मंगलवार, 8 दिसंबर 2009

अपना घर तो अपना घर है



छह महीनों के बाद दिल्ली आ गये अपने घर, तभी तो फिलहाल लिखना पढना बन्द सा है । घर की सफाई, सामान लाना- क्यूंकि जाते हुए तो सब खाली कर के जाते हैं । इस बार ये ज्यादा महसूस हो रहा है क्यूंकि आरथ्राइटिस जोरों पर है । और कीमतें 6 महीनों में डेढ गुनी हो चुकी हैं । पर फिर भी यहां आकर बडा सुकून महसूस होता है । अपना घर और अपना देश – बात ही कुछ और होती है । राजू तो कहता भी है “वहाँ क्या आपका सिंहासन रख्खा है “ , तो मै कह भी देती हूं,” हां बेटा सिंहासन ही है समझो “।
घर तो मीनाजी ने थोडा बहुत साफ करवा रखा था । आते ही पता चला कि नल में एक बूंद भी पानी नही है, सब नल सूखे । हम एयरपोर्ट से आते हुए दो बोतल पानी ले आये थे और दो बोतल मीनाजी ने रख दिया था, तो काम चल गया । पर नाना तरह के सवाल मन में, कहीं मोटर तो खराब नही हुई या फिर टंकी तो नही क्रेक हुई पर दूसरे दिन पानी भी आया और पता चल गया कि सब ठीक है वह तो गाडी धोने वालों की कृपा से सारा पानी सायफन हो गया था । तो सारा कुछ सामान्य होते होते हफ्ता दस दिन लग ही जाते हैं । और रात दिन का फर्क- सारी (आधी ) दुनिया सोती है तब हम जगे होते हैं -अल्लाह सोये तो खुदा जागे वाली बात । पर वह भी ठीक हो ही गया ।
कुछ दिन से सुबह सुबह रामदेव बाबा जी के साथ प्राणायाम कर रहे हैं । आज सोचे कि कुछ तो लिखा जाय और कुछ नही तो आप बीती ही सही । यहाँ की सब्जी में चाहे वह कैसी (जहरीली !) ही हो गज़ब का स्वाद है जो वहां की ओवर साइज्ड सब्जियों में कभी आ ही नही सकता । मलाई वाला दूध, खुशबूदार घी आ.SSSSSSSSSSSSSहा । तो अभी तो आनंद उठा रहे हैं जब मुश्किलें सामने आयेंगी तो वह भी झेल लेंगे ।
सोचते हैं हमारे वापिस जाते जाते मेट्रो भी शुरू हो जायेगी गुडगांव वाली भी, तो आसान हो जायेगी जिंदगी थोडी । धूल तो हवा में हमेशा ही रहेगी और नाक, आंख, मुह, कान में जाती रहेगी पर अपने देश की मिट्टी है, अपनी है तो प्यारी है । पार्क में घूमने जाते हैं तो अमीरों के बिगडैल बच्चों द्वारा फेंकी गई पानी की जूस की बोतलें प्लास्टिक के रैपर्स, कागज, थैलियां फिकीं मिलती हैं, बावजूद इसके कि जगह जगह कूडे दान लगे हैं कुछ मेहेरबानी महरियों की और उनके बच्चों की भी होती है कूडा बढाने में । कुछ पशु-पक्षी प्रेमी अपने घर का बासी खाना पार्क के प्रंवेश द्वार पर फेंक रखेंगे कि कोई गाय कौवा चिडिया खा ले अपने कोर्ट यार्ड उन्हे इसके लिये उपयुक्त नही लगते । पर अपने लोग हैं नादान हैं तो क्या ।
और इस बार तो हमने पैसे बचाने के लिये अपना फोन भी होल्ड पर करवाया था और ब्रॉडबैन्ड इंटरनेट भी । आते साथ ही इन्होने चाणक्यपुरी का चक्कर लगाया और फोन का होल्ड खुलवा दिया फोन तो तुरंत चालू हो गया, पर ब्रॉड बैन्ड क्या और नैरो बैन्ड क्या इंटरनेट नही आ रहा । रोज फोन कर रहे हैं एम टी एन एल के ऑफिस में पर इंटर नेट नही आ रहा । मजे की बात ये है कि उनकी तरफ से भी रोज फोन जाता है, “आ गया जी” । “अजी कहां आया” कहा कि उधर से फोन बंद । कभी कभी वे फोन के लिये भी पूछ लेते हैं, “फोन सही चल रहा है जी आपका “, “हां वह तो चल रहा है पर इंटरनेट..” इतना सुनते ही बंदा फोन काट देता । करीब 15 दिन से ये ही कहानी है हार कर इन्होने एयरटेल का कनेक्शन ले लिया । एक बार एक बंदा आ कर आधा घंटा खटपट कर के फोन पर फोन करके इंस्ट्रक्शन्स लेके कंप्यूटर से जूझता रहा पर नतीजा वही- नो लक । मैने कहा कि,” एम.टी.एन.एल. बंद कर देते हैं” । सुनते ही ये बोले, “पागल हो गई हो, पता चला फोन भी कट गया, सालों से लोगों के पास हमारा जो नंबर है वह लगेगा ही नही । इन का कुछ ठीक नही है ये कुछ भी कर सकते हैं” । तो अभी तक हम इंतजार में हैं कि शायद कभी हमारी किस्मत खुले और ये ब्रॉडबैन्ड काम करने लगे । पर एयरटेल की मेहरबानी से आप से मेल मुलाकात का रास्ता तो खुल ही गया है ।

