पीछे मुडकर
अब अच्छा लगता है
देखना जिंदगी को
पीछे मुडकर।
जब पहुंच गया है
मंजिल के पास
अपना ये सफर।
क्या पाया हमने
क्या खोया
सोचे क्यूं कर।
अच्छे से ही
कट गये सब
शामो सहर।
सुख में हंस दिये
दुख में रो लिये
इन्सां बन कर।
कुछ दिया किसी को
कुछ लिया
हिसाब बराबर।
चित्र गूगल से साभार।
20 टिप्पणियां:
पीछे दिखाई देता है
अच्छा लगे या बुरा
आगे दिखता ही नहीं
सुर मिलेगा या फिर
होने वाला है बेसुरा :)
बहुत सुंदर !
कहीं धूप तो कहीं छाँह...सुन्दर कविता।
सुन्दर प्रस्तुति-
आभार आदरणीया -
सहज सुंदर अभिव्यक्ति .....!!
मुड़कर देखते हुए लगता है - काश कुछ कदम पीछे ले पाते और दरके हुए हालातों को दूसरे ढंग से देख पाते ….
सुकून कहाँ रहता है किसी पड़ाव पर - एक अधूरापन साथ साथ चलता ही जाता है
बहुत ही सुंदर रचना,,,बधाई
RECENT POST -: तुलसी बिन सून लगे अंगना
जीवन में हिसाब किताब कहां बराबर होता है ... जब तक सांस रहती है मंजिल की तलाश रहती है ...
भावपूर्ण कविता
गुजर चुका सफ़र जिंदगी का अक्सर अच्छा लगता है जब हम पीछे मुड़कर देखते हैं
सादर !
सुख में हंस दिये
दुख में रो लिये
इन्सां बन कर।
...वाह! यही तो जीवन का सत्य है..बहुत सुन्दर
भूल-चुक लेनी-देनी !
अच्छे से ही
कट गये सब
शामो सहर।
बस यही तृप्ति काफी है ताई,
कल अच्छा था तो जरुर आज भी अच्छा ही होगा, कल से ही तो आज का जन्म होता है बहुत सार्थक रचना, पढने में जरा विलंब हुआ थोड़ी व्यस्त थी, आभार !
बहुत ही उम्दा और विचारणीय.
रामराम.
ye jeevan hai is jeevan ka yahi hai rang roop .sundar bahut
ye jeevan hai is jeevan ka yahi hai rang roop .sundar bahut
Bahot khoob.
kya yar aapbhi is umarme likhane lage sari pyarki kavita to mai dang rah gai kya budhpemebhi pyarki kashis hoti hai
kya yar aapbhi is umarme likhane lage sari pyarki kavita to mai dang rah gai kya budhpemebhi pyarki kashis hoti hai
बहुत ही सुंदर रचना,,,बधाई
एक टिप्पणी भेजें