बुधवार, 30 सितंबर 2009
घुमक्कडी 10– क्वीन्सटाउन और वापिस लॉस एन्जेलिस
सुबह सुबह टैक्सी लेकर पहुँचे सिडनी एयरपोर्ट । हमारी फ्लाइट 9:30 बजे की थी और ये भी इंटरनेशनल फ्लाइट थी तो 3 घंटे पहले भी पहुंचना था । सामान चेक-इन करा कर थोडी देर विंडो शॉपिंग की । यहां के ओपल बहुत विख्यात है पर बहुत महंगे भी पर हमे तो देखना ही था तो थोडा टाइम पास कर लिया । सिक्यूरिटि करवा कर अभी आगे बढ ही रहे थे कि मुझे सिक्युरिटी वालों ने एक अलग चेम्बर में बुलवा लिया । मुझे कुछ विशेष उस वक्त नही लगा सोचा सब को ही एक एक करके ऐसे ही जाना पडा होगा । पर उन्होने कहा हमें आपकी तलाशी लेनी पडेगी अगर आप मना करती हैं तो आप आगे नही जा सकतीं । मैने कहा, मै क्यूं मना करूंगी देख लीजिये जो देखना है । तो पूरी तरह मशीन से छानबीन हुई मेरी भी और मेरे पर्स की भी । फिर कहा गया आप जा सकती हैं, ये रैंडम चैकिंग थी । इधर मेरे साथ वाले परेशान, कि क्या हुआ ? जब मुझे देखा तो जान में जान आई । खैर फ्लाइट बढिया थी । और 3 घंटे की फ्लाइट और 2 घंटे टाइम डिफरन्स तो हम ढाई बजे पहुंच गये क्वीन्सटाउन । हवाई जहाज में से ही बर्फ से ढके हुए पहाड देखे तो तबियत खुश हो गई । छोटासा एयर पोर्ट है । पर उतरे तो इमिग्रेशन करवाने के लिये क्यू में लग गये हम सब तो आ गये पर प्रकाश-जयश्री को बहुत देर लग गई, मैने वापिस जाकर देखा तो प्रकाश की सारी सूटकेस को उन्होने उलट पुलट कर दिया था । जब काफी देर बाद वो बाहर आये तो हमारे पूछने पर बोले , “मेरे सुपारी के पैकेट पर, जो खुल गया था, उन्हे बहुत परेशानी थी आखिर मैने कहा कि हम लोग इसे खाने के बाद खाते हैं आप कहें तो मै आपके सामने खाता हूं । इस पर उन्होने नो नीड कह कर हमे बाहर आने दिया“। vdo1 (विडिओ देखें)
यहां हमारी बुकिंग थी मेलबोर्न रोड पर कम्फर्ट-इन में जिसे मेलबोर्न लॉज भी कहते हैं । तो हमने अपनी सुपर शटल ली और पहुँच गये । इसमें चढने से पहले ही हमने बर्फीले पहाड की बहुत सी तस्वीरें लीं । कमरे हमे तुरंत ही मिल गये । चाय कॉफी का जुगाड था ही तो पहले तो चाय पी कर फ्रेश हो गये । लंच तो विमान में हो ही गया था । इसके बाद हमने रिसेप्शन पर पता किया कि आज क्या कर सकते हैं । क्वीन्सटाउन बर्फीले पहाडों से घिरा, लेक वाकाटीपू पर बसा हुआ, एक छोटासा खूबसूरत शहर (गांव ) है । इसके पहाड और लेक के कारण इसे एक अनोखा सौंदर्य प्राप्त हुआ है । यहां हर किसी के लिये करने को कुछ ना कुछ है । स्कीईंग, बोटिंग, फिशिंग, ट्रेकिंग,गंडोला राइड और भी बहुत कुछ और शॉपिंग तो है ही । हमारे पास तो आज का आधा दिन और कल की सुबह इतना ही वक्त था तो पता चला कि आज अभी गंडोला राइड ले सकते हैं जो हमें पहाड के ऊपर ले जायेगी तो हमने रिसेप्शनिस्ट से टैक्सी बुलाने के लिये कहा और हमने बाहर निकल कर लेक का सुंदर दृश्य देखा और फोटो खींचीं । vdo 2 (विडिओ देखें)
