रविवार, 16 सितंबर 2007
शामें
उदास उदास शामें और खाली पन्नों से दिन
कैसे भरेंगे तुम्हारे बिन
हर पल आती तुम्हारी याद
हर घडी तुम्हें पाने की साध
तुम्हारे न होने का अहसास
काश तुम अभी होते पास
तो पलक झपकते बीत जाते
साल, फिर क्या महीने, क्या हफ्ते, और क्या दिन ।
वो मुस्कुराने का अंदाज़ तुम्हारा
वो हर गम को मज़ाक में उडाना तुम्हारा
जीने का अपना एक खास तरीका
हर कोई कैसे हो तुम सरीखा
सब के बसका नही है सहज रहना खुशी में और उसके भी बिन ।
ये कैसी आहट ये कैसी आवाज़
ये कैसे लगा बजने मन का साज़
क्या सचमुच मैने सुनी दस्तक
या फिर है मेरा ही शुबहो-शक
कया मेरी आंखे देख रहीं है सपना या सच में तुम ही हो धिक धिन।
खूबसूरत शामें और चहके चहके दिन
भर गये तुमसे ही सबके बिन
आज का विचार
जो भी करो मन से करो।
स्वास्थ्य सुझाव
आँखें थकने पर जोर से भींच कर खोलें । ऐसा पांच बार करें ।
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