुम्हारा
कोई खैरात में नही मांग रहे हो।
करो मेहनत, बढो आगे
मंजिल की और ।
एक के बाद दूसरी,
तीसरी और चौथी मंजिलें
तय करो और पाते जाओ ।
छोटा पड जायेगा आसमान
तुम्हारी आशाओं के आगे ।
एक काम और करना
सीढी को लात मार कर नीचे नही गिराना ।
14 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर!बेहतरीन!
"सीढी को लात मार कर नीचे नही गिराना" यह बहुत अच्छा लगा. सुन्दर रचना. आभार.
बेहतरीन रचना, आभार|
हक है ये तुम्हारा
कोई खैरात में नही मांग रहे हो
बिलकुल सही सन्देश । उम्दा रचना बधाई
बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है
काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर
आज के ज़माने में यही श्रेयस्कर है...सुन्दर अभिव्यक्ति
छीनना, सपने देखना, ऊँचाईयाँ पाना और सीढ़ी पर लात मार देना, इन चार बिम्बों से आपने आधुनिकता की पोल खोल कर रख दी है । प्रभावी कविता ।
Prabhavi lekhan.shubkamnayen.
Shaandaar rachna.
सीढ़ी...को नहीं गिराएंगे...
तो दूसरा नहीं आ जाएगा???
इस सोच को कैसे बदले ये स्वार्थी इन्सान!
bahot achcha likhtin hain aap.
एक काम और करना
सीढी को लात मार कर नीचे नही गिराना
अतिसुन्दर.
आज के जमाने में जहां लोग दूसरे के सिर पर पैर रख कर ऊपर चढने की बात करते हैं वहां---सीडी मत गिराना की बात सुखद संदेश सी लगती है।
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