त्रिदल
घास पर ओस
धरती के आँसू
छलके छलके ।
सुबह की उजास
तुम्हारी मुस्कान
महकती हुई ।
काले गहरे
रात के अंधेरे
तुम्हारे गेसू ।
मेरा मुडना
तुम्हारा ठिठकना
कुछ कहता हुआ ।
चांदनी रात
तुम्हारी बात
अब किसके साथ ?
कब मुड गए
साथ चलते हुए
अपने रास्ते
मन बेचैन
मन चंचल
कैसा ये छल ।
अब तो उसे भी
भूलना ही होगा
बीता कल ।
25 टिप्पणियां:
गजब लिखा .. सुंदर रचना !!
मेरा मुडना
तुम्हारा ठिठकना
कुछ कहता हुआ
waah behad sunder,kum shabd aur gehri baat.
अब तो उसे भूलना ही होगा, बीता कल। भला कौन भुला पाता है, बीता हुआ कल। यही तो साथ रह जाता है, कभी हँसाता है, कभी रुलाता है और कभी प्रेरणा बन जाता है। सार्थक कविता के लिए बधाई।
मेरा मुडना
तुम्हारा ठिठकना
कुछ कहता हुआ ।
चांदनी रात
तुम्हारी बात
अब किसके साथ ?
कब मुड गए
साथ चलते हुए
अपने रास्ते
मन बेचैन
मन चंचल
कैसा ये छल ।
अब तो उसे भी
भूलना ही होगा
बीता कल ।
bahut hi achcha likha aapne.......
haan! beeta kal ko bhoolna hi thik rehta hai......
आशा जी इस अद्भुत रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई...
नीरज
बहुत ही उम्दा रचना। बहुत-बहुत बधाई
चांदनी रात
तुम्हारी बात
अब किसके साथ ?
वाह भावो के उम्दा और बेहतरीन प्रवाह
बहुत सुन्दर
बहुत ही बढिया रचना है। बधाई स्वीकारें।
ओस के लिये धरती के आंसू का उपमान अच्छा लगा ।
साधारण शब्दों में रचित परन्तु असाधारण अर्थों का आभास कराती अद्भुत रचना........... शैल्पिक सुगठन और
भाषाई कौशल के क्या कहने..............
___अभिनन्दन आपका
आप कितना कुछ कह जाते हो वह भी चंद शब्दों में. खूबसूरत रचना. आभार.
काले गहरे
रात के अंधेरे
तुम्हारे गेसू ।
मेरा मुडना
तुम्हारा ठिठकना
कुछ कहता हुआ ।
बहुत सुंदर दिल को छुआ
aapka ye andaj bhi bha gya .
bhut sundar abhivykti.
कब मुड गए
साथ चलते हुए
अपने रास्ते
मन बेचैन
मन चंचल
कैसा ये छल ।
अब तो उसे भी
भूलना ही होगा
बीता कल ।
बहुत अच्छे........... बेहतरीन अनुभूति ..हर एक शब्द मन को स्पर्श करता है.
आपकी कविता अनुभवों से भरपूर है...शुभकामनायें
KAVITA KEE EK-EK PANKTI ACHCHHEE
LAGEE HAI.BADHAAEE.
घास पर ओस
धरती के आँसू
छलके छलके ।
मन बेचैन
मन चंचल
कैसा ये छल ।
अद्भुत, परिकल्पनाओं का उत्कर्ष सभी कुछ तो नज़र आ रहा है आपकी रचनाओं में.
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
मेरा मुडना
तुम्हारा ठिठकना
कुछ कहता हुआ ।
चांदनी रात
तुम्हारी बात
अब किसके साथ ?
आशा जी बहुत सुन्दर और गहरे भाव लिये है ये कविता। कुछ दिन से आपके ब्लाग पर नहीं आ पाई क्षमा चाहती हूँ। बधाई और दीपावली की पूरे परिवार को शुभकामनायें
अब तो उसे भी
भूलना ही होगा
बीता कल ।
sundar bhaav wali rachana
काले गहरे
रात के अंधेरे
तुम्हारे गेसू ।
मेरा मुडना
तुम्हारा ठिठकना
कुछ कहता हुआ ।
हाइकु जैसे गहरे ....!!
मेरा मुड़ना तुम्हारा ठिठकना...वाला अपना सा लगा मैम।
दीपावली की समस्त शुभकामनायें!
Behtreen HIIKU
दीवाली हर रोज हो तभी मनेगी मौज
पर कैसे हर रोज हो इसका उद्गम खोज
आज का प्रश्न यही है
बही कह रही सही है
पर इस सबके बावजूद
थोड़े दीये और मिठाई सबकी हो
चाहे थोड़े मिलें पटाखे सबके हों
गलबहियों के साथ मिलें दिल भी प्यारे
अपने-अपने खील-बताशे सबके हों
---------शुभकामनाऒं सहित
---------मौदगिल परिवार
waah ..ye alag alag triveniyan thin kya.. :)
saari bahut pyari hain.. meri fav aur maine ekdam samjhi hai teesri line iski -- :)
चांदनी रात
तुम्हारी बात
अब किसके साथ ?
बधाई!
अँख मे सें पँख निकले
जल चढा है शूली
दो से तीन होवे या
जड चली जाय समुली
बहुत ही उम्दा रचना। बहुत-बहुत बधाई
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