हमारे पास जो टैक्सी वालेने कार्ड दिया था वह भी हमने रिसेप्सनिस्ट को दे दिया था तो उसने जो टैक्सी बुलाई तो यह वही टैक्सी वाला था जो हमें एयरपोर्ट से लेकर आया था । वह हमें स्काय लाइन गंडोला के ऑफिस ले गया । वहां हमने 12-12 डॉलर के टिकिट खरीदे और चढ गये गंडोला में । ये गंडोला यानि केबल कार रुकते नही हैं बस धीमे हो जाते हैं पर चलते में ही आपको चढना होता है । एक में केवल चार बैठ सकते हैं तो हम दो गंडोला में बैठ गये एक में हम तीनो और दूसरे में वे तीनो । यह राइड, बॉब-पीक नामक शिखर तक थी । क्वीन्स टाउन के कोई 400 मीटर ऊपर । पहाड एक दम सीधा । जाते हुए खूबसूरत वाकाटीपू लेक को देखते रहे । पहाड, जंगल, कुछ भेडें भी दिखीं और पूरे क्वीन्स लैन्ड का नजारा हर ऊँचाई पर बदलता हुआ । एकदम पैसा वसूल राइड । एक भाग में लेक को क्वीन्स लैन्ड का भू भाग जैसे एक बाँह से लपेटे हो और एक छोटा सा ब्लू-लगून बना रहा हो । दस–बारा मिनट का ये सफर मज़ा दे गया । ऊपर उतरे और पहले एक दुकान में गये जहां कार्ड्स और तरह तरह के क्यूरियोज़, स्कार्फ, नकली ज्वेलरी और भी ढेर सारी चीजें थीं खरीदने को । असल में गैलरी, जहां से नीचे का दृश्य देखना था, उसका रास्ता ही उन्होने दूकान के बाजू से रखा था , पर दूकान को अनदेखा करके हम सीधे गैलरी में आ गये । गज़ब की ठंडी हवा थी । तापमान शून्य से नीचे । सारे में घूम घूम कर खूप विडियो किया फोटो खींचे । वहीं एक जगह बंजी जंपिंग हो रही थी उसे भी देखा और विडियो किया । vdo 3 (विडिओ देखें)
फिर अंदर आये कुछ कार्ड खरीदे और रेस्तराँ में कॉफी पी । फिर गंडोला से नीचे । नीचे जाने में ज्यादा डर लग रहा था, नीचे देखो तो अपने लटके होने का अहसास ज्यादा डरावना था । सो मैने तो नीचे नही देखा बस ऊपर ही देखती रही । पुली और स्टील-रोप के घर्षण की आवाज़ भी अब सुनाई देने लगी थी । पर बीच बीच में लेक को देखने का मोह हो ही जाता था ।
नीचे पहुंचे तो पहले से ही पता कर रखा था कि यहां लिटिल इन्डिया करके रेस्तराँ है वहाँ जाना है । उसके पहले ग्रॉसरी स्टोर जाकर ब्रेड और चीज़ लेना था कि कल के सैन्ड-विचेज़ बन जायें तो टैक्सी को वही बताया । तकदीर से दोनो पास पास ही थे, तो हम पहले लिटिल इन्डिया गये । वहां हमारी बडी आव भगत हुई, हमारी उम्र को देखते हुए उन्होने राजेश खन्ना और धर्मेन्द्र के पिक्चर के गानों की डीवीडी लगा दी । खाना भी कमाल का था मटर पनीर, मां की दाल राइस और बटर नान बडे दिनों बाद रेडीमेड चटपटा स्वादिष्ट खाना खाया और वह भी पुराने फिल्मी गीत देखते हुए भई वाSSSSSह ।
(विडिओ देखें) vdo 4
फिर ग्रॉसरी लेकर वापिस टैक्सी से घर । वापिस जा कर फिर एक कमरे में सब बैठे और कल का कार्यक्रम तय किया (विडिओ देखें)vdo 5
कल हमारी फ्लाइट थी साढे तीन बजे की हालांकि हमें लॉस एन्जेलिस (एल ए U.S.A. ) की फ्लाइट तो ऑकलैन्ड से लेनी थी फिर भी हमारा सामान तो यहीं से चैक-इन होना था तो वही 12-30 तक पङुंचना था एयर पोर्ट । तो जो कुछ भी करना था उसे 12 बजे तक अवश्य खतम करना था । हमने तय किया कि हम लेक वाकाटीपू जायेंगे और हो सका तो 1 घंटे की बोट टूर ले लेंगे । और लेक वाका टीपू तो आप देख ही रहे हैं कितना खूबसूरत लेक है ।
