शमा जली है जलने दे
मन को आज मचलने दो
तेरा मेरा किस्सा क्या
जो किस्सा है चलने दो।
हमने सबसे प्यार किया
कोई जलता है जलने दो
मैं क्यूँ उस पर ध्यान करूं
मुझे अपने रस्ते चलने दो।
अफसर को ये कहते सुना
लोग बला हैं टलने दो
ये कैसा जनतंत्र चला
कि जनता को कुचलने दो।
सब सबूत जिस फाइल में
हैं, उसको ही जलने दो,
या फिर तेजाब में डुबो
और फिर उसको गलने दो।
आज का बेटा ये कहता
समय के साथ बदलने दो
हुई पुरानी आपकी बात
नई हवा को चलने दो।
इन बातों के बीच कोई
गर्माये तो उबलने दो
मेरा सब सामान गया
अब मुझको भी चलने दो।
14 टिप्पणियां:
सराहनीय...गज़ब कटाक्ष...
बहुत सुंदर ।
बहुत सुन्दर पंक्तियां....
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12-06-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1641 में दिया गया है
आभार
bahut umda!
सुन्दर प्रवाह है भावों का.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
इन बातों के बीच कोई गर्माये तो उबलने दो मेरा सब सामान गया अब मुझको भी चलने दो।
.....बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं शुभकामनायें स्वीकार करें !
सटीक .... विचारणीय
अब हम बोलें भी तो क्या,
कविता ऐसी चलने दो.
अपना हाल बयान किया
दिल को ज़रा सम्भलने दो!
अब क्या कहूँ.. बहुत सुन्दर!!
वाह !
"मेरा सब सामान गया " बहुत सुंदर !!
व्यंग्य के साथ-साथ कुछ संदेश भी दे रही है यह रचना।
यादें किसीसे छुटती नहीं। समय आने पर या वहीं बात उसी ढंग से दुबारा घटित होने से उसमें और तीव्रता आती है और बेचैनी बढती है। आपने चंद शब्दों में मन की भावनाओं के बांधा हैं।
आज का बेटा ये कहता
समय के साथ बदलने दो
हुई पुरानी आपकी बात
नई हवा को चलने दो। ..
क्या बात कही है ... समय के बदलाव को ... मन के वीतराग को बाखूबी उकेरा है रचना में ...
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