पसीना, लू के थपेडे और ये झुंझलाहट
बिलकुल तुम्हारे गुस्से से तमतमाये चेहरे
सी,
फिर पन्ने की, तरबूजे, खरबूजे की तरी
बिलकुल तुम्हारे, मान जाने के बाद की
हँसी जैसी।
कहाँ गये वे खस के पर्दे, कहाँ गये वे ठंडे कूलर,
वो खुशबू वो रूह की शांति, क्या देगा ये एयर कंडीशनर
इस गर्मी में पर तुम मिल जाओ तो, लू भी लगे पुरवाई सी
और धूल.. धूल, डर्मीकूल पाउडर।
ऊपर गुस्साया सूरज, नीचे जलती अंगार सी
धरती,
बूंदों के लिये तरसता जीवन और इन्सानों की बेचारगी
किसी के तो होंगे पुण्य जो जगायेंगे सोये
ईश्वर को कि
वह भी रो पडे हमारे दर्द में और हो बारिश
तृप्ति की।
टूटी चप्पल के साथ घिसटते जलते पाँव,
फटे कमीज को गीला करता पसीना,
ओर उसी को सुखाती गर्म हवा, मन में ये
सोच कि
आज भी नही मिला काम और न ही मिला कहीं
पानी
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