तो 30 जुलै को हम सुबह सुबह नाश्ता कर के निकल पडे और लेक पर पहूंच कर घूमने की कोशिश की । क्या ठंड थी हमारी तो कुल्फी ही जमी जा रही थी । और खुला होने के कारण हवा भी खूब तेज़ चल रही थी हमने बोट का पता किया तो 10 बजे के बाद ही कोई बोट निकलेगी यह पता चला और यह भी कि छोटी से छोटी राइड भी दो घंटे की होगी । तो कुल मिला कर बोटिंग जाना समय के हिसाब से रिस्क लेना ही था तो थोडी देर लेक पर ही टहले, बत्तखों की तसवीरें खींची (विडिओ देखें)vdo 6
और जब ठंड ज्यादा लगने लगी तो, ठिठुरने से तो अच्छा है कमरे में जाकर आराम करें (विडिओ देखें) vdo 7
ये सोच कर लौट के –- घर को आ गये । वैसे समय,पैसा और हिम्मत हो तो करने जैसा यहां बहुत कुछ है ग्लेशियर स्किइंग, रिवर राफ्टिंग,बोट ट्रिप्स, बंजी जंपिंग वगैरा वगैरा ।
हम तो वापिस अपने कम्फर्ट इन में आये थोडा आराम किया और समय से सुपर शटल बुलवा के एयरपोर्ट । हमारी उडान 3¬:15 पर थी जो ऑकलैन्ड 5 बजे पहुंची ऑकलैन्ड से लॉस एन्जेलिस (एल ए U.S.A. ) की उडान जो 30 ता के शाम के 7:15 की थी जो 30 तारीख को ही सुबह 12 बजे एल ए पहुँची । तो हमने 5 घंटे समय गेन किया ।Theory of relativity को प्रत्यक्ष अनुभव किया । उडानें, खाना सब चकाचक कोई वांधा नही । एयर-पोर्ट पहुंच कर भी सब सही सलामत बाहर आगये । हमारी बुकिंग लॉस एन्जेलिस (एल ए U.S.A. ) में Hotel Crown Plaza थी । (विडिओ देखें) vdo 8
हम बाहर आकर चलने लगे सामान समेत कि होटल की शटल्स का स्टॉप दिख जाये । तो सुरेश को स्टॉप मिल गया और सुहास ने भी फोन करके जानकारी हासिल कर ली । होटल की नीले रंग की शटल दिखी तो सबकी सांसे वापिस चलने लगीं । होटल पहुंचे नहाये और होटल से ही पिज्झा खाया । आराम भी किया ।
शाम को विजय के भाई सतीश उनकी पत्नी फे और बेटी हेलन उसके छोटे से बेटे काय के साथ हम से मिलने आये । पिछली बार जब हम हवाई गये थे तो इनके घर लॉस एन्जेलिस (एल ए U.S.A. ) में ही रुके थे । उन्होने सबके लिये कुछ कुछ उपहार लाये थे और हमें एक चायनीज़ रेस्तराँ में डिनर के लिये ले गये । (विडिओ देखें) vdo 9
खूब बातें हुई पतिपत्नी दोनों बहुत मिलन सार और आतिथ्यशील हैं । वापिस आकर फिर होटल के लाउंज में गपशप हुई । vdo 10 (विडिओ देखें)
उन लोगों को विदा करके हम कमरे में आये और अपनी पैकिंग कर के सो गये । vdo 11 (विडिओ देखें)
सुबह 6 बजे उठे और मर्दों के जल्द बाजी की वजह से पौने सात बजे की शटल लेकर 7 बजे से पहले ही लाइन में लग गये ( अंत में यह काफी मददगार साबित हुआ )। अब हमारी उडान थी फिरसे UNITED की । तो आप अंदाजा लगा सकते हैं कि हमारे साथ क्या हुआ होगा । लाइन काफी लंबी थी फिर भी हम धीरज से खडे अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे हाथ में समय़ भी था । खैर हमारी बारी आई और सुरेश ने हमारे टिकिट नंबर फीड किये कोई नतीजा नही 3-4 बार नंबर फीड करने के बाद मेसेज आया कि कस्टमर सर्विस को कॉन्टेक्ट करें । तो हमने जो काउंटर पर खडी थी उस लडकी को बोला वह सुन कर थोडी देर के लिये