सागर की गहराई तेरी
और गगन की व्यापकता
पृथ्वी का कण कण भी तेरा
और प्रकाश की समानता ।
ओस की नन्ही बूंद भी तेरी
प्रपात का आवेशावेग
आंसू और मुस्कान भी तेरे
और भावना का आवेग ।
नन्हे शिशु का मोहक चेहेरा
वृध्दों की सिलवटी त्वचा
हाथी हो या नन्हीं चींटी
दोनों में तू ही बसता ।
सांझ भोर का धुंधलका तू
और रात का साया भी
संतों का चिंतन भी तू है
संसारी की माया भी ।
मेरे मन में तो तू
बसता
मै भी बसूँ तेर मन में
तेरे आशीष से सदा ही
मुक्त हो रहूँ जीवन में ।
17 टिप्पणियां:
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♥सादर वंदे मातरम् !♥
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# मेरे मन में तो तू बसता
मै भी बसूँ तेरे मन में...
तब ही तो होगा बराबरी का नाता !
आदरणीया आशा जोगळेकर जी
सुंदर भाव !
सुंदर शब्द !
ख़ूबसूरत रचना !
आभार ...
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर पर !
राजेन्द्र स्वर्णकार
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महा मकर संक्राति से, बाढ़े रविकर ताप ।
सज्जन हित शुभकामना, दुर्जन रस्ता नाप ।
दुर्जन रस्ता नाप, देश में अमन चमन हो ।
गुरु चरणों में नमन, पाप का देवि ! दमन हो ।
मंगल मंगल तेज, उबारे देश भ्रान्ति से ।
गौरव रखे सहेज, महामकर संक्रांति से ।।
बहुत सुन्दर प्रार्थना...
मकर संक्रांति की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ...
:-)
कण कण में बसा है .... बहुत सुंदर रचना .... मकर संक्रांति की शुभकामनायें
मेरे मन में तो तू बसता
मै भी बसूँ तेर मन में
तेरे आशीष से सदा ही
मुक्त हो रहूँ जीवन में ।
बहुत सुंदर रचना मकर संक्रांति की शुभकामनायें ..
आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार 15/1/13 को चर्चा मंच पर राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है
एक परस्पर आशा जीती,
विरहक्षुब्ध जीवनलय बीती।
बहुत सुंदर उम्दा प्रस्तुति,,,
recent post: मातृभूमि,
मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँ!
उत्कृष्ट भाव,
बहुत ही सुन्दर बहुत प्यारी प्रार्थना है कविता ...
सुन्दर प्रार्थना...
मकर संक्रांति की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ...!!!!
अक्षरश: मन को भावमय करती अभिव्यक्ति
सादर
सुन्दर ... ये प्राकृति या ईश्वर ... इससे ही है सब कुछ ओर इसमें ही समाना है अंत में ...
भावपूर्ण रचना ...
वाह ,प्रकृति और मानव के रूप साम्य का अद्भुत वर्णन
बहुत प्यारी रचना ..आभार आपका !
bahut achchi lagi......
बहुत प्यारी रचना....
सुन्दर भाव..
सादर
अनु
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