15 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार ने कहा…

अपने देश ,परिवेश और घर के प्रति आपका लगाव सराहनीय है

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

बहुत अच्छा लगा यह आलेख.....

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

हमारी शुभकामनाएं।अच्छा आलेख लिखा है।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

आपकी पोस्ट से सकून और राहत टपक रहा है ............ घर वापसी का सुखद एहसास छोटी मोटी तकलीफ़ में भी मज़ा देता है ......... बहुतअच्छी लगी आपकी पोस्ट ...........

पी.सी.गोदियाल "परचेत" ने कहा…

आशा जी ! ये है अपनी माटी की खुसबू , जहां तकलीफे भी बौनी होकर रह जाती है !

निर्मला कपिला ने कहा…

ापका अपने देश मे स्वागत है। कहते हैं न कि जो सुख छजू के चौबारे वो न बल्ख न बुखारे। विदेश मे जितने भी सुख हों मगर दिल अपनी मिट्टी मे ही लगता है। अब दिल के साथ मुश्क्लें तो होती ही हैं ये दिल का मामला है जी शुभकामनायें

निर्मला कपिला ने कहा…

ापका अपने देश मे स्वागत है। कहते हैं न कि जो सुख छजू के चौबारे वो न बल्ख न बुखारे। विदेश मे जितने भी सुख हों मगर दिल अपनी मिट्टी मे ही लगता है। अब दिल के साथ मुश्क्लें तो होती ही हैं ये दिल का मामला है जी शुभकामनायें

गौतम राजऋषि ने कहा…

अरे वाह!...शुभस्वागतम मैम!!

P.N. Subramanian ने कहा…

सुस्वागतम. अपना घर अपना होता है. चंद दिनों में ही सब कुछ व्यवस्थित हो जावेगा.

संगीता पुरी ने कहा…

बहुत अच्‍छा लगा आपका ये आलेख .. अपना घर अपना ही होता है !!

ghughutibasuti ने कहा…

स्वागत है। नेट होल्ड पर रखने से ऐसा ही होता है मेरी बिटिया ने भी करवाया था और महीनों तक वापिस नहीं लगा। शहर बदलने तक भी नहीं। शायद आपका चालू हो जाए।
घुघूती बासूती

देवेन्द्र पाण्डेय ने कहा…

Sunder alekh
net theek hoyega...
bsnl vale ajkal jagarook ho gaye hain

mehek ने कहा…

kharach apla desh apla asto ,aani aaple ghar aaple,tyachi sar konalach yeth nahi. MTNL chya internet che gharane khup aahet, khup divas amchya kade an chalu navhata. ek mahina lagla suru honya saathi.chala paani aale khup chan jhale:), kabhi zindagi bhi meherban ho jaati hai,kuch daudte paalon mein aaram ke lamhe de jaati hai. aata thoda visawa ghya ,anni ho arthritis chi kalaji pan ghya.

संजय भास्‍कर ने कहा…

आशा जी ! ये है अपनी माटी की खुसबू , जहां तकलीफे भी बौनी होकर रह जाती

संजय भास्‍कर ने कहा…

आशा जी ! ये है अपनी माटी की खुसबू , जहां तकलीफे भी बौनी होकर रह जाती है !