मंगलवार, 10 जून 2014

मेरा सब सामान गया



शमा जली है जलने दे
मन को आज मचलने दो
तेरा मेरा किस्सा क्या
जो किस्सा है चलने दो।

हमने सबसे प्यार किया
कोई जलता है जलने दो
मैं क्यूँ उस पर ध्यान करूं
मुझे अपने रस्ते चलने दो।

अफसर को ये कहते सुना
लोग बला हैं टलने दो
ये कैसा जनतंत्र चला
कि जनता को कुचलने दो।

सब सबूत जिस फाइल में
हैं, उसको ही जलने दो,
या फिर तेजाब में डुबो
और फिर उसको गलने दो।

आज का बेटा ये कहता
समय के साथ बदलने दो
हुई पुरानी आपकी बात
नई हवा को चलने दो।

इन बातों के बीच कोई
गर्माये तो उबलने दो
मेरा सब सामान गया
अब मुझको भी चलने दो।




14 टिप्‍पणियां:

Vaanbhatt ने कहा…

सराहनीय...गज़ब कटाक्ष...

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बहुत सुंदर ।

Ranjana verma ने कहा…

बहुत सुन्दर पंक्तियां....

डॉ. दिलबागसिंह विर्क ने कहा…

आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 12-06-2014 को चर्चा मंच पर चर्चा - 1641 में दिया गया है
आभार

Vinay ने कहा…

bahut umda!

ओंकारनाथ मिश्र ने कहा…

सुन्दर प्रवाह है भावों का.

Pratibha Verma ने कहा…

बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

संजय भास्‍कर ने कहा…

इन बातों के बीच कोई गर्माये तो उबलने दो मेरा सब सामान गया अब मुझको भी चलने दो।
.....बहुत खूबसूरत पंक्तियाँ हैं शुभकामनायें स्वीकार करें !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सटीक .... विचारणीय

चला बिहारी ब्लॉगर बनने ने कहा…

अब हम बोलें भी तो क्या,
कविता ऐसी चलने दो.
अपना हाल बयान किया
दिल को ज़रा सम्भलने दो!

अब क्या कहूँ.. बहुत सुन्दर!!

Satish Saxena ने कहा…

वाह !
"मेरा सब सामान गया " बहुत सुंदर !!

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

व्यंग्य के साथ-साथ कुछ संदेश भी दे रही है यह रचना।

साहित्य और समीक्षा डॉ. विजय शिंदे ने कहा…

यादें किसीसे छुटती नहीं। समय आने पर या वहीं बात उसी ढंग से दुबारा घटित होने से उसमें और तीव्रता आती है और बेचैनी बढती है। आपने चंद शब्दों में मन की भावनाओं के बांधा हैं।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आज का बेटा ये कहता
समय के साथ बदलने दो
हुई पुरानी आपकी बात
नई हवा को चलने दो। ..
क्या बात कही है ... समय के बदलाव को ... मन के वीतराग को बाखूबी उकेरा है रचना में ...