शनिवार, 27 जून 2015

सफर

होगा कैसा वह सफर जो करना बाकी है अभी
ज्ञात से अज्ञात तक का अस्ति से नास्ति का भी

कैसी होगी राह वो  ले जायेगी जो मंजिल तलक,
पथ पूर्ण से शून्य का क्या जगायेगा  कोई ललक।

कौन सा होगा वो वाहन, जो पहुँचायेगा गंतव्य तक,
राह सरल सुगम होगी या फिर हो भरी कंटक ।

राह में होगा अंधेरा या होगा क्या प्रकाश भी,
व्याप्त केवल शून्य होगा या कोई विचार भी।


क्या मिलेंगे वहाँ सारे जो गये मुँह मोड कर,
या मेरे होने से न होने का ही होगा सफर।

क्या मै मिल पाउँगी वहाँ ज्ञान-देव के विठ्ठल से,
व्यास जी के क़ष्ण से उस रुक्मिणि देवी के वर से।

गीता में जो कह गये सभी मुझ तक आयेंगे,
मानो चाहे या न मानो मुझमें ही समायेंगे।

चित्र गूगल से साभार

कोई टिप्पणी नहीं: