रविवार, 1 जुलाई 2012

वयस का भार




चेहरे की झुर्रियों में अनुभव का सार है,
पर क्यूं ये लग रहा है, वयस हम पे भार है ।

डगमगाते हैं कदम, मन चाहे हो मजबूत ,
भावों की ओढनी क्यूं अब तार तार है ।

कोई पूछे तो, दें सकेंगे, सलाह हम भी कुछ,
पर किसको है जरूरत, सब समझदार हैं ।

समय बदल रहा है कुछ तेज़ कदम से,
बहते रहे इसी में, ये समय की धार है ।

भारभूत रीति रिवाजों को छोड दें,
जरूरी तो नही इसमे, हमारी ही हार है ।

प्रेम से सबसे मिलें, न मन में हो शिकवा,
हर किसी की सोच, और उसका विचार है ।

अपनी हंसी खुशी को चहूँ दिशि बिखेर दें,
लगने लगेगा कि फिरसे मौसम-ए-बहार है ।

तब ये समय भी गाते और हंसते जायेगा,
और ना लगेगा ये कि वयस हम पे भार है ।

20 टिप्‍पणियां:

Arvind Mishra ने कहा…

बिलकुल सही फार्मूला -तभी और केवल तभी यह लग सकेगा कि वयस हम पर भार नहीं है !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

प्रसन्नता संकेत है कि कौन सी आयु उत्सव की है..

रविकर ने कहा…

अनुभव से भरपूर आयु है, हैं अनमोल धरोहर |
समय-खजाना दादा दादी, स्वर्ण रजत की मोहर |
चुटकी में हल करें समस्या, नहीं समस्या हैं खुद-
हंसी ख़ुशी सम्मान करो तो, घर-आँगन में सोहर ||

सदा ने कहा…

गहन भाव लिए उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति ।

Suman ने कहा…

अपनी हंसी खुशी को चहूँ दिशि बिखेर दें,
लगने लगेगा कि फिरसे मौसम-ए-बहार है ।
sundar yekse yek ......

kshama ने कहा…

डगमगाते हैं कदम, मन चाहे हो मजबूत ,
भावों की ओढनी क्यूं अब तार तार है ।
Kya kamaal ka likha hai!

ANULATA RAJ NAIR ने कहा…

बहुत सुन्दर ...
आशा(जी) की आशा......

सदा बना रहे ये उत्सव का माहौल.....

सादर
अनु

mridula pradhan ने कहा…

प्रेम से सबसे मिलें, न मन में हो शिकवा,
हर किसी की सोच, और उसका विचार है ।ekdam theek......

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया ने कहा…

अनुभव बता देते है, बीते उम्र का सार
क्या हम अब बोझहै लगते हम है भार,
प्रेम से सबसे मिले,अपना अपना विचार
ना काहू की जीत है,अपनी तो बस हार,,,,,

MY RECENT POST...:चाय....

Kailash Sharma ने कहा…

समय बदल रहा है कुछ तेज़ कदम से,
बहते रहे इसी में, ये समय की धार है

....बिलकुल सच कहा है...समय के साथ चलना ही जीवन की सार्थकता है...बहुत सुन्दर प्रस्तुति ...

मनोज कुमार ने कहा…

वयस का भार भले हो लेकिन उसमें जीवन के अनुभव का सार भी होता है।

Satish Saxena ने कहा…

आप दोनों हमेशा हँसते रहे ....
सादर

Rakesh Kumar ने कहा…

अपनी हंसी खुशी को चहूँ दिशि बिखेर दें,
लगने लगेगा कि फिरसे मौसम-ए-बहार है ।

तब ये समय भी गाते और हंसते जायेगा,
और ना लगेगा ये कि वयस हम पे भार है ।


वाह!बहुत ही सुन्दर और प्रेरक प्रस्तुति.
आपने तो शानदार आशा जगा दी है,आशा जी.
आपकी सलाह पर चलें तो कभी भी न लगेगा कि
वयस हम पर भार है.

ZEAL ने कहा…

कोई पूछे तो, दें सकेंगे, सलाह हम भी कुछ,
पर किसको है जरूरत, सब समझदार हैं ..

Bitter truth...

.

Asha Lata Saxena ने कहा…

सुन्दर और भावपूर्ण रचना |कभी मेरे ब्लॉग पर भी आईए
आशा

P.N. Subramanian ने कहा…

सुन्दर रचना. वयस पर अपने को भारी समझने में ही सार दीखता है.

Rakesh Kumar ने कहा…

आदरणीय आशा जी.

मेरे ब्लॉग पर आपके आने से मुझ में
नवीन आशा और उत्साह का संचार हो जाता है
सत्संग के प्रेम का अनुभव सचमुच में
अकथनीय है.

SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR5 ने कहा…

कोई पूछे तो, दें सकेंगे, सलाह हम भी कुछ,
पर किसको है जरूरत, सब समझदार हैं ।

अपनी हंसी खुशी को चहूँ दिशि बिखेर दें, लगने लगेगा कि फिरसे मौसम-ए-बहार है ।
आदरणीया आशा जोगलेकर जी बहुत सुन्दर सन्देश देती प्यारी रचना यदि ऐसे रहा जाए तो वयस भार नहीं लगेगी ....भ्रमर ५

Alpana Verma ने कहा…

प्रेम से सबसे मिलें,
न मन में हो शिकवा,

हँसते -गाते समय बीते..वयस का ध्यान ही नहीं आएगा.

Alpana Verma ने कहा…

प्रेम से सबसे मिलें,
न मन में हो शिकवा,

हँसते -गाते समय बीते..वयस का ध्यान ही नहीं आएगा.