वो दिन हवा हुए, जब पसीना था गुलाब,
आँखों में रंग थे और थे सुनहरे ख्वाब।
मेरे सवाल से पहले आता था उनका जवाब,
जिस काम को छूते हम बन जाता था सवाब।
रौनकें लगी रहती थीं हर तरफ,
रोशनी के चाशनी का माहौल हर तरफ,
रातें थीं चांदनी की और हम थे माहताब।
अब आज का जिक्र क्यूं कर करेंगे हम,
यादों की जब रखी हुई है खुली किताब।
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