रविवार, 7 जून 2009

याद आया


वो गुज़रा जमाना याद आया
वो पुराना फसाना याद आया।
यारों जो हमारा साझा था
दोस्ती का वो तराना याद आया ।
वो खींचना टांगे बंदों की,
उनकी चुस्ती ढहाना, याद आया।
वो बनाना कागजों के तीर
और लडकियों पे निशाना याद आया ।
वो देना जाँ भी दोस्ती के लिये
और वादे निभाना याद आया ।
किताबों को रख के सिरहाने
लेना, सपने सुहाने याद आया ।
उनका आने का वादा करके फिर
वो बहाना बनाना याद आया ।
वो जयप्रकाशजी का आंदोलन
और नारे लगाना याद आया ।
दूध में पानी ही मिलाता था
वो प्यारा सा ग्वाला याद आया ।
दोस्तों, अब हम क्या कहें तुमसे
कितना वो जमाना याद आया ।

28 टिप्‍पणियां:

राज भाटिय़ा ने कहा…

वो देना जाँ भी दोस्ती के लिये
और वादे निभाना याद आया ।
किताबों को रख के सिरहाने
लेना, सपने सुहाने याद आया ।
आप ने तो बहुत कुछ याद दिला दिया, बहुत सुंदर रचना.
आप का धन्यवाद

Udan Tashtari ने कहा…

बहुत सुन्दर.

रंजीत/ Ranjit ने कहा…

जी हां, यादों की पोटली होती है ऐसी, खोलिये तो समेटते-समेटते थक जाइये। यादों का याद करने का निराला अंदाज...

Vinay ने कहा…

प्रशंसनीय कृति...

Scorpion King ने कहा…

Kabhi Kabhi yuun bhi lagta hai ki
" Zindagi humesha ekla chalo ke siddhant oer nahin chalti aur apne aapko globalize karne nikalo to humaare aapke jaisa sochne vaale bahut se log hain parantu ek doosre se anjaan hain, kaun kehta hai ki aasman me suraakh nahi ho sakta, Ek patthar to tabiyat se uchhalo yaaron " Achhi abhivyakti hai bachpan ke ehsaason ki, puraani yaadon ki .

हरकीरत ' हीर' ने कहा…

बहुत खूब ....!!

आशा जी आपको यूँ ही गुजरा जमाना याद आता रहे ....!!

शोभना चौरे ने कहा…

bhut khoob
akipki kvita ne hme hmara bhikhubsurat jmana yad dila diya .

बेनामी ने कहा…

Aadarniya Aashaji...

Pranaam..Aapka ek beta dilii me bhii rahataa hai. Use kaise bhool gai.
Mei bhagavaan se dua karataa hoon ke aap aur aapke pati hazaar ssal tak jiye taaki mujhe aap aur aapke pati ki taarif karane ka maukaa milta rahe aur me khud bhi hazaar saal taK ZINDFA rahoon
aapakaa nakalii beta

mukesh manas

गर्दूं-गाफिल ने कहा…

वो जयप्रकाशजी का आंदोलन
और नारे लगाना याद आया ।
दूध में पानी ही मिलाता था
वो प्यारा सा ग्वाला याद आया

यादो के हमसाये रहना
दर्द ख़ुशी जीवन का गहना
yadon ko smhale rahiye
umr bachate rahiye

जो भी आयेगा
खूब खायेगा
औघा जायेगा तब भी
ना रुकेगा
क्यूं कि लालच का अंत नही
सात पीढियों तक की ही सोचें ऐसे वो संत नहीं


बहुत अच्छा और सच्चा कहा है
badhai


एक अत्यंत प्रतिभावान कवियत्री और कहानीकार सुश्री कुन्दा जोगलेकर से आप का परिचय अवश्य होगा यदि न हो तो अवश्य परिचित होइए . कुन्दा जी संस्कार भारती की साहित्य विधा प्रमुख हैं उनका फ़ोन नंबर ०७५१-२४२९८१० है

June 11, 2009 11:26 AM

Asha Joglekar ने कहा…

आप सभी का आभार । आपकी टिप्पणियाँ ही हौसला बढातीं हैं ।
मुकेश जी तीसरा बेटा बनने का शुक्रिया । पला पलाया बेटा किसे अच्छा न लगेगा पर अंत में नकली क्यूं बन गये । नेवेंबर के बाद में हम दिल्ली जायेंगे तब आप से मुलाकत होगी ।

Asha Joglekar ने कहा…

Read November in place of Nevember.

Poonam Agrawal ने कहा…

Kitna vo jamana yaad aaya....bahut khoob....kuch yaadein yaad kerke hi kitna sookoon milta hai....aapki rachana se jhalakta hai....khoobsoorat rachna ....khoobsoorat yaad ke saath....

रज़िया "राज़" ने कहा…

सुंदर रचना!!कुछ-कुछ मुज़से मीलती-जुलती।अभिनंदन।

Pankaj Upadhyay (पंकज उपाध्याय) ने कहा…

aapne bhi ladkiyon pe nishane lagaye the :P kidding..

Mujhe apna to pata hai.. Maine to kabhi nahin lagaya. again kidding..

Hamesha ki tarah bahut hi simple shabdon mein sab kuch kah dene wali kavita..bahut sundar

'' अन्योनास्ति " { ANYONAASTI } / :: कबीरा :: ने कहा…

यह मेरा अहो-भाग्य कि इस अकिंचन के द्वारे सरस्वती पधारीं '' कबीरा '' धन्य हुआ !
निराशाओं के हलाहल-सागर मध्य से ,
असफलताओं का बोझ ले पुनः-पुनः संघर्ष करते ,
गुज़रना ही नीलकंठ होने कि अनुभूति दे जाता है ,
और तभी हम स्वीकार पाते है है ' माँ फलेषु कदचिना ' ||
परन्तु नीलकंठ फिर भी हम नहीं हो पाते ,
इन्सां हैं हम चुभती है असफलताओं की फांस ; कभी-कभी ,
रिश्ते हमारे बना इन्ही का नश्तर हैं चुभाते,
इस पीड़ा से निर्लिप्त नहीं हम इसी लिए नीलकंठ नहीं हो पाते ||


यह यादों के झरोखे ही हमें नीलकंठ नहीं होने देते | लोक नायक के उस संघर्ष में दो धाराएँ उभरी थीं ' गुजरात और बिहार ', गुजरात की धारा सार्थक रही उसने ' गंगा ' बन लोकतंत्र को नव जीवन दे दिया ,जब की बिहारी-नायक जातिवाद की तरंगो पर चढ़ उभरा और इसकी ताकत पहचान जातिवाद को ही पोसता रहा | तीसिरी मौन-धारा यू पी की थी , सही अर्थों में उसी ने लोकतंत्र को जन-तंत्र की शक्ति के रूप में ऐसा रेखांकित किया कि ९० साल पुरानी बरगद कि जड़ों वाली कांग्रेस उस जन-तांत्रिक आंधी में धराशायी हो गयी |
लोग कहते हैं ,
वक्त ठहरता नहीं ,
और नाही हम,
वक्त को पकड़ सकते हैं ;
मेरी नज़र में यह खाम-ख्याली है,
हम वक्त को रोक कर पकड़ लेते हैं ,
फिर हमेशा उसे दोहराते रहते हैं ,
इसी को हम यादें कहते हैं ,
यादें कहते है !!

अर्कजेश Arkjesh ने कहा…

यादों को कविता में बहुत बढ़िया पिरोया है आपने |

gazalkbahane ने कहा…

इसी विचार को इस तरह पढने के लिये
जानेमन इतनी तुम्हारी याद आती है कि बस
रूह मिलने के लिये यूं कसमसाती है कि बस
http//:gazalkbahane.blogspot.com/ पर एक-दो गज़ल वज्न सहित हर सप्ताह या
http//:katha-kavita.blogspot.com/ पर कविता ,कथा, लघु-कथा,वैचारिक लेख पढें

admin ने कहा…

AApkee sunder tippni ke liye dhanyvaad. Badhiya likhtee hai aap. Yaadon se bhari hui meethee see..

