क्या सचमुच कोई नेता नही चाहता
कि देश तरक्की करे,
लोगों को काम मिले,
उनके सर पे भी छत हो,
बदन पर कपडा।
उनके भी बच्चे जायें स्कूल,
बगिया मे खिले फूल।
खेतों में अनाज हो,
समंदर में देश के जहाज़ हों
बीमारों को दवा मिले,
साफ सुथरी हवा चले।
सैनिक रहें सज्ज सदा,
मिले उन्हे सम्मान और मुआवजा।
पडोसी देशों से मेल हो,
शांति से खेल हों।
वे भी और हम भी रहें खुशहाल,
किसी के दिल में ना हो मलाल।
प्रकृती की मार तो पडती ही है,
पर सरकार क्यूं हम से अकडती है।
क्या सचमुच कोई नेता, कोई अफसर,कोई नही
चाहता
कि लोगों का काम हो
और उसका भी नाम हो।
हाँ एक नेता है ऐसा, जो चाहता भी है और
कर भी रहा है । बस थोडा धीरज रखना होगा।
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