मंगलवार, 17 जून 2014

यादें

घने कोहरे सी मन को भर देती हैं यादें
भूल तो जाऊँ पर भूलने कहाँ देती हैं यादें।

वह पुराना गीत जब कोई गुनगुनाता है,
जाने कहां से जहन में चली आती हैं यादें।

पलटने लगती हूँ जब कोई पुरानी सी किताब,
कोई सूखा सा फूल कर देता है ताज़ा यादें।

किसी सहेली को जब देखती हूँ प्रेम में मगन
जाने क्यूं आँखों से आंसू सी छलकती हैं यादें।

वे नोट्स के मार्जिन में तुम्हारे मैसेज
पढूं या ना पढूं दिल पे लिखी रहती हैं यादें।

यह क्या मेरे ही जहन की हैं खुराफातें
या फिर सब को ऐसे ही सताती हैं यादें।

क्या तुम सचमुच ही भूल गये हो मुझको
या फिर कभी कभी आती हैं तुम्हें मेरी यादें।


15 टिप्‍पणियां:

रविकर ने कहा…

सुन्दर प्रस्तुति-
आभार दीदी

Vaanbhatt ने कहा…

खूबसूरत एहसास...

Ranjana verma ने कहा…

सच कहा... पुरानी किताब में रखे गए यादे फिर तरोताजा होकर सामने आ खड़ी होती है ..

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत खूबसूरत.... स्नेह में भीगी सुन्दर रचना

Rajesh Kumari ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति बहुत खूब

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 19-06-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1648 में दिया गया है |
आभार |

कालीपद "प्रसाद" ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति !
नौ रसों की जिंदगी !

वाणी गीत ने कहा…

किस किस तरह से संजोयी रहती है यादे !
अच्छी लगी यह यादों की ग़ज़ल !

दिगम्बर नासवा ने कहा…

पलटने लगती हूँ जब कोई पुरानी सी किताब,
कोई सूखा सा फूल कर देता है ताज़ा यादें ..

यादें कहाँ पीछा छोड़ती हैं ... पल पल आती हैं ... किसी न किसी बहाने ... हर शेर लाजवाब ...

Satish Saxena ने कहा…

बढ़िया रचना , मंगलकामनाएं आपको !

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

यादों की अहमियत को सही शब्द दिए हैं आपने.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

इस रचना और तस्वीर पर तो राही मासूम साहब की पुरानी लाइनें याद आती हैं:
यादें कोई बादलों की तरह हल्की चीज़ नहीं कि आहिस्ते से गुज़र जाएँ, यादें एक पूरा ज़माना होती हैं और ज़माना कभी हल्का नहीं होता!

बहुत अच्छी रचना. इसे गज़ल का रूप भी दिया जा सकता था!

कविता रावत ने कहा…

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ....

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

यादों को संजो कर रखना सब के वश में नहीं।
मोहक कविता।

Dr. sandhya tiwari ने कहा…

bahut sundar rschna.......