सोमवार, 22 जून 2009

दुख क्या है ?



दुख क्या है—अभाव अनुभूती

चाह अगरचे ना हो पूरी
छिन जाये कोई वस्तू प्यारी
कोई प्रिय विछोह हो जाये
पीडा असहनीय हो जाये
हो शरीर की या ह्रदय की । दुख क्या है..

बींमारी—अभाव स्वास्थ्य का
वियोग क्या- अभाव प्रिय जन का
असफलता- यश का अभाव है
अपूर्णता चोट का भाव है
न्यून्यता है कमी पूर्ण की । दुख क्या है..

इस दुख को हम सुख में बदलें
कमी को अधिकता दें चलें
बीमारों को स्वास्थ्य मिले और
असफलता को यश में बदलें
कर लें अपनी ही क्षति पूर्ती । दुख क्या है..

विरही को उसका प्रिय मिल जाये
माँ को नन्हा शिशु मिल जाये
घावों पर लगायें मरहम
पौधों को पानी मिल जाये
करें प्रार्थना उस ईश्वर की । दुख क्या है..

25 टिप्‍पणियां:

M VERMA ने कहा…

विरही को उसका प्रिय मिल जाये
माँ को नन्हा शिशु मिल जाये
घावों पर लगायें मरहम
पौधों को पानी मिल जाये
करें प्रार्थना उस ईश्वर की । दुख क्या है..
बहुत उदात्त प्रार्थना है. हम भी शामिल होते है.

Udan Tashtari ने कहा…

हमें भी शामिल समझें.

मुकेश कुमार तिवारी ने कहा…

आदरणीय आशा जी,

जीवन के प्रति ऊर्जा भरे विचारों से ओत-प्रोत कविता प्रेरणादायी है।

घावों पर लगायें मरहम
पौधों को पानी मिल जाये
करें प्रार्थना उस ईश्वर की

ईश्‍वर से इस नेक प्रार्थना में आपके साथ।

सादर,

मुकेश कुमार तिवारी

राज भाटिय़ा ने कहा…

हम भी इस प्राथना मै शामिल है .
धन्यवाद

मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे

नीरज गोस्वामी ने कहा…

बहुत सकारात्मक सोच वाली कविता है आपकी...बहुत ही अच्छी तरह लिखा है आपने...बधाई...
नीरज

रंजना ने कहा…

महत पवित्र भाव ...सचमुच इसीमे जीवन की सार्थकता है.....

बहुत ही सुन्दर सकारात्मक इस रचना के लिए आभार !!!!!

Mumukshh Ki Rachanain ने कहा…

उत्तम, अतिउत्तम, प्रभावशाली अभिव्यक्ति.

बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त

P.N. Subramanian ने कहा…

बहुत ही सुन्दर रचना. ."पौधों को पानी मिल जाये" हम लोग तो आस लगाये बैठे हैं आसमान को ताकते.

Abhishek Ojha ने कहा…

अगर ऐसे सुझाव हों तो 'दुःख क्या है?' सोचते सोचते बुद्ध होने की क्या जरुरत !

निर्मला कपिला ने कहा…

विरही को उसका प्रिय मिल जाये
माँ को नन्हा शिशु मिल जाये
घावों पर लगायें मरहम
पौधों को पानी मिल जाये
करें प्रार्थना उस ईश्वर की । दुख क्या है..
आशाजी पहली बार आपके ब्लोग पर नज़र पडी लगता है मै तो अब तक अच्छी कविताओं से ही वंचित रह गयी बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति है प्रेरनात्मक शुभकामनायें आभार्

Neeraj Kumar ने कहा…

Ma'am,
Thanks for comments...A senior blogger like you when comment it is very inspiring...

चाह अगरचे ना हो पूरी
छिन जाये कोई वस्तू प्यारी
कोई प्रिय विछोह हो जाये
पीडा असहनीय हो जाये
हो शरीर की या ह्रदय की । दुख क्या है..

what say...

Anil Pusadkar ने कहा…

बहुत ही अच्छा लिखा आपने ताई।आपकी नई पोस्ट पता नही क्यों खुल नही पा रही है।

Anil Pusadkar ने कहा…

क्षमा करे पोस्ट लिख गया,आपका ब्लोग खुल नही रहा है।पेज नाट फ़ाऊंड डिस्प्ले हो रहा है।होम पेज पर जाकर ब्लाग खुलता है।

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: ने कहा…

बहुत सुन्दर भावः पूर्ण अभिव्यक्ति

समेटे कुछ शब्दों में जो सब के दुःख ,
शायद ' जन - मन ' गान इसी को कहते हैं ;
सार्वजनीन हित ईश प्रार्थना जो गाई जाये,
' साम - गान ' शायद उसी को कहते हैं ||

प्रकाश गोविंद ने कहा…

अत्यंत उत्कृष्ट कविता है !
सकारात्मक ऊर्जा से भरपूर पंक्तियाँ
मन को संबल देती हैं !

हार्दिक शुभकामनाएं !

आज की आवाज

sandhyagupta ने कहा…

Atyant bhavpurn rachna.

Satish Saxena ने कहा…

एक बहुत खूबसूरत रचना

अनुपम अग्रवाल ने कहा…

सुन्दर अभिव्यक्ति

प्रार्थना में हमं भी शामिल कर लें

प्रसन्नवदन चतुर्वेदी 'अनघ' ने कहा…

"विरही को उसका प्रिय मिल जाये
माँ को नन्हा शिशु मिल जाये
घावों पर लगायें मरहम
पौधों को पानी मिल जाये
करें प्रार्थना उस ईश्वर की"
ईश्‍वर से इस प्रार्थना में हमें भी शामिल समझें...

बेनामी ने कहा…

यथार्थ और सुन्दर चित्रण किया आपने.......

vijay kumar sappatti ने कहा…

asha tai

aap ne bahut hi acche vichaar likhe hai...

Aabhar
Vijay
http://poemsofvijay.blogspot.com/2009/07/window-of-my-heart.html

नीरज गोस्वामी ने कहा…

अत्यंत प्रभव शाली रचना...दुःख और सुख का अद्भुत चित्रण किया है आपने अपनी कविता में.
नीरज

कडुवासच ने कहा…

... प्रभावशाली अभिव्यक्ति !!!!!

vikram7 ने कहा…

अति प्रभावशाली रचना

mehek ने कहा…

विरही को उसका प्रिय मिल जाये
माँ को नन्हा शिशु मिल जाये
घावों पर लगायें मरहम
पौधों को पानी मिल जाये
करें प्रार्थना उस ईश्वर की । दुख क्या है..
बहुत उदात्त प्रार्थना है. हम भी शामिल होते है.

khup surekh,jagat asech whawe,dukh ,sukhat rupantarit howo.