कैसा ये धोखा हमारे साथ हुआ
कांधे पे सिर रखा जिसके
वही कातिल हुआ ।
जिसको बना के राज़दार
हम थे बेफिक्र
वही भेदी हमारे घर का हुआ ।
हर बार सोचते रहे
अब कुछ अच्छा होगा
हाल हमारा बद से बदतर हुआ ।
सुकून से तो जीते थे
चाहे रोटी कम थी
अब जान का दुष्मन हर निवाला हुआ ।
भोर जायेंगे तो क्या
शाम को घर लौटेंगे
इस सवाल का पक्का, न जवाब हुआ ।
अब तक कटी है तो
आगे भी कट जायेगी
सपना अपना चाहे पूरा न हुआ ।
ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।
29 टिप्पणियां:
अंतिम पंक्तियों में भरपूर आशावाद है ।
वाह जी क्या बात है ...
सुंदर कविता....
जिसको बना के राज़दार
हम थे बेफिक्र
वही भेदी हमारे घर का हुआ ।
प्रवासी भारतियों की व्यथा को उजागर करती रचना।
वैसे हगर का भेदी तो हमेशा ही अहित करता रहा है।
बहुत ही भावपूर्ण रचना...आभार
अब तक कटी है तो
आगे भी कट जायेगी
सपना अपना चाहे पूरा न हुआ ।
ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।
Bahut khoob !
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है।बधाई।
Behad sundar rachna...dard aur aashaawaad donose sarabr!
आशा का संचार करती सुन्दर रचना आशा जी।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।
khup chan aahe kavita,nirashetun,aashe kade nenari.dhoke khup milatat,pan apan ekatech nahi.baht si bhid hai duniya mein.waah .
कविता के बहाने जिंदगी को जीने का मर्म बता दिया आपने।
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छोटी सी गल्ती जो बडे़-बडे़ ब्लॉगर करते हैं।
क्या अंतरिक्ष में झण्डे गाड़ेगा इसरो का यह मिशन?
हर बार सोचते रहे
अब कुछ अच्छा होगा
हाल हमारा बद से बदतर हुआ ।
बहुत खूब.
बहुत ही अच्छी रचना...सच्ची खरी बातें सीधी सादी जबान में...वाह...
नीरज
जिसको बना के राज़दार
हम थे बेफिक्र
वही भेदी हमारे घर का हुआ ।
भेदी तो अपने घर का ही होता है
सुन्दर रचना
'' घर का भेदी लंका ढाए '' आशा जी इस कहावत को क्यों नहीं याद रखा आपने .....!!
रिश्तों से लेकर वक्त के साथ बदले हालत पर सटीक कविता.
ghar se kaheeN duur
ghar banaa kar rehne waaloN ki
manovyathaa ka bharpoor vivran..
lekin....
ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।
ye keh kar aapne khoob aas bandhaaee hai...
"kaho na aas niraas bh`ee..."
ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ...
बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं .......... सब कोई ऐसे ही जीता है ........ अच्छी रचना ..........
ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।
आशा जी ये दुनिया ऐसी ही है।
बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ शुभकामनायें
उत्तम भाव
अंतिम दो पैरा आशा का संचार करते हैं.
"...भोर जायेंगे तो क्या
शाम को घर लौटेंगे
इस सवाल का पक्का, न जवाब हुआ ।
अब तक कटी है तो
आगे भी कट जायेगी
सपना अपना चाहे पूरा न हुआ ।
ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।"
सीधी सच्ची बात
हालात का चित्रण भी कर दिया
और समझा भी दिया.
- सुलभ
अच्छी रचना, मैम!
थोड़ी-सी मेहनत की माँग थी वैसे रचना को और ये और खूबसूरत हो सकती है।
कैसा ये धोखा हमारे साथ हुआ
कांधे पे सिर रखा जिसके
वही कातिल हुआ ।
भोर जायेंगे तो क्या
शाम को घर लौटेंगे
इस सवाल का पक्का, न जवाब हुआ ।
In panktiyon ne man moh liya.Shubkamnayen.
बहुत खूब अच्छी अच्छी रचना
बहुत बहुत आभार
मेजर साहब थोडी मदद कीजीये ना इसे बेहतर बनाने के लिये ।
ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।
man ko choo gai ye pnkntiya
aaj kal aap kam hi dikhai deti hai ?
बहुत खूब अच्छी अच्छी रचना
बहुत बहुत आभार
aasha ji
नमस्कार!
आदत मुस्कुराने की तरफ़ से
से आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
Sanjay Bhaskar
Blog link :-
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
suqun se jeete the chahe roti km thi ......
hr buzurg ,umr ki dhalaan pr pahunche insaan ka drd ,uska anubhv bol utha hai aapki rchna me
aur.....sb paa kr bhi is pdaav pr aa kr chhle gaye se mahsoos karte hain hm .......
but show must go on .
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