गायब हो गई । इतने में एक सुपरवाइज़र टाइप लडकी दूसरी लाइन के लोगों को हमारी लाइन में भेजने लगी । हमें गुस्सा तो बहुत आ रहा था फिर थोडी देर बाद वह लडकी आई और हमारे पीछे के लोगों को टिकिट देख कर चैक-इन कराने लगी । जब हमने कहा कि हमारा क्या हुआ तो बोली आप लोग 37 नंबर काउंटर पे जाइये । वहां गये तो वहां भी वही हाल कोई हमें सुने ही ना । इस बीच उडान के लिये कुल सवा घंटा बचा था और अभी सिक्यूरिटी तो दूर चैक-इन का पता नही । काउंटर क्लर्क को हमने अपना किस्सा बताया तो वह जो अंदर गया आया ही नही । फिर वही सुपरवाइज़र लडकी फिर हमारी लाइन में और लोगों को भेजने लगी । “अब फ्लाइट तो ना मिलने की”, हम सोच रहे थे । इतने में प्रकाश की आवाज़ जोर से गूंजी वह उस सुपरवाइज़र छाप लडकी से उलझ गया था ,” What is going on here, nobody is attending us ,we have confirmed tickets here and we are booked on the flight which leaves in an hour. We are being shunted from here to there and nobody is attending us “. “But why is he yelling “ वह लडकी भुनभुनाई । इतने में एक हिन्दुस्तानी दिखने वाला बंदा आया और हमारी समस्या सुन ली और मैं कुछ करता हूं कह कर अंदर गायब । कोई 5 मिनिट बाद वह आया और कहा कि एयर न्यूझीलैन्ड की वजह से यह गडबडी हुई है पर हम उनसे बात कर रहे हैं उम्मीद है कि आप का काम हो जायेगा । हमें पक्का विश्वास था कि सारी गडबडी की जड़ ये यूनाइटेड एयरलाइन्स ही है क्यूं कि ऑस्ट्रेलिया –न्यूजिलैन्ड कि हमारी फ्लाइट्स सब बढिया रहीं थीं। खैर और 10 मिनिट के बाद जो आदमी पहले गायब हुआ था वह प्रगट हुआ और हमारा सामान अंततः चैक-इन हो गया हमे बोर्डिंग कार्ड भी मिल गये । अब सिक्यूरिटी तो हमें एक लेडी द्वारा बताया गया कि आप लोग मेरे साथ आओ और हमें ऊपर ले जाकर एक लाइन मे लगाया गया । वहां एक लेडी खाली 9 बजे की फ्लाइट वालों को ही आगे आने दे रही थी । हमारी फ्लाइट सवा नौ की थी तो हमें दूसरी लाइन के एकदम पीछे कर दिया । भुनभुनाते खडे रहे- मरता क्या न करता पर वहां नंबर आने से पहले ही एक और लेडी आई और हमें आगे ले गई और सिक्यूरिटी बिना झंझट के हो गई ।
अब बोर्डिंग के लिये जो गेट था काफी दूर था । हम भाग भाग कर जा ही रहे थे पर बीच में एक जगह सुहास गायब । कोई 5 मिनिट बाद वह दिखी । और अंततः हम विमान के अंदर पहुंचे और फ्लाइट उड चली । सुहास ने बताया ये डोमेस्टिक फ्लाइट है खाना वाना कुछ नही मिलेगा इसीसे मै खाना लेने चली गई थी लेकर आई हूं । 5 घंटे की फ्लाइट पर ठीक ठाक रही हमारे हिस्से की तकलीफें पहले ही जो उठा ली थीं । वॉशिंगटन डीसी पहुंचे तो जिम और हेलन लेने आ गये थे । फिर गाडी में बैठ कर घर । 31 तारीख के शाम के पौने सात बजे सुहास के घर बैठ कर चाय पी । और सोचा चलने से पहले ही कितने वांधे थे। पहले भारतीय विद्यार्थियों की पिटाई फिर सुनामी फिर स्वाइन फ्लू पर इन सबसे तो बचे ही और ट्रिप भी बढिया रही । थोडी दिक्कतें भी आईं पर कष्ट के बिना कृष्ण किसे मिले हैं, क्या कहते हैं आप ?
