घने कोहरे सी मन को भर देती हैं यादें
वह पुराना गीत जब कोई गुनगुनाता है,
जाने कहां से जहन में चली आती हैं यादें।
पलटने लगती हूँ जब कोई पुरानी सी किताब,
कोई सूखा सा फूल कर देता है ताज़ा यादें।
किसी सहेली को जब देखती हूँ प्रेम में मगन
जाने क्यूं आँखों से आंसू सी छलकती हैं यादें।
वे नोट्स के मार्जिन में तुम्हारे मैसेज
पढूं या ना पढूं दिल पे लिखी रहती हैं यादें।
यह क्या मेरे ही जहन की हैं खुराफातें
या फिर सब को ऐसे ही सताती हैं यादें।
क्या तुम सचमुच ही भूल गये हो मुझको
या फिर कभी कभी आती हैं तुम्हें मेरी यादें।
15 टिप्पणियां:
सुन्दर प्रस्तुति-
आभार दीदी
खूबसूरत एहसास...
सच कहा... पुरानी किताब में रखे गए यादे फिर तरोताजा होकर सामने आ खड़ी होती है ..
बहुत खूबसूरत.... स्नेह में भीगी सुन्दर रचना
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति बहुत खूब
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-06-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1648 में दिया गया है |
आभार |
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
नौ रसों की जिंदगी !
किस किस तरह से संजोयी रहती है यादे !
अच्छी लगी यह यादों की ग़ज़ल !
पलटने लगती हूँ जब कोई पुरानी सी किताब,
कोई सूखा सा फूल कर देता है ताज़ा यादें ..
यादें कहाँ पीछा छोड़ती हैं ... पल पल आती हैं ... किसी न किसी बहाने ... हर शेर लाजवाब ...
बढ़िया रचना , मंगलकामनाएं आपको !
यादों की अहमियत को सही शब्द दिए हैं आपने.
इस रचना और तस्वीर पर तो राही मासूम साहब की पुरानी लाइनें याद आती हैं:
यादें कोई बादलों की तरह हल्की चीज़ नहीं कि आहिस्ते से गुज़र जाएँ, यादें एक पूरा ज़माना होती हैं और ज़माना कभी हल्का नहीं होता!
बहुत अच्छी रचना. इसे गज़ल का रूप भी दिया जा सकता था!
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....
यादों को संजो कर रखना सब के वश में नहीं।
मोहक कविता।
bahut sundar rschna.......
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