गुरुवार, 8 मई 2008
हम क्या कर रहे हैं
हम क्या कर रहे हैं
कहाँ जा रहे हैं
एक पल को रुक कर सोचें जरा
क्या पाने की ललक में हम क्या खो रहे हैं।
वर्तमान के क्षणिक सुख की खातिर
अपना भविष्य खोते जा रहे हैं
इन नन्हे से फूलों को प्रकाश दो
छाया दो
वर्षा का पानी दो ममता की माया दो
इस जानलेवा तेज धूप में वे कुम्हला रहे हैं ।
इतना न डालें दबाव उनके मन पर
कि दाब से कोई विस्फोट हो जाये
हम संभाल सकें इससे पहले
दिल पर भीषण चोट हो जाये
अपने से खिलने दो, दो सारी सुविधाएँ
न दो अपने सपनों का भार
जो वे ढोते जा रहे हैं
ये किशोर ये युवा भविष्य हैं, हमारा ही नही
देश का भी
ये जागीर नही है हमारी, धरोहर है
मालिक नहीं हैं हम, पालक हैं
ध्यान रखें, कोमलता जतन करें
आकांक्षा का क्षितिज दे
पर चुनाव का हक भी दें
इन्हें न लगे कि वे जीने का हक ही
खोते जा रहे है ।
आज का विचार
सफलता का सबसे बडा मंत्र यह है कि
हम जो भी कार्य करना चाहते हैं अभी करें।
स्दास्थ्य सुझाव
आंखों की रोशनी सुधारने के लिये तुलसी के पत्ते चबाना लाभकारी है ।
छह पत्तो से शुरू करें और रोज एक एक बढाते हुए इक्कीस तक जायें
और वापिस एक एक कम करते हुए छह तक आयें ।
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20 टिप्पणियां:
रचना के साथ साथ आज के विचार बहुत पसंद आये. :)
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आप हिन्दी में लिखते हैं. अच्छा लगता है. मेरी शुभकामनाऐं आपके साथ हैं इस निवेदन के साथ कि नये लोगों को जोड़ें, पुरानों को प्रोत्साहित करें-यही हिन्दी चिट्ठाजगत की सच्ची सेवा है.
एक नया हिन्दी चिट्ठा किसी नये व्यक्ति से भी शुरु करवायें और हिन्दी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें.
शुभकामनाऐं.
-समीर लाल
(उड़न तश्तरी)
आपकी रचना और
सलाहें दोनों
अच्छी लगती हैं.
रचना के साथ विचार बहुत पसंद आये
कविता तो अच्छी लगी ही सुझाव बहुत पसंद आया ..आंखो का इलाज जरुरी है ..पीसी के आगे बैठे बैठे इनका हाल बुरा हो जाता है :)
सार्थक सुझाव हैं और रचना समय का सत्य भी..
***राजीव रंजन प्रसाद
एक महत्त्वपूर्ण विषय को कविता में अच्छी तरह से पेश किया है इस लिये बहुत बहुत शुकरिया। और, बहुत दिनो बाद ब्लॉगपर लिखने पर बधाई।
सही चिंतन है। ये समस्या अब धीरे धीरे भारत में भी पैर पसार रही है।
आंखों के लिए तुलसी के प्रयोग की सलाह पसंद आई।
शुक्रिया
आशा जी
बहुत सुन्दर भाव हैं इस कविता के। आज इस सन्देश की हम सभी को महती आवश्यकता है। जीवन मूल्य कहीं दिखाई नहीं देते । इसी प्रकार प्रेरणा देती रहें । शुभकामनाओं सहित
आपकी पोस्ट की सम्वेदनशीलता महसूस होती है। बहुत अच्छा विषय और बहुत सुन्दर पोस्ट।
सुन्दर भाव !
इस बार इंडिया टुडे मे इस लेख को पढ़कर मन बहुत विचलित हुआ था क्यूंकि आजकल जिंदगी की कोई कीमत ही नही रह गई है। सशक्त कविता।
आंखों के लिए दिए गए आप के सुझाव पर जरुर अमल करुँगी क्यूंकि जैसा रंजू जी ने कहा वो बिल्कुल सही है ।
आशा जी,
आपने एक जवलंत विषय पर आवाज उठाई है । भाव बहुत सुंदर बन पड़े हैं और बरबस ही सोचने को मजबूर करते हैं ।
हम आप के विचारों से पूरी तरह सहमत हैं। बहुत ही अच्छी तरह से आप ने इसे कविता में ढाला है।
तुलसी वाली सलाह आज से ही शुरु करेगें ।
प्रांतवाद पर भी अपने विचार रखिए न्।
धन्यवाद्।
आशा जी युवा वर्ग के प्रति आपकी सहानुभूति सही ढँग से कविता मेँ लिखी गयी है और तुलसी के पत्तोँ
की महिमा तो न्यारी ही है - इस सलाह को सहेज कर रख लिया है अभार !
- लावण्या
khup chan,navya pidhiche manogat mandale aahe.
bahut sahi kaha hai aapne.
हम जो कमेंट्स कर रहे हैं
वो भी तो सुंदर लग रहे हैं
लोग सलाहें सहेज रहे हैं तो
अमल भी कर रहे हैं बहुत से.
सही कहा आपने अविनाश जी बिना टिप्पणी के ब्लॉग की क्या शोभा । पढने वाले है तो लेख है। आप सबका बहुत आभार ।
समीर लाल जी आप के कहने को मन में बांध लिया है जरूर औरों को भी प्ररित करने का प्रयत्न करूंगी। मै स्वयं शुक्रगुजार हूँ चिठठाजगत के विपुल जैन जी की जिन्होने मुझे ब्लॉग बनाकर लिखने के लिये प्रेरित किय़ा और उन्मुक्त जी की जिन्होने मेरी पहली ही पोस्ट को सराहा । औरों के ब्लॉग पर जाकर टिप्पणी देने की मेरी और जादा कोशिश होनी चाहिये इस बात का भी अहसास है।वह भी करूंगी ।
बहुत खूब. स्वयं की ही कद्र खोते युवाऒं का संग्यान एवं आत्माभिमान जगाना बहुत जरूरी है.
बहुत खूब. स्वयं की ही कद्र खोते युवाऒं का संग्यान एवं आत्माभिमान जगाना बहुत जरूरी है.
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