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
18 टिप्पणियां:
Sair karane ke liye ........ dhanyawaad..........
hehehe
videos bhi kaafi achche hain........
समूची यात्रा को दृष्मय और जीवंत कर दिया आपने.
धन्यवाद आपका!
बहुत ही सुन्दर यात्रा वृत्तान्त रहा. हमें ऑस्ट्रेलिया से नफरत हो चली है. एक बार मौका मिला था newzealand जाने का. क्योंकि flight सिडनी होते हुए जाती है इसलिए बताया गया की ट्रांसिट वीसा लगेगा. इसके लिए यहाँ उनके हाई कमीशन ने इतनी आनाकानी की की flight ही मिस हो गयी और हम न जा पाए.
आपसे ईर्ष्या करने को मन करता है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
घुमक्कड़ी पर ब्लॉग पोस्टें - सही मायने में ब्लॉगिग वही है जो आप कर रही हैं!
आप की यात्रा बहुत सुंदर रही, ओर अन्त मै यह झुंझलाहट... बहुत बुरी लगती है, एक बार मेरे साथ भारत मै ऎसा ही हुया था,ओर अमेरिका तो मेरा दिल ही नही करता आने को, जब कि बच्चे हर साल दबाब डालते है, लेकिन शायद अगले साल जाये
आप के विडियो बहुत सुंदर लगे .धन्यवाद
यात्रा में थोडी-बहुत तकलीफ तो हो ही जाती है. पर जैसा कि आपने कहा बिना कष्ट कृष्ण कहाँ मिलते हैं !
आशा जी बचपन मे राजकपूर की एक फिल्म देखी थी अराउंड द वर्ल्ड ,तभी से इस दुनिया की सैर के प्रति आकर्षण पैदा हुआ ,अफसोस कि अभी तक निकल नही पाया हू लेकिन यह आपका लिखा उसी रोमांच को फिर पैदा कर रहा है ।
I loved this one too. I feel like I was realy with you all like that white haired lady in your group. You people are doing a great favor to us who can not travel a lot. keep up the good work. Thanks.
Vandana
aare waah tumchya sobat aamchi sudhha chan trip jhali nz aani austrlia chi. video muey vatla solya samor sagla pahila.pratyek post vachatanna ek utsaah bharun yet hota mannat.
bahut achhi post
purani yaaden taza ho gayi.........
Mai kabhee in jagahon pe nahee gayee...lekin ye sachitr safar namaa khoob huaa...laga aap ke saath ghoom rahee hun..
इस दृश्यमयी जीवंत यात्रा वर्णन के लिये - किती प्रशंसा करू, हेच कळत नाही!!!
Taayi,
faarach changa aahe ye vrutaant.. mala asa waatli ki me tithe hi aahe ,..
apna khayaal rakhe .
aapka dhanywad.
regards
vijay
www.poemsofvijay.blogspot.com
आप लोग वास्तव में जिन्दगी जी रहे हैं।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
थोडी दिक्कतें भी आईं पर कष्ट के बिना कृष्ण किसे मिले हैं,
चलिए आपको कृष्ण मिल तो गए,
कईयों को तो सुपर- डुपर कष्ट झेलने के बाद भी कृष्ण नहीं मिलते.
हिंदुस्तान में तो सुपारी, गुटके के पैकट ऑफर करने से झट रस्ते खुल जाते हैं, वहां यही परेशानी और कड़ी जाँच का सबब बन गया.
कुल मिला कर यात्रा व्रतांत पहले की ही तरह रोचक और दिलचस्प रहा. वीडियो क्लिपिंग ने चार चाँद लगा दिए.
हार्दिक आभार.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
जीवंत यात्रा वृत्तान्त के लिये धन्यवाद
aapko ek travel blog start kerna chhaiye jisse humare jaise logon jo kabhi kabhaar kahin jaate hain thoda gyaan pa jayenge...
aur humari blog par kiye hue aapke comment ka sukriya..they were all so meaningful.. :)
Abhi kahan par hain?
एक टिप्पणी भेजें