रविवार, 20 जून 2010

सीढी


क्यूं करोगे संतोष आधी रोटी से,
छीन लो अगर तुमको दो चाहिये ।
तीन की या चार की भी हो सकती है जरूरत,
तुम्हारी उम्र और काम के हिसाब से,
नही कर लेना है सबर अब ।
अपनी जरूरत तो पूरी करना ही है,
ज्यादा की भी चाह रखनी है ।
देखना है नये सपने ।
सपने ऊँचाइयों के,
शिखरों के,
नीले आसमान के,
सितारों से आगे के ।
हक है ये तुम्हारा
कोई खैरात में नही मांग रहे हो।
करो मेहनत, बढो आगे
मंजिल की और ।
एक के बाद दूसरी,
तीसरी और चौथी मंजिलें
तय करो और पाते जाओ ।
छोटा पड जायेगा आसमान
तुम्हारी आशाओं के आगे ।
एक काम और करना
सीढी को लात मार कर नीचे नही गिराना ।

14 टिप्‍पणियां:

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर!बेहतरीन!

P.N. Subramanian ने कहा…

"सीढी को लात मार कर नीचे नही गिराना" यह बहुत अच्छा लगा. सुन्दर रचना. आभार.

शिवम् मिश्रा ने कहा…

बेहतरीन रचना, आभार|

निर्मला कपिला ने कहा…

हक है ये तुम्हारा
कोई खैरात में नही मांग रहे हो
बिलकुल सही सन्देश । उम्दा रचना बधाई

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत दिनों बाद इतनी बढ़िया कविता पड़ने को मिली.... गजब का लिखा है

संजय भास्‍कर ने कहा…

काफी सुन्दर शब्दों का प्रयोग किया है आपने अपनी कविताओ में सुन्दर अति सुन्दर

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

आज के ज़माने में यही श्रेयस्कर है...सुन्दर अभिव्यक्ति

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

छीनना, सपने देखना, ऊँचाईयाँ पाना और सीढ़ी पर लात मार देना, इन चार बिम्बों से आपने आधुनिकता की पोल खोल कर रख दी है । प्रभावी कविता ।

sandhyagupta ने कहा…

Prabhavi lekhan.shubkamnayen.

ZEAL ने कहा…

Shaandaar rachna.

शाहिद मिर्ज़ा ''शाहिद'' ने कहा…

सीढ़ी...को नहीं गिराएंगे...
तो दूसरा नहीं आ जाएगा???
इस सोच को कैसे बदले ये स्वार्थी इन्सान!

mridula pradhan ने कहा…

bahot achcha likhtin hain aap.

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

एक काम और करना
सीढी को लात मार कर नीचे नही गिराना
अतिसुन्दर.

shyam gupta ने कहा…

आज के जमाने में जहां लोग दूसरे के सिर पर पैर रख कर ऊपर चढने की बात करते हैं वहां---सीडी मत गिराना की बात सुखद संदेश सी लगती है।