मंगलवार, 15 दिसंबर 2009

गम ना कर

कैसा ये धोखा हमारे साथ हुआ
कांधे पे सिर रखा जिसके
वही कातिल हुआ ।

जिसको बना के राज़दार
हम थे बेफिक्र
वही भेदी हमारे घर का हुआ ।

हर बार सोचते रहे
अब कुछ अच्छा होगा
हाल हमारा बद से बदतर हुआ ।

सुकून से तो जीते थे
चाहे रोटी कम थी
अब जान का दुष्मन हर निवाला हुआ ।

भोर जायेंगे तो क्या
शाम को घर लौटेंगे
इस सवाल का पक्का, न जवाब हुआ ।

अब तक कटी है तो
आगे भी कट जायेगी
सपना अपना चाहे पूरा न हुआ ।

ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।

29 टिप्‍पणियां:

शरद कोकास ने कहा…

अंतिम पंक्तियों में भरपूर आशावाद है ।

अजय कुमार झा ने कहा…

वाह जी क्या बात है ...

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

सुंदर कविता....

डॉ टी एस दराल ने कहा…

जिसको बना के राज़दार
हम थे बेफिक्र
वही भेदी हमारे घर का हुआ ।

प्रवासी भारतियों की व्यथा को उजागर करती रचना।
वैसे हगर का भेदी तो हमेशा ही अहित करता रहा है।

समय चक्र ने कहा…

बहुत ही भावपूर्ण रचना...आभार

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

अब तक कटी है तो
आगे भी कट जायेगी
सपना अपना चाहे पूरा न हुआ ।

ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।

Bahut khoob !

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है।बधाई।

kshama ने कहा…

Behad sundar rachna...dard aur aashaawaad donose sarabr!

श्यामल सुमन ने कहा…

आशा का संचार करती सुन्दर रचना आशा जी।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

mehek ने कहा…

ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।
khup chan aahe kavita,nirashetun,aashe kade nenari.dhoke khup milatat,pan apan ekatech nahi.baht si bhid hai duniya mein.waah .

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

कविता के बहाने जिंदगी को जीने का मर्म बता दिया आपने।

--------
छोटी सी गल्ती जो बडे़-बडे़ ब्लॉगर करते हैं।
क्या अंतरिक्ष में झण्डे गाड़ेगा इसरो का यह मिशन?

वन्दना अवस्थी दुबे ने कहा…

हर बार सोचते रहे
अब कुछ अच्छा होगा
हाल हमारा बद से बदतर हुआ ।
बहुत खूब.

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत ही अच्छी रचना...सच्ची खरी बातें सीधी सादी जबान में...वाह...

नीरज

M VERMA ने कहा…

जिसको बना के राज़दार
हम थे बेफिक्र
वही भेदी हमारे घर का हुआ ।
भेदी तो अपने घर का ही होता है
सुन्दर रचना

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

'' घर का भेदी लंका ढाए '' आशा जी इस कहावत को क्यों नहीं याद रखा आपने .....!!

Abhishek Ojha ने कहा…

रिश्तों से लेकर वक्त के साथ बदले हालत पर सटीक कविता.

daanish ने कहा…

ghar se kaheeN duur
ghar banaa kar rehne waaloN ki
manovyathaa ka bharpoor vivran..
lekin....
ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।
ye keh kar aapne khoob aas bandhaaee hai...
"kaho na aas niraas bh`ee..."

दिगम्बर नासवा ने कहा…

ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ...

बहुत सुंदर पंक्तियाँ हैं .......... सब कोई ऐसे ही जीता है ........ अच्छी रचना ..........

निर्मला कपिला ने कहा…

ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।
आशा जी ये दुनिया ऐसी ही है।
बहुत अच्छी लगी ये पंक्तियाँ शुभकामनायें

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

उत्तम भाव
अंतिम दो पैरा आशा का संचार करते हैं.

Sulabh Jaiswal "सुलभ" ने कहा…

"...भोर जायेंगे तो क्या
शाम को घर लौटेंगे
इस सवाल का पक्का, न जवाब हुआ ।

अब तक कटी है तो
आगे भी कट जायेगी
सपना अपना चाहे पूरा न हुआ ।

ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।"

सीधी सच्ची बात
हालात का चित्रण भी कर दिया
और समझा भी दिया.

- सुलभ

गौतम राजऋषि ने कहा…

अच्छी रचना, मैम!

थोड़ी-सी मेहनत की माँग थी वैसे रचना को और ये और खूबसूरत हो सकती है।

sandhyagupta ने कहा…

कैसा ये धोखा हमारे साथ हुआ
कांधे पे सिर रखा जिसके
वही कातिल हुआ ।

भोर जायेंगे तो क्या
शाम को घर लौटेंगे
इस सवाल का पक्का, न जवाब हुआ ।

In panktiyon ne man moh liya.Shubkamnayen.

Pushpendra Singh "Pushp" ने कहा…

बहुत खूब अच्छी अच्छी रचना
बहुत बहुत आभार

Asha Joglekar ने कहा…

मेजर साहब थोडी मदद कीजीये ना इसे बेहतर बनाने के लिये ।

शोभना चौरे ने कहा…

ऐसे ही जिया करते है
हजारों में लोग
गम ना कर, तू अकेला न हुआ ।

man ko choo gai ye pnkntiya
aaj kal aap kam hi dikhai deti hai ?

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत खूब अच्छी अच्छी रचना
बहुत बहुत आभार

संजय भास्‍कर ने कहा…

aasha ji
नमस्कार!

आदत मुस्कुराने की तरफ़ से
से आपको एवं आपके परिवार को क्रिसमस की हार्दिक शुभकामनाएँ!

Sanjay Bhaskar
Blog link :-
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

बेनामी ने कहा…

suqun se jeete the chahe roti km thi ......
hr buzurg ,umr ki dhalaan pr pahunche insaan ka drd ,uska anubhv bol utha hai aapki rchna me
aur.....sb paa kr bhi is pdaav pr aa kr chhle gaye se mahsoos karte hain hm .......
but show must go on .