अमिताभ श्रीवास्तव ने कहा…

सच है हम उम्र के साथ साथ आगे बढ्ते जाते है और यादे जवान होकर हमारे पीछे पीछे दोड लगाती है/ सुनहरा अतीत///

KK Yadav ने कहा…

Bahut khub..wo gujara jamana yad aa gaya...lajwab !!
______________________________
अपने प्रिय "समोसा" के 1000 साल पूरे होने पर मेरी पोस्ट का भी आनंद "शब्द सृजन की ओर " पर उठायें.

mehek ने कहा…

khup sunder,junta aathavai ekdam ufalun aalya.kashya aahat aapan,madhe aplya daatacha problem vachla hota,aata thik aahe na.

बेनामी ने कहा…

आदरणीय आशा जी
प्रणाम। कविता आपको अच्छी लगी इसके लिये बहुत-बहुत शुक्रिया। आपकी सारी कवितायें मैंने पढ़ली हैं। कवितायें आपकी भावनाओं के साथ-साथ आपकी रचनात्मकता को दर्शाती हैं। दोनों बहुत निर्दोष और जीवंत हैं।
नवम्बर में मैं आपसे मिलकर बहुत खुशी होगी। कालेज में आपका एक कविता पाठ रख लेंगे।कविता पाठ के लिये पहले से ही समय तय कर लीजिये। अपना शेडयूल मुझे भेज दीजियेगा ताकि मैं उसी हिसाब से कार्यक्रम तय कर सकूँ।
आपका
मुकेश मानस

बेनामी ने कहा…

आदरणीय आशा जी
प्रणाम। कविता आपको अच्छी लगी इसके लिये बहुत-बहुत शुक्रिया। आपकी सारी कवितायें मैंने पढ़ली हैं। कवितायें आपकी भावनाओं के साथ-साथ आपकी रचनात्मकता को दर्शाती हैं। दोनों बहुत निर्दोष और जीवंत हैं।
नवम्बर में मैं आपसे मिलकर बहुत खुशी होगी। कालेज में आपका एक कविता पाठ रख लेंगे।कविता पाठ के लिये पहले से ही समय तय कर लीजिये। अपना शेडयूल मुझे भेज दीजियेगा ताकि मैं उसी हिसाब से कार्यक्रम तय कर सकूँ।
आपका
मुकेश मानस

बेनामी ने कहा…

आदरणीय आशा जी
प्रणाम। कविता आपको अच्छी लगी इसके लिये बहुत-बहुत शुक्रिया। आपकी सारी कवितायें मैंने पढ़ली हैं। कवितायें आपकी भावनाओं के साथ-साथ आपकी रचनात्मकता को दर्शाती हैं। दोनों बहुत निर्दोष और जीवंत हैं।
नवम्बर में मैं आपसे मिलकर बहुत खुशी होगी। कालेज में आपका एक कविता पाठ रख लेंगे।कविता पाठ के लिये पहले से ही समय तय कर लीजिये। अपना शेडयूल मुझे भेज दीजियेगा ताकि मैं उसी हिसाब से कार्यक्रम तय कर सकूँ।
आपका
मुकेश मानस

Science Bloggers Association ने कहा…

यादों का बाइस्कोप देखना, हमें भाया।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }

Sajal Ehsaas ने कहा…

sab kuchh bada achha,bahut pyaara likha hai aapne...par mam,aap kagazo se ladkiyo pe nishaana maartee thee??... :O


www.pyasasajal.blogspot.com

shama ने कहा…

Yahee yaaden khoone jigar se likhi jaatee hai, dilkee zameen pe...!

Aashaji...aapki tippaniyan mere liye behad mayne rakhteen hai, kyonki, jaanti hun, wo sachhaai se labrez hotee hain...

Aapke har margdarshan kaa intezaar rahta hai..

"Yaad aatee rahee..." kee aglee kisht likh chukee hin!

http://kavitasbyshama.blogspot.com

http://shamasansmaran.blogspot.com

http://aajtakyahantak-thelightbyalonelypath.blogspot.com

Mujhe yaad hai, aap meree "Duvidha" malika padha kartee theen..!

The light by a lonelely path", ye blog pe likhna mujhe band karna pada...useeka ek hisa unheen chand awanchhit ghatnayon ke karan mujhe poora delete bhi karna pada..khair..!
Yebhee ek jeevan shiksa ke antargat seekh hee milee..

Ab bhee tanhaa hee hain, sirf raah mod lee...!

Satish Saxena ने कहा…

मज़ा आ गया, बहुत सुंदर रचना !